वैश्विक स्तर पर बढ़ती प्राकृतिक आपदा, ग्लोबल वार्मिंग, भूकंप के झटके, परमाणु संकट यह सब मानव द्वारा निर्मित संसाधनों का परिणाम है। पौराणिक मान्यताओं के साथ – साथ विज्ञान भी संकेत दे चुका है कि एक दिन पृथ्वी पर भारी विनाश होगा। अगर ऐसा होता है तो हमारी आने वाली सभ्यता को मौजूदा पेड़ पौधे वनस्पतियों का मोहताज होना पड़ सकता है।
‘डूम्स डे वॉल्ट’ कयामत की तिजोरी का सच
फिलहाल पूरा विश्व महामारी की चपेट में है आगे परिस्थिति कैसी होगी यह हम नहीं जानते लेकिन इसके लिए तैयारियां तो की जा सकती हैं। इन सभी तर्कों के मद्देनजर वैज्ञानिकों ने 2008 में ही नार्वे में ‘डूम्स डे वॉल्ट’ नामक एक फूड बैंक बनाया था।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार डूम्स डे (Dooms day) को कयामत का दिन माना गया। जिस दिन दुनिया का अंत हो जाएगा। ऐसे में डूम्स डे वॉल्ट’ नामक फूड बैंक बनाने की क्या जरूरत थी? और इसे नॉर्वे में ही क्यों बनाया गया है ? यह सवाल सभी के मन में होता है।
कयामत के बाद जीवन की नई किरण मुमकिन होगी
मनुष्य ने पृथ्वी पर आज से हजारों साल पहले कृषि करना शुरू किया था। अब तक कई वनस्पतियां, बीज पेड़ पौधों की पहचान की जा चुकी है। ऐसे में यदि बाढ़, भूकंप, सुनामी या किसी अन्य आपदा से विनाश होता है तो आगे आने वाली पीढ़ी के लिए जींस सुरक्षित होनी चाहिए। इसलिए मनुष्य ने कृषि उत्पादों को अगली पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखने के लिए ‘कयामत के दिन की तिजोरी’ (Doomsday vault) को बनाया है।
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इस तिजोरी की खासियत हैरान करने वाली
डूम्स डे वॉल्ट’ स्पीट्सबर्गन आयलैंड (नार्वे) में एक सैडस्टोन माउंटेन से 390 फ़ीट अंदर बनाया गया है।
डूम्स डे वॉल्ट’ के लिये ग्रे कॉन्क्रीट का 400 फुट लंबा सुरंग माउंटेन में बनाया गया है। इस तिजोरी में 8 लाख 60 हज़ार से ज़्यादा किस्म के बीज रखे जा चुके हैं जबकि इसकी क्षमता करीब 45 लाख किस्म के बीजों को संरक्षित करने की है। इस तिजोरी के दरवाजे बुलेट-प्रूफ़ हैं यानी इसे गोली से नहीं भेदा जा सकता है।
भारत ने भी भेजी अपनी वनस्पतियां
‘डूम्स डे वॉल्ट’ नार्वे में 100 देशों द्वारा बनाया गया इसमें अब तक 9 लाख विभिन्न खाद्य पदार्थों जैसे गेहूं, चना, मटर इत्यादि के बीजों को संभाल कर किसी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए रखा गया हैं। भारत भी इस परियोजना का हिस्सा है। इसका निर्माण 26 फरवरी 2008 में पूरा हुआ था।
आखिर क्यों केवल नॉर्वे को चुना गया
एक सवाल ये है कि इस तिजोरी के लिए नॉर्वे का ही चयन क्यों हुआ ? वह इसलिए क्योंकि यह जगह उत्तरी ध्रुव के सबसे नजदीक होने का कारण सबसे ज्यादा ठंडी रहती है। जो भी देश इस बैंक में अपने बीजों को रखना चाहते हैं उनको नॉर्वे सरकार के साथ एक डिपॉज़िट एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने होते हैं। यहाँ पर यह बात बतानी जरूरी है कि इस बैंक में जमा किये गए बीजों पर मालिकाना हक़ बीज जमा कराने वाले देशों का ही होगा, नार्वे सरकार का नही।
बिना बिजली के भी 200 साल तक महफूज रहेंगे बीज
इन बीजों को सुरक्षित और संरक्षित रखने के लिये माइनस 18 डिग्री सेल्सियस तापमान की ज़रूरत होती है। यदि इस तिजोरी में बिजली ना पहुचे तो भी इसमें रखे गए बीज 200 सालों तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं अर्थात नयी पीढ़ी द्वारा खेती में प्रयोग किये जा सकते हैं। डूम्स डे वॉल्ट’ की छत और गेट पर प्रकाश परावर्तित करने वाले रिफ़लेक्टिव स्टेनलेस स्टील, शीशे और प्रिज़्म लगाए गए हैं ताकि गर्मी इसके अन्दर ना घुस पाये और इसकी वजह से इसके अन्दर की बर्फ ना पिघले।
सीरिया में गृह युद्ध के बाद खराब हालातों में मिली थी मदद
इस तिजोरी को साल में 3 या 4 बार ही खोला जाता है इसको आखिरी समय मार्च 2016 में बीज जमा करने के लिए खोला गया था। सीरिया में गृह युद्ध के कारण खेती नष्ट हो गयी थी इसी कारण इस तिजोरी को खोलकर उसमें से दाल,गेंहू, जौ और चने के बीज के लगभग 38 हज़ार सैंपल गुप्त तरीके से सीरिया, मोरक्को और लेबनान भेजे गए थे। हालांकि ख़राब हालातों की वजह से इन बीजों का पूरा इस्तेमाल नही हो पाया है।
केवल यह लोग ही वॉल्ट में प्रवेश कर सकते हैं
यह मिशन इतना गुप्त है कि इसमें जाने की इज़ाज़त सिर्फ कुछ ही लोगों जैसे अमेरिकी संसद के सीनेटर्स और संयुक्त राष्ट्र संघ के सेक्रेटरी जनरल को ही है। इस तिजोरी को बनाने में दुनिया भर से 100 देशों ने वित्तीय सहायता दी है। भारत, अमेरिका, उत्तर कोरिया, स्वीडन भी इस मिशन का हिस्सा है। बिल गेट्स फाउंडेशन और अन्य देशों के अलावा नॉर्वे गवर्नमेंट ने वॉल्ट बनाने के लिए 60 करोड़ रुपए दिए थे। जीन बैंक की दुनिया में इस प्रकार के लोकर को ‘ब्लैक बॉक्स व्यवस्था’ कहा जाता है।
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