केला पौष्टिकता से भरा फल है, जो भारत के हर कोने में खाया जाता है। भारत में केले की 500 से अधिक किस्में उगाई जाती हैं। कृषि वैज्ञानिकों की माने तो केले की खेती समुद्र की सतह से 2000 मीटर की ऊंचाई तक किया जाता है। इसके लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस की जरूरत होती है। ज्यादा सर्दी तथा ज्यादा गर्मी दोनों ही केले के पौधों के लिए हानिकारक होते हैं। किसान एक हेक्टेयर खेत में 60 टन केले उगा सकते हैं। – Banana farming
50 हजार की लागत से दो लाख का मुनाफा कमाया जा सकता है
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के समस्तीपुर, बिहार के फल वैज्ञानिक डाक्टर एस के सिंह (S K Singh) ने TV9 हिंदी के माध्यम से केले की खेती से जुड़ी मुख बातें बताई हैं। एक बीघे में जैविक तरीके से केले की खेती करने में 50 हजार रुपये की लागत आती है, जिसमें दो लाख रुपये तक की बचत होती है। किसान खाद के रूप में गोबर का इस्तेमाल करते हैं। केले की कटाई से निकला हुआ कचरा खेत से बाहर नहीं फेंका जाता है। उसे खेत में ही खाद के रूप में तब्दील कर दिया जाता है, जिससे खेत की उपज क्षमता बढ़ती है। – Banana farming
कई तरह की भूमि पर होती है केले की खेती
एस के सिंह के मुताबिक जमीन के बारे में पूरी जानकारी होना बहुत जरूरी है क्योंकि इसकी खेती कई तरह की भूमि पर की जा सकती है। किसी भी मिट्टी को केला की खेती के लिए उपयुक्त बनाने के लिए मृदा की संरचना को सुधारना तथा उत्तम जल की व्यवस्था करना बेहद जरूरी है। आमतौर पर केला 4.5 से लेकर 8.0 तक पी.एच मान वाली मिट्टी में उगाया जाता है। केले की खेती अगर सही ढंग से की जाए तो मुनाफा कई गुना बढ़ जाता है।- Banana farming
यह भी पढ़ें :- इंजीनियरिंग करने के बाद छोड़ी अपनी प्राइवेट नौकरी, शुरू किये खेती और खड़ी कर दी 2.5 करोड़ की कम्पनी
एक पौधे से 6 फीट की दूरी पर दूसरे पौधा लगाएं
केले की खेती में एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 6 फीट होना चाहिए, जिससे एक एकड़ में 1250 पौधे आसानी से लग सकते हैं। पौधों के बीच की दूरी सही हो तो फल एक समान होते हैं। इसमें प्रति एकड़ डेढ़ से पौने दो लाख रुपये की लागत होती है, जिससे 3 से साढ़े तीन लाख रुपये तक का मुनाफा होता है। एक साल में इसके जरिए दो लाख रुपये तक का मुनाफा हो सकता है। एक ही किस्म को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नाम से जाना जाता है। राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के पास केला की 79 से ज्यादा प्रजातियां संग्रहित हैं। – Banana farming
केले के पौधे का तना कोमल होता है
केला का पौधा बिना शाखाओं वाला कोमल तना से निर्मित होता है, जिसकी ऊचाई 1.8 मीटर से लेकर 6 मीटर तक होता है। जिसे झूठा तना या आभासी तना कहा जाता है क्योंकि यह पत्तियों के नीचले हिस्से के संग्रहण से बनता है। जमीन के नीचे होने वाले तना को प्रकन्द कहते हैं, जिसके मध्यवर्ती भाग से पुष्पक्रम निकलता है। यह सकर पतली व नुकीली पत्तियों वाले होते है। यह देखने में कमजोर होते हैं लेकिन प्रवर्धन के लिए अत्यधिक उपयुक्त होते हैं। – Banana farming
केले के प्रकन्द से ही नए पौधे तैयार होते हैं
सकर चौड़ी पत्तियों वाले होते हैं, जो देखने में मजबूत लगते हैं लेकिन आन्तरिक रूप से ये कमजोर होते हैं। सकर सदैव स्वस्थ उच्च गुणवत्ता वाली किस्मों के पौधों से ही लेना चाहिए क्योंकि इसमें रोग और कीड़ों का डर नहीं होता। दो तीन माह पुराना ओजस्वी सकर प्रवर्धन के लिए अच्छा होता है। केले के प्रकन्द से ही नए पौधे तैयार होते हैं। अधिक पौधे जल्द तैयार करने के लिए इसके टुकड़े को काटकर प्रयोग में लाया जाता है, जिसमें समय जरूर लगता है लेकिन पहली फसल के पौधे अधिक समरूप होते हैं।- Banana farming
