जीवन है तो बाधाओं और संघर्षों का होना लाजिमी है। बाधाओं के आने पर जिंदगी व्यथित तो हो हीं जाती है लेकिन इंसान के लिए यह उसकी काबिलियत को परखने और प्रदर्शित करने का समय होता है। जो इंसान बाधाओं से डंटकर मुकाबला करते हैं और निरन्तर प्रयास करते हैं उनको सफलता अवश्य मिलती है। इसी क्रम में आज बात एक ऐसे शख्स की जिन्होंने अपनी जिंदगी में बुरा दौर झेला लेकिन उन्होंने बिना हिम्मत हारे अपने हौसले और हुनर से सफलता का परचम लहराया।
कठिन संघर्ष करते रहे लेकिन जारी रखी पढ़ाई
वरुण बरनवाल महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर बोईसार के रहने वाले हैं। उनका बचपन बहुत हीं गरीबी में बीता है। वरुण बरनवाल को पढ़ाई करने का बहुत शौक था। लेकिन पढ़ाई करने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। वरुण बरनवाल ने 10वीं की पढ़ाई पूरी की। आगे की पढ़ाई करने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने एक साइकिल की दुकान में पंक्चर बनाने का काम करना शुरू कर दिया। वरुण बरनवाल ने बताया कि 2006 में 10वीं के परीक्षा दी थी और परीक्षा देने के तीन दिन बाद मेरे पिता की मृत्यु हो गई। जिससे मुझे लगा कि अब मै पढ़ाई छोड़ दूं। लेकिन जब 10 वीं का रिजल्ट आया तो उसमे मैंने स्कूल भर में टॉप किया। उन्होंने बताया कि हमारे घर वालों ने हमें बहुत सपोर्ट किया। उनकी मां ने उनसे कहा कि तुम पढ़ाई पर ध्यान दो, काम हम सब मिलकर कर लेंगे। जब वे 11वीं-12वीं में थे तब वह साल उनका काफी कठिन साल रहा। वे सुबह 6 बजे उठकर स्कूल जाते थे और 2 बजे से रात 10 बजे तक ट्यूशन लेते थे। फिर उसके बाद दुकान का हिसाब भी करते थे।
कुछ लोगों ने वरूण की पढ़ाई में किया मदद
वरुण बरनवाल आर्थिक रूप से बहुत हीं कमजोर थे। 10वीं में दाखिला के लिए घर के पास ही एक अच्छा स्कूल तो था लेकिन उसमें दाखिला लेने के लिए 10 हजार रुपए की फीस लग रही थी। उस वक्त मैंने अपने मां को बोला कि हमारे पास पैसे नहीं हैं इसलिए रहने दो मैं अगले साल दाखिला ले लूंगा। तभी उनके पिता का इलाज करने वाले डॉक्टर वरुण के दुकान के पास से जा रहे थे। वरुण ने उन्हें सारी बातें बताई और उस डॉक्टर ने 10 हजार रुपए निकाल कर वरुण को दे दिए और बोले जाओ दाखिला ले लो। वरुण ने उस स्कूल में दाखिला तो ले लिया लेकिन फिर भी हर महीने लगने वाले फीस की समस्या बनी रह गई। वरुण ने एक बात सोची और अपने प्रिंसिपल से अनुरोध किया। चूंकि वरुण बरनवाल पढ़ने में बहुत तेज थे तो प्रिंसिपल ने उनके 2 साल की फीस माफ कर दी। इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। इस कॉलेज का फीस 1 लाख रुपए थी। तो मां ने किसी तरह इनकी फीस भर दी। लेकिन उनकी समस्या अभी भी खत्म नहीं हुई थी क्यूंकि इस कॉलेज में आगे की फीस भी भरनी थी। फिर उनकी मदद वहां के दोस्तों ने की सभी दोस्तों ने मिलकर उनका फीस दे दिया करते थे। उन्होंने अन्ना हजारे के जनलोकपाल बिल के आंदोलन में भी हिस्सा लिया था।
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कड़ी मेहनत से IAS बनकर पाई सफलता
वैसे तो वरुण बरनवाल को इंजीनियरिंग करने के बाद एक से बढ़कर एक कंपनी से नौकरी के लिए ऑफर आने लगे। लेकिन वरूण ने मन बना लिया था कि उन्हें सिविल सर्विसेज की तैयारी हीं करनी है। उन्होंने सिविल सर्विसेस की तैयारी करने का संकल्प तो ले लिया लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि तैयारी करनी कैसे है। उसी बीच उनके भाइयों ने उनकी काफी मदद की। और वरुण बरनवाल ने अपने मेहनत और कठिन परिश्रम से यूपीएससी की तैयारी की। साल 2013 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दिया जिसमें उन्होंने 26 वां रैंक हासिल किया। उन्हें गुजरात में डिप्टी कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया। वरुण बरनवाल अपने जीवन में बहुत सारी कठिनाइयों का सामना कर अपने हौसले को कभी पीछे हटने नहीं दिया। और वे कभी मुड़ कर पीछे नहीं देखे। इसलिए आज वे एक सफल इंसान बने हैं।
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वरूण बरनवाल जी ने अपनी जिंदगी की बुरे परिस्थितियों को अपनी हिम्मत, दृढ़ संकल्प और अपने प्रयास से हरा दिया। आज वह कई युवाओं के लिए प्ररेणा हैं। The Logically वरूण बरनवाल जी और उनके प्रयासों को नमन करता है।