किसानों की आमदनी का एक मात्र जरिया खेती हीं होता है जिसके लिए वे कुछ भी कर गुजरने को तैयार होते हैं। मौसमी मार, मिलावटी खाद और बीज के साथ-साथ नीलगायों और जंगली सुअरों से उनकी खेती में बङी बाधा उत्पन्न होती है।
आजकल नीलगायों वह अन्य जानवरों ने मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के किसानों को परेशान कर रखा है। तंग आकर वहाँ के किसान खुद के स्तर से कई प्रयास कर रहे हैं लेकिन वे सारी कोशिशें नीलगाय से पूर्णतः निजात नहीं दिला पा रही। आईए जानते हैं कि उन्हें किस-किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और वे उससे पार पाने हेतु कौन-कौन से उपाय कर रहे हैं…
सिर्फ मध्य प्रदेश में करीब 35 हजार नीलगाय हैं
मध्य प्रदेश में हीं नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी नीलगाय की समस्या बनी हुई है। सिर्फ मध्य प्रदेश में करीब 35 हजार नीलगाय है। इसके अलावा बिहार, ओड़िशा, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी नीलगाय से फसलों का बहुत नुकसान होता है। इसके लिए कई बार किसानों ने जिला प्रशासन, वन और कृषि विभाग के अधिकारियों, विधायकों व मंत्रियों तक अपनी बात पहुँचाई परंतु अब तक इसका कोई भी हल नहीं निकला पाया है।
नीलगायों के खिलाफ किसानों ने खुद संभाला मोर्चा
किसानों के पास अब और कोई रास्ता नहीं था तो उन्होंने खुद हीं अपने फसलों को बचाने का मार्ग चुना। इस समय खेतों में गेहूं, चना, आलू, प्याज और लहसुन की फसल लगी है। किसानों द्वारा किए गए उपाय भले हीं सौ फीसदी काम ना करे लेकिन कुछ फसल बचाने के काम जरूर आ सकता है। किसानों के पास इतना पैसा भी नहीं होता है कि वह नई साड़ी खरीद सकें इसलिए वह बाजारों से पुरानी साड़ियां खरीदकर लाते हैं, तथा आसपास के गांवों में परिचितों-मित्रों से भी पुरानी साड़ियां इकट्ठी करते हैं। साड़ियों को एक-दूसरे के साथ सिलवाकर जोड़ लिया जाता है फिर लकड़ी के ऊंचे खंभे गाड़कर उनसे साड़ियों को बांधा जाता है।
प्रधानमंत्री तक भी पहुंचा चुके हैं अपनी बात
घनश्याम दत्तू (Ghanshyam Dattu) इंदौर जिले के पिपल्दा गांव के किसान हैं। वह बताते हैं कि उन्होंने 20 बीघा के खेत में अबतक 50 हजार रुपये से अधिक की साड़ियां लगा चुके हैं। उनके अलावा किसान श्याम चौधरी (Shyam Chaudhary) साड़ियों पर 17 हजार रुपये खर्च कर चुके हैं। कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि वितरण कार्यक्रम के दौरान धार जिले के चिकलिया गांव के किसान मनोज पाटीदार (Manoj Patidar) ने वीडियो कान्फ्रेसिंग पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस गंभीर समस्या की जानकारी दी।
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नीलगायों का नहीं है कोई आशियाना
मध्य प्रदेश के रहने वाले आलोक कुमार कहते हैं कि अगर वन्य प्राणियों से फसलों को नुकसान होता है तो उसके लिए मुआवजे का प्रावधान है। यहाँ तक नीलगाय को मारने की अनुमति का प्रावधान भी है परंतु उसकी प्रक्रिया इतनी मुश्किल है कि प्रदेश में आज तक एक भी अधिकारी ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया। मध्य प्रदेश के सेवानिवृत्त प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) ए.के. सक्सेना (A.K. Saksena) बताते हैं कि अब नीलगाय की संख्या बढ़ना बंद हो गया है। साल 2006 से 2017 के बीच देशभर में 59 हजार वर्ग किमी क्षेत्र के पट्टे बांट दिए गए हैं जिसमें बहुत से वनक्षेत्र कम हुए हैं। इसका असर है कि इस प्रकार के जानवर खेतों की तरफ जा रहे हैं क्यूंकि उनके पास वनक्षेत्र है हीं नहीं।
नीलगायों से इस तरह बचाया जाता फसलों को
कुछ ऐसे तरीके हैं जिसके माध्यम से किसान अपने फसलों को बचाते हैं। पहला, कुछ किसान अपने खेतों के चारों और मोटी जाली वाली तारफेंसिंग कर अपने फसल की सुरक्षा करते हैं। दूसरा, गोबर को पानी के साथ मिश्रण कर खेत के चारों तरफ छिड़काव करके फिनाइल या सल्फॉस की गोलियों को कपड़ों में लपेट कर खेत की मेड़ के आसपास रखकर नीलगायों को खेत में आने से रोका जा सकता है। तीसरा, खेत में बल्ब, बंद चालू होने वाले चमकदार लाइट सीरिज, छोटे बल्ब तथा 5 मिनट के अंतराल में अलार्म बजाने वाला सर्किट लगा कर भी नीलगाय को खेतों में आने से रोका जा सकता हैं। चौथा, रात में ज्यादा आवाज वाले पटाखे फोड़कर उन्हें भगा कर अपने फसलों को किसान बचाते हैं।
The Logically उम्मीद करता हैं कि नीलगायों की गंभीर समस्या से निदान के लिए सरकार संज्ञान लेगी और किसानों को जल्द हीं नीलगाय तथा अन्य जानवरों से राहत मिलेगी।