“Without mathematics there is nothing you can do. Everything around you is mathematics. Everything around you is numbers”
“गणित के बिना आप कुछ नही कर सकते। आप के चारों ओर सबकुछ गणित ही है। आप के चारों ओर सबकुछ संख्या है”
गणित (mathematics) के प्रयोग के संबंध में शकुंतला देवी ”ह्रयुमन कम्प्यूटर”(Shakuntala Devi ‘Human Computer) के इस कथन को कभी नही झुठलाया जा सकता। सच तो यह है कि आरंभ से ही हमारे जीवन में गणित का खासा महत्व रहा है। इतना ही नही, विज्ञान जो कालांतर से आजतक नित नवीन ऊंचाईयां हासिल कर रहा है, उसी विज्ञान की प्रत्येक शाखा में गणित का विशेष महत्व है।
दुनियाभर में गणित का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है। आज से 4000 वर्ष पहले बेबीलोन तथा मिस्र सभ्यताएं गणित का प्रयोग पंचाग यानी कैलेंडर बनाने के लिए किया करती थीं। वहीं भारत में वैदिक काल से ही गणित के उपयोग के प्रमाण मिलते आये हैं। गणित संबंधी शाखाएं जैसे संख्या, शून्य, स्थानीय मान, अंक-गणित, ज्यामिती, बीजगणित, कैलकुलस, वर्गमूल, घनमूल आदि का अविष्कार प्राचीन काल ही भारत में होने लगा था। आइये, इस लेख के माध्यम से हम जानते हैं कि गणित की विभिन्न शाखाओं की खोज कब और किस भारतीय गणित विद्वान द्वारा की गई।
ज़ीरो (Zero)
भले ही ज़ीरो का कोई मान न हो लेकिन इसी ज़ीरो के बिना मानों गणित अधूरा है। ऐसे में, ज़ीरो या शून्य का अविष्कार गणित के क्षेत्र में एक क्रांति कहा जा सकता है क्योंकि इससे पूर्व गणितज्ञों(Mathematicians) को संख्याओं को गिनने और मैथ्स संबंधी प्रश्नों को हल करने में दिक्कतें आया करती थीं। इन्ही समस्याओं का हल निकालने के लिए महान भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट(Aryabhatt) ने शून्य(Zero) का अविष्कार किया । लेकिन शून्य के सिद्धांत न देने के कारण आर्यभट्ट केवल इसके जनक माने जाते हैं जबकि ब्रह्रमगुप्त (Brahmagupta) ने ज़ीरो को शुरुआत से ही कई सिद्धांतो के साथ पेश किया। इसलिए ज़ीरो के अविष्कारक के रुप में किसका नाम पहले लिया जाये ये आज तक चर्चा का विषय बना हुआ है। लेकिन Zero की खोज के बाद आज हम जटिल समीकरणों को हल करने, कॉम्पलेक्स मेथ्मैटिकल कंम्प्यूटर इक्वेशंस को सॉल्व करने में सक्षम हो पाये हैं।
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ज़ीरोइग्र इंडिया फाउंडेशन के मुताबिक – “Zero को व्यापक रुप से मानव इतिहास में सबसे बड़े नवीन अविष्कारों में से एक मानना बेशक ही सही है, यही मॉर्डन मैथ्स और फिज़िक्स की आधारशिला भी है”
बीजगणित (Algebra)
बीजगणित, गणित की व्यापक शाखाओं में से एक है। किसी भी मैथ्स इक्वेशन को सोल्व करते वक्त उनकों ग्रुप्स, स्ट्रिंग और फील्ड के रुप में इमेजनरी कॉन्सेप्ट या सिम्बलस्(symbols) के रुप में पिरोना ही Algebra का काम है। जैसे (a, b, c……..x, y, z), (operation signs …. +, -, *……) (relation signs…… =,<, >) । Algebra भारत में 5वीं शताब्दी के आस-पास की एक गणितीय प्रणाली है जिसने खगोलीय गणना (Celestial Counting) को भी सरल बना दिया जिसे पूर्व में काफी कठिन माना जाता था। मध्यकाल में हिंदु गणित की एकमात्र लिखित पुस्तिका ‘भक्षाली गणित’ को बीजगणित के एक स्रोत के रुप में देखा गया है।
त्रिकोणमिति(Trigonometry)
भले ही आधुनिक त्रिकोणमिति या Trigonometry के उद्भव के लिये आइज़ेक न्यूटन(Issac Newton),लेस्बिन (Lebiniz) या जेम्स ग्रेगोरी(James Gregory) का नाम बड़ी शान से लिया जाता हो लेकिन Trigonometry के प्राचीन नमूने आर्यभट्ट प्रतिपादित ‘सूर्यसिद्धांत’ में दिखाई पड़ते हैं। Trigonometry में नवीन बदलाव लाने के लिए भारत से यह अरबों और वहां से यूरोप के पास चला गया। आर्यभट्ट प्रतिपादित ‘सूर्यसिद्धांत’ में खगोलशास्त्रीय सिद्धांतो (Astronomical Principals) के बारे में बताया गया है। प्राचीन गणितज्ञ आर्यभट्ट, ब्रह्रमगुप्त और भास्कर – प्रथम व द्वितीय नें अधिक कोण- 90 डिग्री, तीव्र कोण -18 डिग्री, 36 डिग्री, 54 डिग्री और 72 डिग्री कोणों के लिए प्रिंसिपल्स दिये थे।
