भारत में ऐसी कई वीरांगनाएं हुई हैं जिन्होंने अपनी वीरता से देश के दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। बचपन से हीं हम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी सुनते आ रहे है। उनके अलावा भारत में कई और वीरांगनाएं हुई हैं जिन्होंने अपनी वीरता की पराकाष्ठा की। आज हम आपको भारत की एक ऐसी रानी की वीरगाथा बताएंगे जिसके बारे में आपने शायद ही सुना होगा।
भारत की एक ऐसी रानी जिन्हे खुद उनका परिवार हीं त्याग दिया था, परंतु उन्होंने अपनी बुद्धि से ना जानें कितने हीं दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए। इन्हे लोग लंगड़ी रानी के रुप में भी जानते थे। आपको बता दें कि इन्होंने अपने लंगड़ेपन का असर अपने कार्य पर कभी नहीं आने दिया और मेहमूद गजनवी जैसे लुटेरे को एक बार नहीं बल्कि दो-दो बार देश से बाहर निकाला। ऐसी हिम्मत और साहस से भरपूर रानी का नाम था दिद्दा, जिनके बारे शायद हीं किसी ने पढ़ा होगा और सुना होगा।
कौन थी दिद्दा (परिचय)
दिद्दा लोहार राजवंश में जन्मी एक बेहद खूबसूरत बच्ची थी। वो कहते है न कि चांद में एक दाग जरुर होता है और वही रानी दिद्दा के साथ भी था, वह अपंग थी। अपंग होने के कारण इनके मां बाप ने इन्हें त्याग दिया। दिद्दा का पालन पोषण एक नौकरानी ने किया और अपना दूध भी पिलाया। अपंग होने के बावजूद भी वह युद्ध कला और खेलों में निपुणता हासिल की। 1 दिन की बात है जब आखेट के दौरान कश्मीर के राजा क्षेमगुप्त ने इन्हें देखा तो पहली नजर में ही इनसे दिल लगा बैठे। एक पैर से लंगड़ी होने के बावजूद भी इनसे शादी करने के लिए राजी हो गए। क्षेम गुप्त ने उन्हें प्यार और पूरे सम्मान के साथ अपने पास रखा। पुत्र रत्न के साथ-साथ क्षेमगुप्त के राजकाज में भी भागीदारी निभानी शुरू कर दी। इस भागीदार के सम्मान में अपनी पत्नी के नाम पर सिक्का जारी किया। गुप्त एक ऐसे महान राजा थे जिन्होंने पहली बार अपनी पत्नी के नाम से जानें गए।
500 सैनिकों के साथ 35000 दुश्मनों को दी मात
रानी दिद्दा इतनी बुद्धिमान और क्रांतिकारी महिला थी जो कुछ ही मिनटों बाजी पलट कर दुश्मनों के छक्के छुड़ा देती थी। आज पूरी दुनिया जिस सेना के कमांडो और गुरिल्ला वार फेयर पर जंग लड़ती है वह इसी लंगड़ी रानी की वजह से है। अगर हम इतिहास को देखें तो चुड़ैल लंगडी रानी के बारे में पता चलता है कि इन्होंने 35000 सेना की टुकड़ी के सामने 500 की एक छोटी सी सेना के साथ पहुंची और मात्र 45 मिनट में ही युद्ध जीत लिया। आपको बता दें कि यह वही महान वीरांगना है जिनके पति ने अपने नाम के पहले इनका नाम लगाया और वह दिद्दा क्षेमगुप्त के नाम से जाने गए।
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चुड़ैल रानी के नाम से है प्रसिद्ध
