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कुल 200 पशुओं के डेयरी में म्यूजिक सिस्टम लगा है, मालिक का कहना है इससे भैंसे ज्यादा दूध देती हैं

हम अक्सर काम करते वक्त सुकून देने वाले संगीत सुनते हैं। कई रिसर्च और स्टडीज के मुताबिक़ भी गाना सुनते हुए काम करना अच्छी बात है। सिर्फ़ इंसान हीं नहीं पशु भी गाने सुनना पसंद करते हैं। आज हम आपको एक ऐसे डेयरी के बारे में बताएंगे जहां गाय तथा भैंसों के लिए भी म्यूजिक सिस्टम की व्यवस्था की गई है। इस डेयरी में पशुओं के बैठने के लिए चटाई और गर्मियों के लिए शॉवर भी है।

दूध डेयरी में पशुओं का रखा जाता हैं खास ख्याल

यह दूध डेयरी बनारस (Varanasi) जिले से 25 किमी दूर बसा करसड़ा गांव में हैं। इस गांव में करीब साढ़े तीन एकड़ में गोकुल डेयरी फार्म बना हुआ है जिसमें कुल 200 पशु हैं। इस डेयरी की शुरुआत में यहां मात्र दस पशु ही थे परंतु अब इनकी संख्या बढ़कर 200 तक हो गई है। यहाँ पशुओं का खास ख्याल रखा जाता है, उनके खाने-पीने से लेकर रहने तक की सारी सुविधा मुहैया कराई जाती है।

डेयरी के मालिक हर्ष मोधक व मैनेजर शशिकांत मिश्रा

इस दूध डेयरी के मैनेजर शशिकांत मिश्रा (Shashikant Mishra) हैं। वह इस डेयरी के मालिक के बारे में बताते हैं कि उनका नाम हर्ष मोधक (Harsh Modhak) है। हर्ष ने ऑस्ट्रेलिया से अपनी पढ़ाई पूरी की है। पढाई पूरी होनी के बाद हर्ष भारत लौट आए और नई तकनीक और उचित प्रबंधन से इस डेयरी की शुरूआत किए।

Music system in dairy farm

पशुओं के लिए रखा गया है म्यूजिक सिस्टम

डेयरी में पशुओं के लिए बड़े बड़े म्यूजिक सिस्टम को लगाया गया है। जब पशुओं का दूध दोहन किया जाता है, उस समय धीमी धुन मे गाने चलाए जाते हैं। इसके बहुत से लाभ हैं, जैसे- अगर पशु तनाव में हैं तो इसका सीधा असर उसके दूध उत्पादन पर पड़ता है, इसलिए पशुओं का तनाव दूर करने तथा उन्हें स्वस्थ रखनें के लिए डेयरी में गाने की धुन चलाई जाती है। यह धुन सुनकर पशुओं को बहुत आराम महसूस होता है जिससे बहुत ही आसानी से दूध दोहा जाता है। साथ ही पशु का रक्त संचार भी अच्छा रहता हैं।

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पशुओ के देखभाल के लिया रखे गए हैं 25 कर्मचारी

इस डेयरी में 25 कर्मचारी को पशुओ के देखभाल के लिए रखा गया है। म्यूजिक सिस्टम के अलवा डेयरी में पशुओं के लिए मैट की व्यवस्था भी की गई हैं ताकि उनके खुर जमीन पर रखने से खराब ना हो और वो आराम से बैठ भी सके। सुबह 4-5 बजे तक इनको खाने के लिए दिया जाता हैं और 6 बजे से इनका दूध निकालने का काम शुरू होता है। दूध निकलने के बाद पशुओं को चरने के लिए भेज दिया जाता है। शशिकांत बताते हैं कि पशुओं की दिनचर्या बहुत ही जरूरी है। इससे वे स्वस्थ रहते हैं और ज्यादा दूध उत्पादन भी होता है। साथ हीं पशुओं को सही मात्रा में संतुलित आहार और उनका टीकाकरण कराना भी बहुत जरूरी है।

1500 लीटर दूध उत्पादन का है लक्ष्य

इस समय डेयरी में कुल 200 पशु हैं जिससे रोजाना 900 लीटर दूध का उत्पादन होता है। इसके अलावा गोबर से खाद बनाने का भी काम किया जाता है। डेयरी की साफ सफाई के लिए खास इंतजाम किए गए हैं। शशिकांत बताते हैं कि उनका लक्ष्य रोजाना 1500 लीटर दूध उत्पादन का है। डेयरी से दूध स्कूल तथा हॉस्पिटल में भेजे जाते हैं। इसके अलावा बाजारों में भी बहुत अच्छे दामो में दूध की बिक्री की जाती है।

गर्मी के दिनों में पशुओं के लिए शॉवर की व्यवस्था

शशिकांत बताते हैं कि पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए शॉवर की भी व्यवस्था की गई है, गर्मियों से पशु परेशान हो जाते हैं जिसका असर उनके दूध पर पड़ने लगता है। शॉवर के अलावा पशुओं के दूध निकालने के लिए मशीन भी हैं। शशिकांत ने आगे बताया कि सरकार द्धारा चलाई गई कामधेनु योजना के अंतर्गत इस डेयरी को खोला गया था। डेयरी में एक पशु पर एक दिन में 200 रूपए का खर्चा किया जाता है। आगे वह कहते हैं कि अगर आप अच्छे से पशु की देखभाल करते हैं तो लागत की तुलना में मुनाफा अधिक होता है।

The Logically हर्ष मोधक (Harsh Modhak) को उनकी सफलता के लिए बधाई देता है।

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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