हमारे जीवन में पिता का बहुत महत्व होता है। एक पिता हीं होता है जो अपने बच्चों की खुशी के लिए सभी कठिनाइयों से गुजरता है और अपने बच्चे का भविष्य उज्जवल बनाने की कोशिश करता है। सभी माता-पिता चाहते हैं कि उसके बच्चे का भविष्य उज्जवल हो तथा उसका जीवन सुखमय हो। आज की यह कहानी भी पिता-पुत्र की है। एक ऐसे पिता की कहानी जिसने अत्यंत गरीबी में रिक्शा चलाकर अपने बेटे को IAS बनाया तथा बहू भी IPS लाया। अपने जीवन में आनेवाली तमाम कठिनाइयों का सामना करते हुए उस पिता ने अपने बेटे को आखिरकार IAS बना हीं दिया। गोविंद ने भी एक IAS बनकर अपने पिता का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया।
नारायण जयसवाल (Narayan Jaiswal) काशी के रहनेवाले हैं। उनकी पत्नी का नाम इन्दु जयसवाल है। नारायण जयसवाल के बेटे का नाम गोविंद जयसवाल (Govind Jaiswal) है। गोविंद वर्ष 2007 बैच के आईएएस ऑफिसर हैं। वर्तमान में वह गोवा में सेक्रेटरी फोर्ट, सेक्रेटरी स्किल डेवलपमेंट तथा इंटेलिजेंस के डायरेक्टर जैसे तीनों पदों पर तैनात हैं। गोविंद की पत्नी का नाम चंदना है तथा वह एक IPS ऑफिसर है। वर्तमान में वह भी गोवा मे पोस्टेड हैं।
नारायण ने बताया कि उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है। वह अलईपुरा में किराए के घर में रहते थे। नारायण के पास 35 रिक्शे थे जिसे वह किराए पर चलवाते थे। नारायण के अपनी पत्नी का ब्रेन हैमरेज हो जाने की वजह से उन्हे 20 से अधिक रिक्शे बेचनी पड़ी। परंतु कुछ दिनों बाद ही नारायण की पत्नी का देहांत हो गया। उस समय उनका बेटा 7वीं कक्षा में था। नारायण के घर मे गरीबी ने इस तरह से दस्तक दिया था जिससे उनके परिवारजन को दोनों समय सुखी रोटी खाकर गुजर-बसर करना पड़ रहा था।
नारायण अपने पूरे पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि वह अपने बेटे गोविंद को रिक्शे में बैठाकर स्कूल पहुंचाने जाया करते थे। तब स्कूल के बच्चे गोविंद को देख कर ताना मारते थे, आ गया रिक्शेवाले का बेटा…. नारायण जब लोगों से कहते थे कि वह अपने बेटे को एक आईएएस बनाएंगे तो सभी लोग उनका बहुत मजाक उड़ाते थे।
नारायण ने बताया कि बेटियों की शादी में उनके बचे-खुचे जितने भी रिक्शे थे वह सभी बिक गए। उनके पास अब सिर्फ एक ही रिक्शा बच गया था जिसे चलाकर वह अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे! पैसे की कमी होने की वजह से गोविंद दूसरों की किताबों से पढ़ा करते थे।
गोविंद ने हरिश्चंद्र यूनिवर्सिटी से स्नातक की उपाधि हासिल किया है। ग्रेजुएशन की शिक्षा पूरी करने के बाद गोविंद वर्ष 2006 में सिविल सर्विस की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए। गोविंद ने अपने ट्यूशन का खर्च निकालने के लिए पार्ट टाइम जॉब करते थे। उनकी मेहनत रंग लाई। गोविंद ने यूपीएससी की परीक्षा में पहले ही प्रयास में सफलता प्राप्त किया। उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में ऑल इंडिया 48 वीं रैंक हासिल किया तथा अपने पिता का सर गर्व से उंचा कर दिया।
गोविंद की बड़ी बहन का नाम ममता है। ममता ने बताया कि गोविंद बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी होशियार थे। मां का स्वर्गवास हो जाने के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी। वह बताती हैं कि गोविंद के दिल्ली जाने के बाद उनके पिता बेहद दिक्कतों का सामना करने के बाद खर्च के लिए पैसे भेजते थे। घर परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए गोविंद ने चाय और एक समय का टिफिन भी बंद कर दिया था।
