यदि हम गरीब परिवार में जन्म लेते हैं तो उसमें हमारा कोई दोष नहीं होता है। परंतु यदि हम अपने जीवन में अपनी और अपने परिवार की गरीबी को दूर करने की कोशिश नहीं करते हैं तो इसमें बेशक हमारी गलती है। मनुष्य को अपने जीवन में हमेशा कुछ अच्छा करने और आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। इन्सान की कोशिश ही है जो एक गरीब को भी अमीर बना देता है। कुछ इसी से मिलती-जुलती कहानी है मंजुला वाघेला की। आईए जानते हैं उनके बारे में….
एल समय था जब मंजुला वाघेला कूड़ा बिनकर 5 रुपये से अपना गुजारा करती थीं परंतु आज वह अपनी कोशिशों की वजह से करोडों की मालकिन बन गईं हैं। उनकी कहानी बेहद प्रेरणादायक है। “मुश्किलें अक्सर साधारण लोगों को आसाधारण सफलता के लिए तैयार करती हैं।” इस पंक्ति को एकदम सही साबित किया है मंजुला वाघेला ने।
मंजुला वाघेला कठिन मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटती हैं। वह जब 5 रुपए की आमदनी करती थीं उस समय भी वह सुबह उठ जाती थीं। वह एक बड़ा थैला लेकर निकल जाती थीं तथा लोगों के द्वारा फेंके गए कूड़े में से रीसाइक्लिंग मैटेरियल को छांट कर अलग करतीं। सभी चीजों को इकट्ठा कर के कबाड़ वाले के पास बेच देतीं। मंजुला वाघेला की जिंदगी ऐसी ही चल रही थी तभी उनके जीवन में एक नया बदलाव आया। उनकी मुलाकात सेल्फ एम्प्लॉयड वीमेंस एसोसिएशन की संस्थापक इला बेन भट्ट से हुई। 40 सदस्यों वाली वह श्री सौंदर्य सफाई उत्कर्ष महिला सेवा सहकारी मंडली लिमिटेड के निर्माण में मंजुला की सहयता करती है। मंजुला के लिए इस बिजनेस को खड़ा करना बेहद चुनौतीपूर्ण था। उसके अलावा मंजुला पर एक और बड़ा संकट दस्तक दिया। मंजुला के पति अपने पीछे एक छोटे बच्चे को छोड़कर इस दुनिया से हमेशा के लिए चले गये।
पति के देहांत के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी मंजुला के कंधो पर आ गई। लेकिन मंजुला अपने मार्ग पर अडिग थी इसलिए पति के जाने का दुख भी उन्हे उनके मार्ग से हटा नहीं सका। वह अपने लक्ष्य के प्रति सजग थीं, उन्हें कोई उससे अलग नहीं कर सकता था। उसके बाद तुरंत ही मंजुला को सौंदर्य मंडली को पहला ग्राहक नेशनल इंस्टीट्युट ऑफ डिजाईन मिल गया था। मंजुला ने इंस्टीट्यूट, घरों, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सेवाएं देना शुरु कर दिया। उन्होंने गुजरात के इन्टरनेशनल इवेंट वाइब्रेट को भी सफाई की सेवा दिया।
चिथरो से कचरा बिटोरने वाली सौंदर्य मंडली ने बहुत लम्बा सफर तय किया था। वह अनेकों आधुनिक उपकरण और टेक्नोलॉजी का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए हाई-जेट प्रेशर, माइक्रो फाईबर मॉप्स, रोड क्लिनर्स, फ्लोर क्लिनर्स, स्क्रबर्स आदि। आज के जमाने मे बड़ी-बड़ी कंपनिया और संगठन साफ-सफाई के कार्य और कॉनट्रैक्ट्स के लिए ई-टेंडर इशू करती है। मंडली के लिए यह थोङा मुश्किल है। मंडली इस समस्या के निवारण के लिए ऐसे लोगों को नौकरी पर रख रही हैं जिन्हें उसके बारे में जानकरी प्राप्त हो।
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मंजुला वाघेला अपने कार्य के बीच अपने बेटे का भी ध्यान रखती थीं। वह इस बात का भरपूर ध्यान रखती थीं कि उनके बेटे का बचपन भी उनके जैसा न गुजरे तथा वह अपने बेटे के मेडिकल स्कूल के लिए पैसे इकट्ठा कर सके। मंजुला तथा उनके बेटे के संघर्षों के लिए उन्हें कॉलेज में सम्मानित भी किया गया है।
मंजुला वाघेला वर्ष 1981 तक दिनभर सडकों से कूड़ा बिनने के बाद बहुत ही मुश्किल से 5 रुपये की आमदनी कमा पाती थीं। परंतु वर्ष 2015 के आँकड़े के अनुसार उनका वार्षिक टर्न ओवर एक करोड़ रुपये था। वर्तमान मे वह क्लिनर्स को-ओपरेटिव की प्रमुख के रूप में कार्य कर रही हैं। इस संस्था में 400 सदस्य हैं। क्लिनर्स को-ओपरेटिव गुजरात में 45 इंस्टीट्यूट और सोसायटीज को क्लीनिंग और हाउसकिपींग की सुविधा उपलब्ध करवाते हैं।
The Logically मंजुला वाघेला को उनके प्रयास के लिए नमन करता है।