अगर आपको लगता है कि मोती सिर्फ समुद्री सीपों में हो सकते हैं, तो आप गलत हैं। क्योंकि, केरल के कासरगोड इलाके के एक किसान पिछले दो दशकों से अपने आंगन में बाल्टी में मोती की खेती कर रहे हैं। Pearl cultivation
65 वर्षीय केजे माथचन Mathachan KJ from Kasaragod Kerala अपने तालाब में हर साल 50 बाल्टी से अधिक मोतियों की खेती करते हैं। इनमें से अधिकांश मोतियों को ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, कुवैत और स्विट्जरलैंड निर्यात किया जाता है, जिससे उन्हें हर साल लाखों की कमाई होती है। KJ Mathachan, 65, has cultivated pearls using freshwater mussels
कुछ इस तरह आया आइडिया और हो गई शुरुआत
केजे को अपनी नौकरी के दौरान तीन यात्रा करने का अवसर मिला, वहां उन्होंने मत्स्य अनुसंधान सुविधा का दौरा किया। मत्स्य पालन क्षेत्र में उनकी हमेशा से ही उत्कृष्ट रुचि थी। उन्होंने इस विषय में और जानकारी जुटाई। मोती उगाने के लिए एक डिप्लोमा कोर्स किया जा रहा था, तब उन्होंने सोचा कि यह अक्सर कुछ नया होता है, इसलिए इसे एक बार सीखा जाना चाहिए।
नौकरी छोड़कर डिप्लोमा कोर्स किया
उन्होंने कुछ दिनों के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी ताकि वह डिप्लोमा का कोर्स कर सकें। उन्होंने अपना कोर्स पूरा किया और वर्ष 1999 में तालाब में मोती को उगाना प्रारंभ कर दिया। शुरुआती दौर में उन्हें 1लाख इस कारोबार में लगाएं इससे उन्हें साढ़े 4 लाख रुपये का लाभ मिला।
कैसे होती है मोती की खेती?
मोती के तीन प्रकार होते हैं। एक होता है संवर्धित दूसरा कृत्रिम और तीसरा प्राकृतिक। यह जो मोतियों को उगाते हैं वह मोती संवर्धित मोती होता है। इसकी खेती बहुत ही आसानी तरीके से की जा सकती है। इसके लिए उन्होंने बताया कि यह नदियों से जो सीप लाते हैं उन्हें बहुत ही ध्यान में रखकर खोलते हैं फिर उन्हें जीवाणु युक्त बर्तन में लगभग 15 से 20 डिग्री तापमान के गर्म पानी में रखते हैं। लगभग 2 वर्षों के करीब में नाभिक, यह जो मोती होता है उसके सीप में कैल्शियम कार्बोनेट calcium carbonate इकट्ठा हो जाता है और वह एक मोती के थैले के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इस मूर्ति पर लगभग कोटिंग की 540 परतें उपलब्ध होती है उसके बाद वह एक मोती के रूप में बनकर तैयार होता है।