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अच्छी खासी नौकरी छोड़ ‘ड्रैगन फ्रूट’ की खेती कर रहे हैं,विदेशी नस्ल का यह फल बिक रहा है 300-400 रुपये प्रति किलो

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कच्छ के किसानों को अपने 26 जुलाई के ’मन की बात’ में ड्रैगन फ्रूट की खेती में सफलता के साथ ‘स्वाद’ चखने का उल्लेख करते हुए कहा कि यह विदेशी फल गुजरात में कई लोगों के लिए आमदानी का मुख्य स्रोत बन गया है।

वास्तव में, इस जीवंत लाल फल की खेती में मिली सफलता के बाद लोगों ने अपने आकर्षक व्यवसायों जैसे ‘निवेश बैंकिंग और चार्टर्ड अकाउंटेंसी’ को छोड़ दिया है। वे जानते हैं कि इससे औषधीय लाभ मिल रहा है। इसलिए खेती से जुड़ गए हैं।

ड्रैगन की खेती गुजरात (Gujrat) के कच्छ (Kutch) के मूल निवासी विशाल गाड़ा अपने साथियों के साथ मिल कर रहें हैं। इनके पास ऑस्ट्रेलिया से प्रमाणित प्रैक्टिस एकाउंटेंट (सीपीए) की डिग्री है और भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया में निवेश बैंकर के रूप में कार्य भी कर चुके हैं। अमेरिका में चार्टर्ड वित्तीय विश्लेषक (सीएफए) के पद को भी संभाला है। उन्होंने 2014-15 में अपने चचेरे भाई कल्पेश हरिया और दोस्त सागर ठक्कर के साथ ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की।




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Photo source-TOI

कच्छ में विशाल गाड़ा के ड्रैगन फल की खेती

एक दशक तक कॉर्पोरेट क्षेत्र में काम करने के बाद इन्होंने पूरी तरह से एक अलग पेशा अपनाने का फैसला किया। कच्छ (Kutch) अनार, केसर और आम के लिए प्रसिद्ध है, इसलिए इन्होंने ड्रैगन फ्रूट के पौधे आयात किए और अब्दसा तालुका के खारुआ गांव में अपनी पैतृक भूमि में खेती शुरू कर दी। कुछ महीने बाद इन्हें हर साल 60-80 टन फल की खेती से मिलने लगा, जिसकी लगभग 300-400 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिक्री हुई। जिससे इनकी आमदनी में खूब बढ़ोतरी हुई है।

एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर, ड्रैगन फ्रूट अब कच्छ में 1,000 एकड़ में उगाया जाता है

मांडवी तालुका के मोटा असंभिया गांव के वीर गाला ने भी सीए की नौकरी छोड़ कर 2017 में ड्रैगन फ्रूट फार्मिंग में भाग लिया। इनका कहना है कि, मैं एक उद्यमी बनना चाहता था क्योंकि मैं टैक्स और ऑडिटिंग से थक गया था। इसलिए मैंने अपने गांव में ‘ड्रिप इरिगेशन सिस्टम’ लगाया और इस फल के बारे में जनकारी प्राप्त कर खेती शुरू कर दी। इन्होंने अपने सात एकड़ जमीन पर ड्रैगन फ्रूट की खेती की।

फल की सफलता कच्छ तक सीमित नहीं रही

सूरत में बसने वाले कपड़ा व्यापारी अश्विन सभ्या ने अमरेली के खंभा तालुका के अपने पैतृक इंगोरला गांव में ड्रैगन फ्रूट फार्मिंग की शुरुआत कर सूरत चलें गये। जब लॉकडाउन ने कपड़ा व्यवसाय को मंदी में धकेल दिया, तो सब्याना अपने गांव के लिए लौट आए और ख़ुद खेत में काम करने लगे। इन्होंने बताया कि सूरत में कपड़ा व्यवसाय की तुलना में इस फल की खेती में अधिक आमदनी है।




ड्रैगन फ्रूट की खेती करना काफी महंगा है क्योंकि इसके लिए शुरुआती चरण में लगभग 4 लाख रुपये प्रति एकड़ के निवेश की आवश्यकता होती है। कैक्टस होने के नाते, इसकी ड्रिप सिंचाई प्रणाली के माध्यम से सिंचाई की जाती है। जिसके लिए किसान को सिंचाई के समर्थन के लिए कंक्रीट के खंभे लगाने की आवश्यकता होती है। काफी मेहनत के बाद किसान को इससे लाभ मिलता है।

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