यह भी पढ़ें :- IIT से पढ़ाई करने के बाद इन दोस्तों ने शुरू किया रूफ फार्मिंग का काम, छत पर क्विंटल भर सब्जी उगाने की तरकीब बना डाली: Khetify
एक बराबर करना चाहिए रोपण
प्रकन्द का औसत वजन लगभग एक से डेढ़ किलोग्राम होना चाहिए। सकर की खुदाई के बाद उसकी सफाई करने के पश्चात् उसका कार्बेन्डाजीम (0.1%) मोनोक्रोटोफास (0.2%) के जलीय घोल में 90 मिनट तक डालकर शोधन करते हैं। उसके बाद सकर को 7 दिन तक धूप मे रखकर उसको जीवाणु/फफूंद विहीन कर देते हैं। इसकी रोपण एक बराबर करना चाहिए, जिससे उसकी कटाई एक सामन हो सकें।- Banana farming
केले के पौधे के अनेक फायदे
डाक्टर एस के सिंह (S k Singh) के अनुसार पिछले कुछ वर्षो से ऊतक संवर्धन (टिसु कल्चर) विधि द्वारा केले की उन्नत प्रजातियों के पौधे तैयार किये जा रहे हैं। इससे किसानों को अधिक लाभ होता है। यह पौधे स्वस्थ और रोग रहित होते हैं। इसके सभी पौधों में पुष्पन, फलन, कटाई एक साथ होती है, जिससे इसके विपणन में सुविधा होती है। फलों का आकार-प्रकार एक समान एवं पुष्ट होता है, जिसकी तुलना में ऊतक संवर्धन द्वारा तैयार पौधों में फलन लगभग 60 दिन पूर्व हो जाता है। – Banana farming
इस तरह करना चाहिए केले के पौधे के गड्ढें
केला की खेती के समय सभी बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना बहुत जरूरी है। जिसमें बाग लगाने का समय, पौधे तथा पंक्ति से पंक्ति दूरी, सकर का चुनाव या ऊतक सवर्धन द्वारा तैयार पौधों का चयन करना शामिल है। इसके लिए 30 x30 x 30 सें. मी. या 45 x 45 x 45 सें. मी. आकार के गड्ढें, 1.8 x 1.8 मीटर (बौनी प्रजाति हेतु) या 2 x2 मीटर (लम्बी प्रजाति हेतु) की दूरी पर खोद लें। यह मई-जून तक कर लेना चाहिए। उसके बाद 15 दिन तक इस गड्ढें को ऐसे ही छोड़ देना चाहिए। कड़ी धुप लगने से कीट, फफूंद, जीवाणु और कीट नष्ट हो जाते हैं। गड्ढों की मिट्टी 20 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद (कम्पोस्ट) एक किलो अंडी की या नीम की खल्ली, 20 ग्राम फ्यूराडान मिट्टी में मिला देना चाहिए जिससे गड्ढा भर जाए।
ऐसे होती है केले की खेती
समस्याग्रस्त मृदा में इस मिश्रण के अनुपात को बदला जा सकता है। जैसे- अम्लीय मृदा में चूना, सोडीयम युक्त मृदा में जिप्सम तथा उसर मृदा में कार्बनिक पदार्थ एवं पाइराइट मिलाने से मृदा की गुणवत्ता में सुधार होता है। पॉलीथिन में 8-10 इंच उंचाई के ऊतक संवर्धन द्वारा तैयार पौधे रोपण के लिए उपयुक्त होते हैं। पहले से भरे गये गढ्ढों के बीचों-बीच मिट्टी के पिन्डी के बराबर छोटा सा गढ्ढा बनाकर पौधे को सीधा रख देना चाहिए। पौधे की जड़ों को बिना हानि पहुचाएं पिन्डी के चारों ओर मिट्टी भरकर अच्छे से दबा देना चाहिए ताकि सिंचाई के समय मिट्टी में गढ्ढे न पड़े। – Banana farming
रोपण के बाद 12-13 महीने में ही केले की पहली फसल
इस प्रकार रोपण के बाद 12-13 महीने में ही केले की पहली फसल प्राप्त हो जाती है। इसकी औसत उपज 30-35 किलोग्राम प्रति पौधा तक मिलती है। पहली फसल के बाद दूसरी फसल (रैटून) में गहर 8-10 माह के भीतर आ जाती है। इस प्रकार 24-25 महीने में केले की दो फसलें लगाई जा सकती हैं। ऐसे पौधों के उगाने से समय और धन दोनों की बचत होती है। इसके जरिए किसानों को सालाना लाखों का मुनाफा होगा। – Know the details of Banana farming