आज के शौकीन जमाने में तो लोग खादी के कपड़ो का प्रचलन धीरे-धीरे समाप्त हीं दिए हैं। इस भाग दौड़-भरी जिंदगी में लोग तरह-तरह के कपड़ो का तो इस्तेमाल करते हैं, लेकिन भारत के परंपरा में तो खादी तथा खादी के बने कपड़ो का काफी महत्व रहा है।
आजादी की लड़ाई में, महात्मा गांधी ने ग्रामीण स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता के लिए खादी को बढ़ावा देना शुरू किया। उसके बाद खादी भारतीयों के लिए केवल कपड़ा हीं नहीं बल्कि एक विचार है।
आज हम बात करेंगें, खादी तथा इसके उधोग से जुड़ी सभी जानकारियां-
गाँधी जी का खादी से था गहरा नाता
महात्मा गाँधी का खादी से पुराना नाता रहा है। हमलोगों ने ज्यादातर गाँधी जी का फोटो चरखे के साथ हीं सूत काटते हुए देखा है। उन्होंने आजादी के लड़ाई में खादी का हीं सहारा लेकर अंग्रेजो को भारत में आर्थिक रुप से पीछा करने का काम किया था। उनका यह कदम काफी सफल रहा और भारत में विदेशी निवेश न होने के कारण अंग्रेज भारत छोड़ने पर मजबूर हुए थे।
क्या है इतिहास?
हमारे देश में प्राचीन काल से हाथों से धागों की कताई और बुनाई का काम चला आ रहा है। इसका प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता में भी मिलते हैं। खादी के व्यवहार का सबसे बड़ा साक्ष्य मोहनजोदड़ो के पुजारी की मूर्ति है, जिसे कंधे पर लबादे पहने हुए दिखाया गया है। इसमें प्रयोग की गई आकृतियों को आज भी सिंध, गुजरात और राजस्थान में देखा जा सकता है।
फिर मध्यकाल तक, भारत के हाथ से बने हुए मलमल पूरी पूरी दुनिया में विख्यात हो चुका था। शाही घरानों का तो यह प्रतीक बन चुका था। मुगलों के साथ हीं देश में कपड़ों पर होने वाली कई कढ़ाई का प्रवेश हुआ और आज भी इस कढ़ाई के पाश्नी, बखिया, खताओ, गिट्टी, जंगीरा जैसे कई रूप देखने को मिलते हैं।
17वीं सदी के अंत तक, भारतीय सूती वस्त्रों का विस्तार यूरोप में बड़े पैमाने पर हो चुका था। लेकिन अंग्रेजों ने अपना उद्योग स्थापित करने के लिए यहाँ के बुनकरों का कारोबार ही नष्ट कर दिया, ताकि वे यहां राज कर सकें।
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स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता के लिए उपयोग में लाया गया खादी
सन 1915 में, जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे, तो उन्होंने देखा कि यहाँ अंग्रेजों का कपड़ा उद्योग बहुत आगे था। वे भारत से कच्चा माल ले जाकर कपड़े तैयार करते थे। फिर, वे इन कपड़ों को तैयार कर यहीं बेचते थे, जिससे हमारा स्थानीय कारोबार पूरी तरह से खत्म हो चुका था।
गांधी जी ने अंग्रेजों को कमजोर करने के लिए स्थानीय खादी को बढ़ावा देना शुरू कर दिया। इससे भारतीय को जात-पात के भाव को भुलाकर रोजगार के साधन को पुनः विकसित करने में भी मदद मिली।
सन 1920 में विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने की महात्मा गांधी की घोषणा के बाद स्वदेशी आंदोलन के दौरान खादी घर-घर पहुंचा तथा अंग्रेजो को सबक सिखाने का काम आया। इसके अलावें ग्रामीण स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता के लिए खादी को बढ़ावा दिया गया।
90 के दशक के बाद फैशन बना खादी
सन 1989 में, केवीआईसी द्वारा मुंबई में पहला खादी फैशन शो किया गया था। जहाँ 80 से अधिक तरह के खादी वस्त्रों को प्रदर्शित किया गया था। उसके बाद सन 1990 में मशहूर फैशन डिजाइनर, रितु बेरी ने दिल्ली के क्राफ्ट म्यूजियम में प्रतिष्ठित ट्री ऑफ लाइफ शो में अपने खादी कलेक्शन को पेश किया। जिससे फैशन इंडस्ट्री में खादी को एक नई पहचान मिली।
1990 के दशक में खादी का काफी डिमांड बढ़ गया था। आरामदेह होने के कारण उस समय यह आमजनों के बीच काफी लोकप्रिय भी था। उस समय खादी को हर एक ब्रांड से भी टॉप क्वालिटी का दर्जा था और यह एक फायदे का सौदा भी था।
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प्रधानमंत्री के मन की बात में खादी का जिक्र
भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मन की बात में कई बार खादी के महत्व तथा उसको प्रोत्साहित करने पर बल दिया है। मोदी जी ने एक समारोह मे खादी को बढ़ावा देने के लिये नारा दिया था “राष्ट्र के लिए खादी, फैशन के लिए खादी”। इसके परिणामस्वरूप खादी का अधिक व्यापार होना शुरु हो गया।
क्या है खादी ग्रामोद्योग?
भारत में खादी और ग्रामोद्योग से संबंधित सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय (भारत सरकार) के अन्दर आने वाली एक शीर्ष संस्था है, जिसका मुख्य उद्देश्य है –
ग्रामीण इलाकों में खादी एवं ग्रामोद्योगों की स्थापना और विकास करने के लिए योजना बनाना, प्रचार करना, सुविधाएं और सहायता प्रदान करना है। जिसमें आवश्यकतानुसार ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्यरत अन्य एजेंसियों की सहायता भी ले सकती है। इसका मुख्यालय मुंबई में है, जबकि अन्य संभागीय कार्यालय भारत जेदिल्ली, भोपाल, बंगलोर, कोलकाता, मुंबई और गुवाहाटी में स्थित हैं।
खादी ग्रामोद्योग का उद्देश्य
खादी ग्रामोद्योग का भारत के इतिहास में भी हर जगह जिक्र है। खादी ग्रामोद्योग आयोग के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं, जो इसके कार्यों को निरंतर संचालित करते हैं। ये इस प्रकार हैं –
- सामाजिक उद्देश्य – ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराना।
- आर्थिक उद्देश्य – बेचने योग्य सामग्री प्रदान करना
- व्यापक उद्देश्य – लोगों को आत्मनिर्भर बनाना और एक सुदृढ़ ग्रामीण सामाजिक भावना का निर्माण करना। आयोग विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन और नियंत्रण द्वारा इन उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है।
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