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MBA करने के बाद नौकरी में नहीं लगा मन तो शुरु की जैविक खेती, अब 18 देशों से खेती की तकनीक सीखने आते हैं लोग

आजकल लोगों को नौकरी करने से बेहतर खुद का कुछ करना अधिक पसंद आ रहा है फिर चाहे वो कोई व्यवसाय हो या फिर खेती-बाड़ी। हालांकि, वे खेती-बाड़ी में भी सफलता हासिल करके बेहतर कमाई कर रहे हैं। यह कहानी भी एक ऐसे ही किसान की है जिसका मन नौकरी में नहीं लगा तो खेती-बाड़ी का विकल्प चुना और आज उससे 18 देशों के लोग खेती की नई तकनीक सीखने के लिए आते हैं।

कौन है वह किसान?

हम बात कर रहे हैं प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह (Farmer Prem Singh) की, जो बुंदेलखंड (Bundelkhand) के बांदा जिला (Banda District) मुख्याल से 6 किलोमीटर दूर स्थित बड़ोखर खुर्द (Barokhar Khurd) गांव की निवासी हैं। उन्होंने 80 के दशक में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से MBA पोस्ट ग्रेजुएट की शिक्षा हासिल किया है। प्रेम सिंह ने खेती में नए-नए प्रयोग के जरिए अपने इलाके की काया पलट कर दी है। इतना ही नहीं उन्होंने खेती करने की एक नई तकनीक भी विकसित की है जिसके बारें में जानने और सीखने के लिए उनके पास दुनियाभर से लोग आते हैं।

नौकरी छोड़ लौट आए घर

प्रेम सिंह ने MBA की शिक्षा हासिल करने के बाद बाकी लोगों के भांति ही नौकरी करने का फैसला किया लेकिन उन्हें 9 से 5 वाली नौकरी रास नहीं आई। कई बार लोग न चाहते हुए भी और कोई दूसरा रास्ता न मिलने की वजह से नौकरी करते हैं लेकिन प्रेम सिंह उनलोगों में से नहीं हैं। उनके पास अपनी काफी अधिक जमीन थी जिसपर वह खेती कर सकते थे।ऐसे में उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला किया और घर वापस लौट आएं।

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खेती करने का लिया फैसला

किसान प्रेम सिंह ने नौकरी छोड़ने के बाद कुछ अलग करने का सोचा और इसके लिए उन्होंने खेती का चयन किया। उन्होंने 25 एकड़ भूमि पर जैविक खेती (Organic Farming) की शुरूआत की और फिर कभी दोबार पीछे मुड़कर नहीं देखा। तकरीबन 30 वर्षों से ओर्गेनिक फार्मिंग करने के दौरान ही उन्होंने खेती की नई तकनीक की खोज कर ली है, जिसका प्रशिक्षण लेने के लिए उनके पास लोगों भी भीड़ लगी रहती है। उनके पास सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विश्व के 18 देशों के किसान भी आ चुके हैं।

MBA Farmer Prem Singh from Bundelkhand Doing Organic Farming for 30 years

क्या कहते हैं प्रेम सिंह…

NBT की रिपोर्ट के मुताबिक प्रेम सिंह (Prem Singh) ने बताया कि, कोई भी किसान भाई ऐसा कर सकते हैं। आज हम ओर्गेनिक फार्मिंग कर रहे हैं जबकी शुरु से ही हमारी धरती पर ओर्गेनिक फार्मिंग का चलन था। सभी के पास बगीचे, पशु थे जिससे जैविक खाद बनाकर खेतों में डाला जाता था। यदि खेतों में कीट हो जाएं तो उसे भगाने के लिए चूल्हें की राख का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन आज के जमाने में कोई भी जानवरों को नहीं पाल रहा है और मार्केट में मौजूद जहरीली कीटनाशक का छिड़काव अपने-अपने खेतों में धरल्ले से किया जा रहा है।

18 देशों के किसान आ चुके हैं नई तकनीक को सीखने

प्रेम सिंह बताते हैं कि, खेती शुरु करने से पहले उन्होंने पशुपालन (Animal Husbandry) और बागवानी (Gardening) के मॉडल को अपनाया। इस मॉडल के तहत उन्होंने एक हिस्से में पशुओं का पाला, उसके दूसरे हिस्से में चारा की व्यवस्था की और तीसरे हिस्से में जैविक खेती की शुरूआत की। उन्होंने अपनी इस खेती को “आवर्तनशील” (Avartansheel Kheti) नाम दिया। खेती की इस नए मॉडल में उन्हें सफलता हासिल हुई फिर क्या था उनके पास इजराइल, अमेरिका और अफ्रीकी देशों के किसान इस तकनीक के बारें में जानने के लिए आने लगे। अभी तक उनके पास 18 अलग-अलग देशों के किसान रिसर्च करने के लिए आ चुके हैं।

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संतुलनपूर्वक खेती करते हैं प्रेम सिंह

वह कहते हैं आवर्तनशील खेती में नुकसान होने का खतरा कम रहता है। वह काफी संतुलन में खेती करते हैं। इसके बारें में बताते हुए कहते हैं कि संतुलन के 5 प्रकार होते हैं- जल संतुलन, वायू संतुलन, ताप संतुलन, उर्वरा संतुलन और ऊर्जा संतुलन। प्रेम सिंह के खेती करने के तरीके में वह जितनी मात्रा में पानी का इस्तेमाल करते हैं उससे अधिक रिचार्ज करते हैं और इसी प्रकार वे खाद भी उत्पादन से अधिक डालते हैं।

वह खाद (Fertilizer) के रूप में पशुओं के गोबर का इस्तेमाल करते हैं और इसके लिए वह गाय, भैंस, बकरी और मुर्गी पालन करते हैं। उनके अनुसार, मुर्गी की खाद में कैल्शियम और फास्फोरस की मात्रा अधिक पाई जाती है जबकि बकरी की खाद में मिनरल की मात्रा अधिक होती है। वहीं गाय और भैंस की खाद में कार्बन अधिक होता है। इन सभी पशुओं के गोबर को एक निश्चित प्रक्रिया से गुजारने के बाद खेतों में इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा ताप और वायू को संतुलित करने के लिए उन्होंने बगीचा उगाया है।

कई लोगों को दिया रोजगार

आमतौर पर किसान भाई उपज को सीधे बाजार में बेच देते हैं लेकिन प्रेम सिंह उपज को बाजार में न बेचकर उससे प्रोडक्ट बनाते हैं और तदोपरांत उसकी बिक्री करते हैं जिससे उन्हें अच्छी कमाई होती है। वे गेंहू से दलिया और आटा बनाकर बिक्री करते हैं, जिसकी कीमत दिल्ली जैसे बड़े-बड़े शहरों में काफी अधिक होती है। इतना ही नहीं वह मुरब्बा, बुकनू और आचार जैसे प्रोडक्ट भी बनाते हैं। इन सभी कामों के लिए वर्कर की जरुरत होती है, ऐसे में उन्होंने गांव की महिलाओं को काम देकर उन्हें रोजगार से जोड़ा है।

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