Sunday, December 10, 2023

मधुमक्खी पालन और गेंदा फूल की खेती से किसान कमा रहे डबल मुनाफा, हिमाचल प्रदेश के किसानों का नया तरीका

अब किसान पारंपरिक खेती को छोड़ नई तकनीक को अपना रहे हैं, जिससे कम मेहनत में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के किसान पारंपरिक फसल जैसे मक्का, धान और गेहूं जैसी फसलों को छोड़ मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। मधुमक्खी पालन के साथ-साथ जंगली गेंदा के फूलों से भी उनकी आमदनी में बढ़ोतरी हुई है। परंपरागत फसलों से किसानों को प्रति हेक्टेयर लगभग 40,000 से 50,000 रुपये की कमाई होती थी। उसकी तुलना में जंगली गेंदे की खेती और तेल के निष्कर्षण के जरिए प्रति हेक्टेयर लगभग 1,00,000 रुपये की वृद्धि हुई है।

इस तरह शुरू हुआ स्वदेशी मधुमक्खी पालन का काम

सरकार इसके विस्तार का प्रयास कर रही है। हिमाचल प्रदेश में जिला मंडी के तलहर में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सीड डिवीजन के टाइम-लर्न कार्यक्रम में सोसाइटी फॉर फार्मर्स डेवलपमेंट द्वारा क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान स्टेशन (आरएचआरएस) बाजौरा के डॉ. वाईएस परमार (Dr. YS Parmar) यूएचएफ के बनाए तकनीक की मदद से हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले में बालीचौकी ब्लॉक के ज्वालापुर गांव में स्वदेशी मधुमक्खियों (एपिस सेरेना) के लिए इस तकनीक की शुरुआत की गई। इस कार्य में उसी ज़िले के कुल 45 किसान शामिल हुए। प्रशिक्षित किसानों द्वारा तैयार किए गए 80 मिट्टी के छत्ते सेब के बागों में लगा दिए गए, जिसने छह गांवों में कुल 20 हेक्टेयर भूमि को कवर कर लिया।

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किसानों की मदद के लिए एक गठन बनाया गया

40 किसानों को मिला के एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) ग्रीन वैली किसान सभा परवई का गठन किया गया, जिसके जरिए वित्तीय मदद करने का फैसला लिया गया इसलिए इसे हिमाचल ग्रामीण बैंक परछोड़ से जोड़ा गया। इस गठन के जरिए परवाई गाँव में 250 किलोग्राम क्षमता की एक आसवन इकाई स्थापित की गई। जिसके तहत किसानों को जंगली गेंदा की खेती, उससे की निकासी, पैकिंग तथा तेल के भंडारण की कृषि-तकनीक में प्रशिक्षित किया गया। उसके बाद इस कार्य की शुरूआत हुई। किसान उस तेल को 9500 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेच रहे हैं। इस तेल का प्रयोग दवा बनाने के लिए तथा अर्क तैयार करने के लिए किया जाता है।

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किसानो को हो रहा लाभ

गीली मिट्टी छत्ता मधुमक्खी पालन प्रौद्योगिकी दीवार छत्ता और लकड़ी के छत्ते प्रौद्योगिकी का एक संयोजन हैं। इसे बनाने के लिए मिट्टी के छत्ते के अंदर फ्रेम लगाने और इसके अनुकूल परिस्थितियों देने के लिए आंतरिक प्रावधान हैं। जिसमें ख़ास तोर पर लकड़ी के पत्तों की तुलना में पूरे वर्ष मधुमक्खियों के लिए तापमान के अनुकूलन होता हैं। इसे ख़ास मधुमक्खियों के लिए ही लाया गया हैं। पहले इसके लिए लकड़ी के बक्से का प्रयोग किया जाता था परंतु नई तकनीक ज़्यादा लाभदायक है। हमारे देश की मधुमक्खियां सेब के बाग वाले क्षेत्रों में ज़्यादा दिन तक जीवित रह सकती हैं। इस तकनीक के माध्यम से इतालवी मधुमक्खियों की तुलना में सेब के बागों की औसत उत्पादकता को लगभग 25 प्रतिशत बढ़ोत्तरी मिली है।

मधुमक्खी पालन की विधि

इसे साफ़ रखने के लिए मौजूदा मिट्टी के छत्ते में इसके आधार पर एल्यूमीनियम शीट रखकर इसे अंदर से आसानी से सफाई किया जा सकता है। इसकी शीट गाय के गोबर द्वारा सील कि जाती है और मिट्टी के छत्ते को खोले बिना ही इसे हटाया जा सकता है। इसकी छत पत्थर की स्लेट से बनाई जाती हैं। इससे छत्ते के अंदर अनुकूल तापमान रहता है। इस प्रौद्योगिकी ने लकड़ी के बक्सों की तरह शहद के अर्क का उपयोग करके हाइजीनिक तरीके से शहद के निष्कर्षण में भी मदद की हैं, जैसे कि पारंपरिक दीवार के जगह भोजन, निरीक्षण, समूह और कॉलोनियों का विभाजन किया गया है।

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किसानों को हो रहा दुगना मुनाफा

इसके साथ ही गाँव में एक सामान्य जन सुविधा केंद्र (सीएफसी) स्थापित किया गया है। जिसके द्वारा किसानों को शहद के प्रसंस्करण तथा पैकिंग के कार्य में प्रशिक्षित किया जा रहा हैं। अब वह किसान स्थानीय स्तर पर 500 से 600 रुपये प्रति किलोग्राम शहद भी बेच रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में चंबा जिले के किसानों ने पारंपरिक फसलों से अतिरिक्त आमदनी को बढ़ाने के लिए नए आजीविका विकल्पों की तलाश कर रहे हैं। इसके जरिए उनकी आमदनी बढ़ी हैं। किसानों ने उन्नत किस्म के जंगली गेंदे (टैगेट्स मिनुटा) के पौधों से सुगन्धित तेल निकाला है। साथ ही पारंपरिक खेती से हो रहे लाभ को जंगली गेंदा के तेल ने दोगुना कर दिया है।

किसान सिख रहे नयी तकनीक

सोसाइटी फॉर टेक्नोलॉजी एंड डेवलपमेंट (एसटीडी), मंडी कोर सपोर्ट ग्रुप, बीज विभाग और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने किसानों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाया है। सोसाइटी फॉर टेक्नोलॉजी एंड डेवलपमेंट ने सीएसआईआर-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के साथ मिलकर नई तकनीक के मदद से आकांक्षी जिले चंबा के भटियात ब्लॉक के परवई गाँव में कृषक समुदाय को अपने साथ शामिल करके सुगंधित पौधों की खेती और प्रसंस्करण का काम शुरू करवाया है।