दशमलव प्रणाली(Decimal System)
दुनियाभर में आज जिस Decimal System का प्रयोग हो रहा है उसे पहले भारत में खोजा गया था। प्राचीन काल में ब्रह्रमगुप्त ने द्विघात समीकरणों को हल करने के लिए quadric Formula बनाया था। Decimal System में संख्याओं का प्रतिनिधत्व करने वाले हिंदु-अरबी अंको – 1 से लेकर 0 तक भारत में 6वीं या 7वीं शताब्दी में उत्पन्न हुए थे और मध्य-पूर्व के गणितज्ञों जैसे अल-ख्वारिज़मी और अल किंडी(Al – Khwarizmi and Al-Kindi) के ज़रिये 12 वी सदी के दौरान यूरोप चले गए।
फिबोनेकी संख्या (Fibonacci Number)
Fibonacci Numbers जिसे संख्याओं के एक स्ट्रिंग के रुप में माना जाता है। जिसमें एक संख्या को पूर्व की दो संख्याओं को जोड़कर पाया जाता है। इसके बारे में सबसे पहले जानकारी विरहनका, गोपाल और हेमचंद्र के पिंगला(Pingla) में मिलती है। बता दें कि Fibonacci Number 0 और 1 से शुरु होकर यह क्रम 0, 1, 1, 2 ,3, 5, 8, 13, 21, 34…. इसी क्रम में गिनी जाती हैं।
लंबाई(Length)
हडप्पा और मोहनजोदाडों और सिधुं घाटी सभ्यता के दौरान हमें लंबाई की माप के प्रमाण भी मिलते हैं । जिसे मोहनजोदाड़ो-रुलर के रुप में जाना जाता है। जिसकी लंबाई 1.32 इंच है। इसके अलावा एक अन्य पैमाना कांसे की रोड के रुप में पाया जाता है जिसकी लंबाई 0.367 है, जो इस काल में एकदम सटीक माना जाता था।
वज़न (Weight)
गणित की एक अन्य ईकाई वज़न भी सिंधु धाटी में इस्तेमाल की जाने वाली ईकाइयों में से एक है। जिसमें उस समय के मानक भार और अन्य यंत्रों को अपनाने से देश की वास्तुकला, लोक और अन्य धातु से बनी कलाकृतियों से परिलक्षित होता है। जो उस समय में बाइनरी और दशमलव सिस्टम पर ही आधारित था।
ज्यामिती(Geometry)
प्राचीन भारत के इतिहास में पाये जाना वाला ‘सुल्वा सुत्र’ जिसका अर्थ- ‘नियम का नियम’ है उसमें मंदिरों और वेदियों के निर्माण में ज्यामिती प्रणाली को अपनाते हुए दर्शाया गया है। बेशक ही ज्यामिती(Geometry) के क्षेत्र में भी भारतीय गणितज्ञों का खासा योगदान रहा है। ऐसे में रेखा गणित या ज़्योमेट्री विभिन्न प्रयोगों के लिए आवश्यक समझा जाता रहा होगा। इस क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण कार्य जैसे आपस्तंबन, बौधायन, हिरण्यकेशिन, वराह और वधुला को खास माना जाता है।
अनंत श्रृखंला(Infinite Series)
केरल स्कूल ऑफ एस्ट्रोनॉमी एंड मैथेमैटिक्स(Kerala School of Astronomy and Mathematics) के संस्थापक माधव (Madhav)महान भारतीय गणितज्ञ व खगोलविद थे। 1340-1425 के बीच माधव नें अनंत श्रृखंला, कैलकुलस, ट्रिक्नोमेट्री और एलजेब्रा के अध्ययन में विशेष योगदान दिया। उन्होनें ट्रिक्नोमेट्री समीकरणों की एक लम्बी सीरीज़ के लिए Infinite Series का प्रयोग सबसे पहले किया था।
बाइनरी कोड (Binary Code)
बाइनरी नंबर्स, जो कंम्प्यूटर ऑपरेशन के लिए आधार बनाते हैं कि खोज का श्रेय जर्मन मैथ्मेटिशियन गॉटफ्रीड लिज़बिन को 1695 में बनाने के लिए जाता है। लेकिन कुछ शोधों के ज़रिये ये सबूत मिले हैं कि भारत में दूसरी शताब्दी से पहले ही इन बाइनरी नंबर्स की खोज की जा चुकी थी जोकि पश्चिम में इन नंबरों की खोज किये जाने से 1500 साल पहले की बात मानी जा रही है। इस खोज का स्रोत पिगंला में निहित एक छंदशास्त्र को माना जा रहा है।
वर्गमूल और घनमूल (Squre Root and Cube Root)
प्राचीन भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट को गणित की एक अन्य प्रणाली वर्गमूल और घनमूल को खोजने का श्रेय भी जाता है। उनकी कृति आर्यभट्टिया(Aryabhatiya) के आधार पर Squre Roots और Cube Roots के लिए सिम्पल डिजिट बाई डिजीट एल्गोरिदम() के उदाहरणों को देखा जा सकता है। आगे चलकर अन्य गणितज्ञों जैसे सिद्धसेना गनी, भास्कर, श्रीधरा ने थोड़े-बहुत बदलावों के साथ वर्गमूल और घनमूल के इन्ही सिद्धांतो को अपनाया।