जीवन में दुःख सुख का आना जाना लगा रहता है। लेकिन कठिन परिस्थितियों में आपा खोए बिना धैर्य बनाकर जो खुद को अडिग रखते हैं उनके सामने संघर्ष भी अपने घुटने टेक लेता है। ये कहानी आपको इमोशनल करने के साथ जिंदगी जीने के मायने भी सिखाएगी।
कहानी एक बुज़ुर्ग ऑटो ड्राइवर ( Auto driver Deshraj) की है। जिनका नाम देशराज है। उनके दोनों बेटों की मौत हो चुकी है, ऐसे में सात लोगों के परिवार के भरण-पोषण, पोते-पोतियों की पढ़ाई का जिम्मा उनके ऊपर ही है।
बड़े बेटे की मौत के दूसरे दिन से ही ऑटो चलाने लगे
6 साल पहले उनका बड़ा बेटा हमेशा की तरह काम पर निकला था। लेकिन घर वापस नहीं लौटा। करीब एक सप्ताह बाद उसका शव मिला। बड़े बेटे को खोने का ग़म भी वो ज्यादा दिन नहीं मना पाए क्योंकि आर्थिक परिस्थिति इसकी अनुमति नहीं दे रही थी। दूसरे ही दिन से वह ऑटो चलाने लगे।
छोटे बेटे ने आत्महत्या कर ली फिर परिवार को अकेले संभाला
दुःख का पहाड़ एक बार और गिरा जब उनके छोटे बेटे ने आत्महत्या कर ली। उम्र के इस दौर में दो जवान बेटे को खोने का दर्द किसी भी पिता को इतना खोखला कर देता है कि शायद वह अपने पैरों पर भी न खड़े हो पाए। लेकिन देशराज के पास तो अब जिम्मेदारी और दोगुनी बढ़ गई थी। परिवार में अब पत्नी, दो बहुएं और चार पोता पोती ही रह गए थे। जिनका पालन पोषण अब उन्हें है देखना था।
पोती को पढ़ाने के लिए दिन रात मेहनत की
देशराज ने मीडिया से बातचीत में बताया कि पोते पोतियों की पढ़ाई न छूटे इसलिए उन्होंने सुबह 6 बजे से देर रात तक ऑटो चलाना शुरू किया। एक बार उनकी पोती ने पूछा कि अब उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी तो उन्होंने बोला वह जबतक मन चाहे पढ़ सकती है। उस समय वह नौवीं में थी।
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10 हज़ार की कमाई से चलता है घर
वह महीने में दस हज़ार तक कमा लेते है। जिसमें 6 हजार पोते पोतियों की पढ़ाई और बाकी के 4 हज़ार में सात लोगों के खाने का इंतज़ाम होता है। कई दिन ऐसे भी बीते जब परिवार के पास कुछ खाने को नहीं होता था। बीच में पत्नी के बीमार हो जाने के कारण इधर उधर से दवाइयों के लिए पैसे भी लेने पड़े।
पोती को बोर्ड में 80% नंबर मिले तो दिन भर फ्री कर दिया ऑटो का किराया
10 वीं में उनकी पोती ने 80% नंबर से बोर्ड एग्जाम पास किया तो इस खुशी के सामने सारे गम फीके पड़ गए। उस दिन देशराज ने पूरे दिन लोगों को फ्री में अपने ऑटो में बैठाया।
आगे और पढ़ाने के लिए घर भी बेच दिया, खुद ऑटो में रहने लगे
पोती ने बीएड की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली जाने का सोचा। यह बात दादा को बताई। देशराज जानते थे कि ऐसा करने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। लेकिन अपनी पोती को पढ़ाने के लिए उन्होंने घर बेच दिया। पोती को दिल्ली भेजा और बाकी के परिवार के सदस्यों को रिश्तेदारों के घर। अब खुद का घर नहीं बचा तो देशराज ऑटो में सोने लगे। वह अब ऑटो में ही खाते – सोते हैं।
मीडिया से उन्होंने बताया कि “शुरुआत में थोड़ी दिक्कत होती थी, पांव में दर्द भी होता था लेकिन अब आदत हो गई है। जब बेटी फोन पर बताती है कि वह क्लास में फर्स्ट आई है तो ये दर्द भी महसूस नहीं होता है।”
देशराज अब उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब उनकी बेटी ग्रैजुएट होकर टीचर बन जाएगी। उन्होंने फैसला किया है उस दिन के बाद से वह एक हफ्ते के लिए अपने ऑटो का किराया फ्री कर देंगे।
इस कहानी को मीडिया के कवर करने के बाद कई लोग मदद के लिए आगे आए हैं। The logically सभी पाठकों से अपील करता है कि रिक्शा वालों, ऑटो वालों, सब्जी बेचने वालों और रेहड़ी पटरी लगाने वालों से ज्यादा मोलभाव न करें। कौन किस स्थिति में है, इस बात का शायद ही किसी को अंदाजा हो।
खार डंडा नाका, मुंबई गाड़ी नंबर 160 में रहने वाले देशराज को आप इस नंबर पर 8657681857 संपर्क कर सकते हैं।