जो व्यक्ति कर्म करता है उसे फल अवश्य मिलता है। हमें जीवन में कभी भी किसी भी चुनोती से पीछे नहीं हटना चाहिए बल्कि उसका सामना करना चाहिए। आज की हमारी कहानी एक ऐसे हीं व्यक्ति की हैं, जिसने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी और सफलता प्राप्त की।
नवजीवन पवार (Navjivan Pawar)
नवजीवन पवार महाराष्ट्र (Maharastra) के रहने वाले हैं। इनका जीवन समान्य नहीं था, इन्हें बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। यहां तक कि इनके भविष्य के बारे ज्योतिषी की राय थी की वो कभी सफल नहीं होंगे। लेकिन फिर भी इन्होंने कभी हार नहीं मानी।
नवजीवन का शिक्षा का सफर
नवजीवन के पिता खेती कर के घर का गुजारा करते हैं और माँ प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका हैं। नवजीवन का ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद उन्होंने यूपीएससी परीक्षा देने का निश्चय किया और उसकी तैयारी करने के लिए वह दिल्ली चले गए। वहाँ जाकर उन्होंने बहुत मेहनत की और जिसमें उन्हें सबसे ज्यादा उम्मीद थी की वो सफल जरूर होंगे। डेढ़ साल बाद जब परिणाम आया तो कुछ अलग ही आया वह उसमें असफल थे। उन्हें इस बात का बहुत बड़ा झटका लगा, परंतु उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी इस कमजोरी को हीं उन्होंने अपनी ताकत बना ली और फिर से मेहनत में जुट गए।
नवजीवन को हुआ डेंगू
नवजीवन रात-दिन पढ़ते हीं रहते थे। परंतु एक दिन वह अपनी क्लास खत्म कर घर आए और सोए तो 48 घंटे तक उठे ही नहीं। यह देख उनके दोस्तों को आश्चर्य हुआ कि आखिर यह सोया क्यों है? तब उनके दोस्त नवजीवन को अस्पताल लेकर गए। वह अस्पताल गए तो पता चला कि उन्हे डेंगू हुआ है। यह खबर सुनते हीं उनके परिवार वाले नवजीवन को नासिक बुला लिए और उन्हें ICU में भर्ती करा दिए।
पिता द्वारा नवजीवन को मिला सीख
इसी बीच उन्हें यूपीएससी प्री में सफलता मिल चुकी थी और मेंस एग्जाम का बस एक महीना बाकी था। नवजीवन इससे परेशान होकर अपने पिता के सामने रोने लगे तो उनके पिता ने उन्हें समझाते हुए एक मराठी कहावत कही जिसका मतलब यह था कि जब किसी पे बहुत ज्यादा मुसीबत पड़ता है तो उसके पास सिर्फ दो विकल्प होता है। पहला वह उससे लड़े और दूसरा उसके लिए रोता रहे। नवजीवन ने अपने पिता की बात समझते हुए कभी ना रोने का निश्चय और उसका डटकर सामना किया।
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मुश्किल समय में बहन तथा भांजी ने की पूरी मदद
नवजीवन इस वक्त बहुत ही कठिन समय से गुजर रहे थे। उनके बाएं हाथ में इंजेक्शन था और डॉक्टरों ने उस हाथ को छूने से मना किया था। जिसकी वजह से वो लिख नहीं पा रहे थे। ऐसी कठिन परिस्थिति में उनकी भांजी ने उनकी बहुत मदद की वो उनके लिए नोट्स बनाया करती थी। सिर्फ इतना ही नहीं नवजीवन की छोटी बहन यूट्यूब से वीडियो सुनाया करती थीं और कोशिश करती थीं कि वह उस वीडियो को सुनकर उससे नोट्स तैयार कर उन्हें दे।
नवजीवन के दोस्तो ने भी उनकी मदद की
नवजीवन के दोस्तो ने भी उनकी पूरी मदद की। किसी ने फोन के जरिए नोट्स भेजे तो किसी ने उन्हें कॉल करके ही पढ़ाया। नवजीवन ने हॉस्पिटल में भी अपनी पढाई को जारी रखा।
शिक्षक ने बढ़ाया मनोबल
एक बार नवजीवन के दोस्तों ने बहुत जिद करके उन्हें एक ज्योतिषी से मिलवाया और उनका हाथ दिखाया। उस ज्योतिषी ने उनका हाथ देख कर कहा कि तुम 27 साल के पूर्व तो कलेक्टर नहीं बन सकते फिर इतनी मेहनत क्यों कर रहे हो। तुम यहां मेहनत करने नहीं बल्कि मौज-मस्ती करने आए हो। यह बात नवजीवन को बहुत बुरी लगी। उसके बाद वह अपने 1 शिक्षक के पास गए जिन्होंने उनकी पीठ थपथपाते हुए कहा तुम एक दिन सफल जरूर होंगे। इससे उनका मनोबल और बढ़ गया।
डेंगू के दौरान उन्हें एक कुत्ते ने भी काटा, साथ ही मोबाइल भी गुम हो गया था। इतने मुश्किलों के बाद भी नवजीवन ने हार नहीं मानी और अपनी कोशिशों को जारी रखा।
नवजीवन को फिल्म के डायलॉग से मिली प्रेरेना
नवजीवन बताते हैं कि उन्हें एक फिल्म के डायलॉग से बहुत प्रेरणा मिलती थी। वह डायलॉग यह था कि किसी भी चीज को अगर पूरे दिल से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हें उससे मिलाने की कोशिश में लग जाती है। नवजीवन ने कहा कि ये बात मेरे दिमाग में हमेशा घूमता रहता। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और वो साल 2018 में IAS ऑफिसर बनें।
The logically नवजीवन पवार की हिम्मत की दाद देता है। उन्होंने जिस प्रकार हर मुसीबत का सामना किया वह हर युवा के लिए एक सीख है।