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खुशियों का दिन, इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस; जानें इस दिन का महत्त्व और लोगों की राय

इंटरनेशल डे ऑफ हैप्पीनेस यानी खुशियों का दिन. इसे हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है. यूं तो खुशी का कोई खास दिन नहीं होना चाहिए लेकिन तनाव के बढ़ते केसेस ने इसे ज़रूरी बना दिया है. सुबह उठकर काम पर जाना और शाम में वहां से लौटना. सुबह से शाम के भाग-दौड़ में शायद हम ज़िंदगी जीना और खुश रहना भूल गए हैं. इसलिए 2013 के बाद से 20 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय रूप से खुशियों के लिए संरक्षित कर दिया गया।

2013 से पूरे विश्व में मनाया जाने लगा इंटरनेशल डे ऑफ हैप्पीनेस

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 12 जुलाई 2012 को एक प्रस्ताव पारित कर इंटरनेशल डे ऑफ हैप्पीनेस मनाने की घोषणा की थी। इसके बाद साल 2013 में पहली बार भूटान में इसे मनाया गया था। इसके बाद दुनियाभर में इस दिन को खुशी के दिन में मनाया जाने लगा।

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खुश रहने के मामले में 149 देशों में भारत 139 वें स्थान पर

UN वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत 149 देशों में से 139 वें स्थान पर है। 2019 में, भारत 140 वें स्थान पर था। फिनलैंड को लगातार चौथे वर्ष दुनिया का सबसे खुशहाल देश घोषित किया गया है। नॉर्डिक राष्ट्र के बाद आइसलैंड, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, स्वीडन, जर्मनी और नॉर्वे इस सूची में शामिल हैं।

इंटरनेशल डे ऑफ हैप्पीनेस दुनिया भर के लोगों के जीवन में खुशी के महत्व को पहचानने के लिए मनाया जाता है। आइए जानते हैं, खुशी के बारे में कुछ लोगों की राय:-

जो चीज़ हमे सुकून देती है, वही खुशी है: अशोक कुमार

Ashok Kumar
Ashok Kumar

अशोक सैंड आर्टिस्ट हैं। इसके अलावा पेंटिंग और गोताखोरी में भी निपुण हैं। खुशी के बारे में अशोक का मानना है, “जो चीज़ हमे सुकून देती है, वही खुशी है; लेकिन इस सुकून को पाने के लिए हमें मेहनत करनी पड़ती है। जैसे मैं आर्टिस्ट हूं और गोताखोर हूं तो मुझे रंगों से और डूबती ज़िंदगी को बचाकर खुशी मिलती है। इस खुशी और सुकून के लिए मैं दिन रात मेहनत करता हूं।

घरवालों के साथ छुट्टी एंजॉय करना और घूमना खुशी है: राकेश रंजन

Rakesh

राकेश इंदौर (Indore) के ‘टैलेंटेड इंडिया’ (Talented India) न्यूजपॉर्टल में एक एडिटोरियल कार्टूनिस्ट के रूप में कार्य करतें हैं। इनका मानना है कि लोगों की खुशियां कम होते जा रही है, जिसका कारण मोबाइल हो सकता है। मोबाइल और सोशल मीडिया की वजह से घर बैठे लोगों के बीच दूरी आते जा रही है। अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए राकेश कहते हैं, “हर उम्र में अलग-अलग तरीके से खुशियां जाहिर करते हैं। जब हमलोग छोटे थे मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलकर खुश हो जाते थे, हमारे पास एक दूसरे को सुनाने के लिए कई कहानियां होती थी लेकिन अब समय बदल गया है, बच्चों की जिंदगी से ये सब चीजें ख़त्म होते जा रही है और इसकी जगह ले ली है सोशल मीडिया की काल्पनिक दुनिया ने।” अपने बारे में बताते हुए राकेश कहते हैं, “मेरे लिए खुशी का मतलब घरवालों के साथ छुट्टी एंजॉय करना और घूमना है।”

अपनी चाहत के अनुसार काम करना खुशी है: सौरभ श्रीवास्तव

Saurabh

सौरभ (Saurabh) पेशे से इंजीनियर हैं। इनका मानना है कि हर किसी की खुशी का अलग-अलग पैमाना होता है। कोई दूसरे की खुशी में खुश हो जाता है तो कोई अपना पसंदीदा काम कर। संक्षेप में कहें तो बगैर किसी को नुकसान पहुंचाए अगर आप अपनी चाहत के अनुसार काम कर रहें हैं तो आप खुश रह सकते हैं। शायद इसलिए भारत की रैंकिंग खुश रहने के मामले में बहुत पीछे है। यहां लोगों के पास रोजगार उनके मन मुताबिक नहीं है। नौकरी करने वाला अपनी नौकरी से खुश नहीं है। स्कूल-कॉलेज जाने वाला बच्चा अपनी पढ़ाई से खुश नहीं है। इश्क यहां अब भी सामाजिक बंधनों से बंधा है। संविधान द्वारा दिए गए कई अधिकार समाज हमसे छीन लेता है। खैर अब लोगों की सोच बदल रही है। हम डार्कर टू ब्राइटर की तरफ यात्रा कर रहे हैं, शायद इस रास्ते में ‘खुशी’ भी हमे मिल जाए। व्यक्तिगत रूप से अपनी खुशी के बारे में बताते हुए सौरभ कहते हैं, “जब मुझ से जुड़े लोग खुश रहते हैं तो मैं भी खुश रहता हूं।”

मन का खुश होना हीं खुशी है: बलबीर के जे सिंह गुलाटी

Balbir

बलबीर (Balbir) दिल्ली (Delhi) आकाशवाणी में एंकर हैं। इनका मानना है कि मन का खुश होना हीं खुशी है। अगर मन खुश है तो हमें हर जगह खुशियां नज़र आती है; हर दिन, पूरी ज़िंदगी प्रसन्नता के साथ जीते हैं और अगर मन उदास हो तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। इसलिए मन का या मन से खुश होना ज़रूरी है। फिर खुशियां भी एक दिन के लिए सिमट कर नहीं रहेंगी।

आज में खुश रहना खुशी है: मेहदी शॉ

Mehadi Shaw

अंतरराष्ट्रीय कलाकार मेहदी शॉ (Mehdi Shaw) का मानना है कि हमारे पास जो भी है, जितना है, उसमें खुश रहने आना चाहिए। खुशियों की अवधि बहुत कम होती है। हमें किसी बड़ी खुशी के इंतज़ार में छोटी-छोटी खुशियों को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए।

खुश दिखने की जगह खुश रहने पर ध्यान दें

Archana

इन सभी लोगों से बात करने के बाद एहसास हुआ कि खुश रहना या खुश होना हमारे ख़ुद पर निर्भर करता है। आज अपनी अपनी ज़िंदगी में हम इतने व्यस्त हो चुके हैं कि चेहरे की मुस्कुराहट भी बनावटी हो गई है। खुश रहने की जगह हम खुश दिखने पर ज़्यादा ध्यान देने लगे हैं। मेरे अनुसार खुशी बड़े घर और बड़ी गाड़ियों की मोहताज नहीं होती। एक छोटा सा बलून और आकाश में स्वतंत्र उड़ती चिड़िया भी आपके चेहरे पर मुस्कुराहट ला सकती है। कलाकार हूं, इसलिए रंग और शब्द भी मेरे खुशी के साथी बन जाते हैं।

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