इतिहास के पन्नों में कश्मीर की रानी दिद्दा को चुड़ैल रानी का दर्जा दिया गया था, क्योंकि उनकी मानसिक ताकत अच्छे खासे दुश्मनों को और राजाओं को घुटने टेकने पर मजबूर कर देती थी। उनसे बड़े-बड़े महाराजा तक हार मान जाते थे। जब कोई महाराजा इन से हार मान जाते थे तब इन्हें अपनी हारी हुई इज्जत छुपाने के लिए इन्हें चुड़ैल कहना शुरू कर देते थे, इसके बावजूद भी वह चुड़ैल रानी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। बाद में जब इनके पति क्षेमगुप्त की मृत्यु हो गई तब उनके सत्ता हासिल करने के लिए दुश्मनों ने दिद्दा को सती प्रथा का हवाला भी दिया परंतु उन्होंने दुश्मनों की पूरी चाल ही बदल दी और क्षेमगुप्त की पहली पत्नी से सती प्रथा का कार्य करवाया। उन्होंने अपनी शर्तों के बल पर राजगद्दी हासिल की और करीब 50 वर्षों तक शासन किया।
आज इतिहास के पन्नों में भले ही दिद्दा की कहानी धुंधली नज़र आती है परन्तु उनकी कहानी आज भी भारत के लिए गर्व की बात है। दिद्दा एक ऐसी महानायिका थीं जिन्होंने अपनी शर्तों पर जीवन व्यतीत किया और अपने बनाएं नियमों पर कार्य करती थी। उन्होंने पुरुषवादी सोच को भी चुनौती दिया। इनके बारे में जनानेवाला हर शख्स यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि ऐसी महानायिका को समाज ने इतिहास के पन्नों में इतनी कम जगह क्यों दिया।
क्षेमगुप्त की हो गई मृत्यु
1 दिन आखेट के समय क्षेमगुप्त की मृत्यु हो गई। उनके मृत्यु होने के बाद दिद्दा के जीवन में मानो तूफान सी खड़ी हो गई। एक तरफ पति की मृत्यु का दुख और दूसरी तरफ सती हो जाने की परंपरा थी और साथ ही साथ एक नन्हें राजकुमार की ज़िम्मेदारी थी वह करे तो क्या करें। मरते समय राजा को राज्य सुरक्षित हाथों में देने का प्रण उसे यकायक शक्ति प्रदान करता है, जिसकी वजह से उन्होंने सती होने से इनकार कर दिया।
दिद्दा ने संभाली राजपाट
दिद्दा का सफ़र बहुत मुश्किल रहा है। अपनी अपंगता के बाबजूद उन्होंने पति की मृत्यु के बाद राज्य संभालने का निर्णय लिया। इन्होंने कई युद्ध संभाला और विजय प्राप्त भी किया। इनके बदौलत ही गुरिल्ला तकनीक और विश्व की प्रथम कमांडो सेना, एकांकी सेना का निर्माण हुआ।
समय बीतता गया और जिस बेटे के लिए वह जीवित रही उसी बेटे ने इन्हें राजमहल से निकाल दिया। इसके बाद भी इन्होंने जनता से जुड़ाव रखा। मंदिरों के निर्माण से लेकर पूरे एशिया के साथ व्यापार करना और ईरान तक फैले अखंड भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए रणनीति तैयार किया।
इतिहास के पन्नों में देखा जाए तो एक खूंखार मेहमूद गजनवी का भी जिक्र आता है, जिसने भारत में प्रवेश करके बहुत ज्यादा विध्वंस किया। किताबों की बात करें तो मेहमूद गज़नवी के जिक्र का प्रसंग एक ऐसा प्रसंग है जिससे कई लोग वाकिफ भी नहीं है। सोमनाथ मंदिर लूटने वाले और कई शहरों को बर्बाद करने वाले गज़नवी को दिद्दा ने अपनी बनाई हुई रणनीति से एक नहीं बल्कि दो-दो बार भारत में घुसने से रोका और युद्ध में हराया, जिसके बाद उसने अपना रास्ता बदल लिया।
दिद्दा का इतिहास भले हीं कही छुप कर रह गया, परन्तु दिद्दा ने जिस तरह से अपना राज्य संभाला वह भारत के लिए गर्व की बात है। ऐसी तेजस्विनी, बहादुर वीरांगना रानी की कहानी इस लेख के द्वारा लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की गई है।