Wednesday, December 13, 2023

90 वर्षीय इस बुजुर्ग ने 50 सालों में पहाड़ खोदकर बनाया तालाब, जानवरों की मौत ने किया था प्रेरित

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखी गई यह पंक्ति, ‘ मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।’ हरियाणा के चरखी दादरी के गांव अटेला कलां के रहने वाले 90 वर्षीय कल्लू पर बिल्कुल सटीक बैठती है। जी हां, उन्होंने बेजुबानों की प्यास बुझाने के लिए पहाड़ों के बीच 50 साल की कड़ी मेहनत के बाद तालाब का निर्माण किया है। उनके द्वारा किया गया यह बेहद हीं सराहनीय काम यह साबित करता है कि है दुनिया में कोई भी ऐसा कठिन काम नहीं है, जो मानव नहीं कर सकता।

पहाड़ों के बीच 50 साल की कड़ी मेहनत के बाद बनाया एक तालाब

हरियाणा (Haryana) के 90 वर्षीय कल्लूराम (Kalluram) ने पहाड़ों के बीच 50 साल की कड़ी मेहनत के बाद एक तालाब बनाया है। उन्होंने बताता कि उनके साथ उनकी तीन पीढियां यानी खुद कल्लूराम और उनके बेटे वेद प्रकाश, उनके पोते राजेश ने इस तालाब को बनाने में उनकी सहायता किया है। अब वे लोग उनके साथ तालाब तक पहुंचने के लिए अस्थाई रास्ता बनाने में जुटे हुए हैं।

सुना लोगों का ताना

कल्लूराम (Kalluram) ने बताया कि, इस तालाब को बनाने के दौरान उन्हें बहुत लोगों ने ताना सुनाया, उनका मजाक बनाया लेकिन फिर भी उन्होंने अपने हौसलें को बरकरार रखा और हार नहीं मानी। इतना तक कि, खुद उनके परिवार वालें हीं उनसे परेशान हो गए थे। लेकिन कल्लुराम ने ठान लिया था कि चाहे कुछ भी हो, वो इस तालाब का निर्माण करके हीं रहेंगे।

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50 सालों के कड़ी मेहनत के बाद तालाब बनके हुआ तैयार

कल्लू के द्वारा इस तालाब को निर्माण होने में 50 साल का लंबा वक्त लगा। फिर वर्ष 2010 में यह पूरे रूप से बनकर तैयार हो गया। लेकिन अभी तक इसके पास पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं बन पाया है।

कल्लूराम ने बताया कि कई बार प्रशासन से गुहार लगाने के बावजूद भी इस रास्ते को बनाने का कोई हल नहीं निकला तथा इस 50 साल के कठिन मेहनत के बाद भी अब तक उन्हें कोई सम्मान नहीं मिला। हालांकि यह तालाब बनने के बाद कई पशु पक्षी इसमें अपनी प्यास बुझा रहे हैं।

कैसे आया तालाब बनने का ख्याल?

कल्लूराम जब 18 वर्ष के थे तब वे पहाड़ों पर बकरियां और गायों को चराने जाया करते थे। लेकिन पहाड़ों पर पानी नहीं होने के कारण कई बेजुबानों की प्यास से मौत हो जाती थी। इनके लगातार मौत को देखकर कल्लूराम ने पशु पक्षियों की प्यास को बुझाने के लिए तालाब को बनाने को ठाना।

कुछ दिन बाद वे हथौड़ा व छेनी लिए पहाड़ों की कटाई के लिए चल पड़े। पहाड़ों को काटकर तालाब को निर्माण करने में उन्होंने अपनी तीन पीढ़ी देख ली। आज के समय में वे लोगों के लिए प्रेरणा की स्रोत बने हुए हैं।

रास्ता के निर्माण में हैं जुटे

कल्लूराम पानी का मटका लेकर रोजाना सुबह 4 बजे उठकर तालाब तक पहुंचते हैं। आज में समय में उनका पूरा परिवार उनका सहयोग कर रहा है। सभी मिलकर दिन भर मेहनत करते हैं ताकि तालाब तक पहुंचने के लिए अच्छा रास्ता बना सके। उनके गांव से डेढ़ किमी का सफर तय करने के बाद तालाब तक लोग पहुंचते हैं।