ममता बताती हैं कि वर्ष 2011 में जब गोविंद की पोस्टिंग नागालैंड में हुई थी उस समय उन्हें अपने पति को वकील मित्र से बातचीत के दौरान चंदना के बारे में जानकारी हासिल हुई। चांदना उस वकील की भांजी थी तथा वर्ष 2011 में ही वह आईपीएस के लिए चयनित हुई थीं। चंदना दूसरी जाति से है। ममता कहती हैं कि लोगों को लगता है कि या लव मैरिज है लेकिन यह वास्तव में एक अरेंज मैरिज है। गोविंद जब अपनी छुट्टियों में घर वापस आए तब ममता के पति ने उनसे चंदना से रिश्ते के बारे में प्रस्ताव रखा। उसके बाद गोविंदा और ममता ने साइबर कैफे जाकर चांदना की प्रोफाइल सर्च किया। चांदना गोविंद को अपने लिए बहुत अच्छी लगी तथा रिश्ता आगे बढ़ा। चांदना की नानी गोविंद को देखने के लिए आई थी। उन्होंने कहा, “उसको टीवी और अखबारों में देखा था। पिता के साथ रिक्शा वाली फोटो लगी थी। उसने अपने पिता का सर गर्व से ऊंचा करके सभी को एक प्रेरणा दिया है। जो लड़का एक कोठरी में पढ़कर आईएएस बन सकता है, वह लड़का जिंदगी में बहुत नाम कमाएगा। इस तरह दोनों का रिश्ता तय हो गया”।
चांदना ने बताया कि उन्हें अपने ससुर पर बहुत गर्व है, जिन्होंने समाज में एक बहुत ही प्रेरणादायक मिसाल कायम किया है। जिन्होंने अमीरी और गरीबी के दीवार को गिरा दिया है। आरंभ में चंदना शादी करने के लिए तैयार नहीं थी, क्योंकि उस समय उनकी ट्रेनिंग चल रही थी। परंतु वह अपनी नानी के कहने पर शादी के लिए मान गईं। अब वह अपनी नानी से गोविंद की तारिफ करते नहीं थकती है।
गोविंद अपने बचपन की कुछ बातें याद करते हुए बताते हैं कि एक बार बचपन में वह अपने दोस्त के घर खेलने के लिए गए थे। दोस्त के पिता ने कमरे में बैठा देखकर गोविन्द को बहुत अपमानित कर के घर से बाहर निकाल दिया तथा कहा कि दुबारा घर मे घुसने की साहस मत करना। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्यूंकि गोविंद एक रिक्शेवाला के बेटा थे। उसी दिन से गोविंद ने दोस्तों के घर आना-जाना बंद कर दिया। उस समय गोविंद की उम्र 13 वर्ष थी। उसी वक्त उन्होंने दृढ संकल्प किया कि वह एक IAS ही बनेंगें। क्यूंकि वह सबसे उंचा पोस्ट होता है।
उन्होंने बताया कि वह 5 लोग एक हीं कमरे में रहते थे। गरीबी इतनी अधिक थी कि पहनने के लिए कपड़े भी नहीं थे। दूसरे के घर बर्तन मांजने की वजह से बहन को बहुत सारे लोग काफी ताना मारते थे। वह बताते हैं कि बचपन में दीदी ने हीं उन्हें पढ़ाया। जब वह दिल्ली जाने लगे, तब उनके पिताजी ने गांव में थोड़ी सी जमीन थी उसे बेच डाली। यूपीएससी की अंतिम चरण की परीक्षा इंटरव्यू होने से पहले गोविंद की बहनों ने कहा कि यदि चयन नहीं हुआ तो परिवार का क्या होगा। फिर भी गोविंद ने हिम्मत नहीं हारी और विश्वास के साथ आगे बढ़े।
गोविंद कहते हैं कि आज वह जो कुछ भी है अपने पिता जी की वजह से हीं है। उनके पिता ने कभी भी ऐसा महसूस नहीं होने दिया कि गोविंद एक रिक्शेवाले के बेटे है। गोविंद के IAS बनने के बाद अब उनका परिवार वाराणसी में बने एक विशाल मकान में रहते हैं।
The Logically गोविंद सिंह के पिता के संघर्षो और मेहनत से भरे राह को हृदय से सलाम करता है। इसके साथ हीं गोविंद को भी उनके चुनौतीपूर्ण जीवन का सामना करते हुए IAS बन कर प्रेरणा कायम करने के लिए नमन करता है।