अपने कैरियर में एक अच्छी नौकरी तो हर कोई चाहता है और अगर बात कॉर्पोरेट नौकरी की बात हो तो फिर पूरी लाइफ सेट है, लेकिन आज हम एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बात करेंगे जो कभी अंडर-19 हॉकी मैं नेशनल लेवल तक खेल चुका है। उसके बाद उन्होंने कॉर्पोरेट की नौकरी की जिसमें वह बिरला रिटेल स्टोर के पंजाब हेड रह चुके हैं।
दरसल आज हम बात कर रहे हैं मोहनजीत धालीवाल (Mohanjit Dhaliwal) की, वह स्कूल कॉलेज के दिनों में स्पोर्ट्स में काफी एक्टिव रहते थे परंतु कंप्यूटर के सामने बैठ कर काम करने के बाद वाह आउटडोर नहीं रहे। – Mohanjit Dhaliwal quit his corporate job and started growing forests.
नेशनल लेवल पर खेलने के बावजूद रनिंग करने में हुई समस्या
मोहनजीत एक घटना के विषय में बताते हुए कहते हैं कि एक बार वह अपने परिवार के साथ हेमकुंड साहब गए थे। वहां वह अपने मामा के साथ रनिंग के लिए निकले उनके मामा योगा करते थे, जिस वजह से वह जल्द ही दो से तीन किलोमीटर की लीड ले लिए। मोहनजीत के अनुसार उनके मामा 60 साल के थे जबकि वह 35 साल के ही थे। यह देख उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ कि वह कभी नेशनल लेवल पर खेला करते थे, परंतु कॉर्पोरेट नौकरी ने उनका क्या हाल कर दिया।
कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ने का किए फैसला
मोहनजीत बताते है कि मैं पहले दो-तीन घंटे खेल कर भी नहीं थकता था, परंतु नौकरी ने मेरी क्या स्थिति कर दी। वह पहले से ही नौकरी छोड़ कुछ और करना चाहते थे, लेकिन इसके बाद उन्होंने कुछ नया करने का फैसला कर लिया। मोहनजीत अब कंप्यूटर और सिटी लाइफ छोड़कर फिजिकल काम करना चाहते थे। उनका पंजाब (Punjab) के फतेहगढ़ साहिब में कुछ जमीन पहले से था, जहां से उन्होंने इसकी शुरूआत की। शुरूआत में समस्याएं तो बहुत आई, परंतु वह हार नहीं माने और आगे बढ़ते रहे। – Mohanjit Dhaliwal quit his corporate job and started growing forests.
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बहन ने दिया साथ
परिवार के कुछ लोग उनके खिलाफ जरूर हुए, लेकिन उनकी बहन और कुछ रिश्तेदारों ने उनका खूब साथ दिया। उनकी बहन खुद कॉर्पोरेट कल्चर में काम करती थी इसलिए उन्हें पता था कि कॉर्पोरेट की जिंदगी आगे जाकर बहुत कष्ट देने वाली है। मां इसे समझ नहीं पाई इसलिए उनके अंदर डर था, हालांकि धीरे-धीरे उन्हें यह समझ आया। वह अक्सर मोहनजीत को कहती थी कि तुम अकेले यह क्यों कर रहे हो, जरूर कुछ न कुछ गड़बड़ है।
मोहनजीत अपने फैसले पर रहे अटल
हालांकि मोहनजीत की वाइफ को आज तक यह काम समझ नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है। वह ना तो अपने वाइफ और ना ही अपने बच्चे पर कभी इसे समझने का प्रेशर डाले। उनके एक दोस्त ने उनसे कहा था कि मछली पत्थर चाट कर ही वापस आती है मतलब मछली तब तक वापस नहीं आती है, जब तक उसे समुद्र का किनारा नहीं मिल जाता है। मोहनजीत अपने फैसले पर अटल थे। शुरूआत की दिनों में वह अकेले जंगल उगाते रहे, यहां तक कि घर बनाने के लिए वह खुद लकड़ियां लाते थे। – Mohanjit Dhaliwal quit his corporate job and started growing forests.
वीकेंड पर जंगल को देखने आते है लोग
मोहनजीत बताते है कि मेरा शरीर तो जरूर थकता था, लेकिन दिल से कभी नहीं थका। उनके अनुसार शहर वाले समाज में सिर्फ मानव होते हैं, जबकि इस समाज में मानव, हरियाली, जानवर सब हैं और इसमे धीरे-धीरे दिल लगने लगता है कि यह हमारी भी कम्युनिटी है। अब बहुत से लोग वीकेंड पर जंगल को देखने आते है तथा यहां वक्त बिताते हैं। शुरू में लोगों का कहना था कि ‘यह क्या कर रहे हो? मोहनजीत कहते है कि यह एक लाइफ स्टाइल है, जो करने पर समझ आता है।
सिटी लाइफ की तुलना में जंगल की लाइफ होती है ज्यादा टफ
मोहनजीत के घर पर सब्जियां भी अब उनके जंगल से ही जाती है। यह सेहत के लिए बहुत अच्छी भी होती है। मोहनजीत कहते है कि हेल्थ को आउटसोर्स नहीं करना चाहिए, चाहे इसके लिए कोई नाराज ही क्यों ना हो जाए। सिटी लाइफ की तुलना में जंगल की लाइफ टफ होती है, हालांकि धीरे-धीरे यह समझ आने लगती है। जंगल की लाइफ में रिजल्ट आने में समय लगता है। मोहनजीत कहते है कि यहां मेरा अपना समाज बनता जा रहा है।
मोहनजीत के दोस्त भी अब उगा रहे जंगल
मोहनजीत को देखते हुए अब उनके कॉर्पोरेट के तीन चार दोस्तों ने भी यहां जमीन खरीद ली है और जंगल उगा रहे हैं। ऐसा हो सकता है कि उनके पास पैसा नहीं है, लेकिन अच्छी सेहत जरूर है। वह राहुल सांकृत्यान (Rahul Sankrityan) को अपना आदर्श मानते है, जो जापान के एक किसान है। मोहनजीत का मानना है कि इंसान को हर हाल में जंगल की ही तरफ लौट कर आना होगा क्योंकि यही अंत होगा और यही सॉल्यूशन है। सिटी की तुलना में जंगली लाइफ में कम खर्च है। मोहनजीत कहते है कि मेरे जंगल में अब पेड विजिटर आने लगे हैं, जिससे अब दवाओं पर खर्च नहीं होता। – Mohanjit Dhaliwal quit his corporate job and started growing forests.