स्वतंत्रता संग्राम में शायद ही ऐसी कोई शख्सीयत है, जो नेताजी सुभाषचंद्र बोस (Shubhash Chandra Bose) की तरह रोमांच पैदा करती हो। कोलकाता के अपने घर से पठान के वेश में पेशावर होते काबुल जानेवाले नेताजी जिंदगी की हर पहलुओं पर रहस्यमयी रहें हैं। “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” के नारे से उनहोंने नौंजवानों में ललक पैदा की। आज उन्हीं महान वयक्तित्व का जन्मदिन है।
नौकरी छोड़ने के पीछे ये खास वजह
23 जनवरी 1897 को कटक में पैदा हुए बोस ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी (Calcutta University) से ग्रेजुएशन किया।इसके बाद वे इंडियन सिविल सर्विसेज की परीक्षा देने इंग्लैंड चले गए। उन्होंने परीक्षा पास भी की लेकिन बाद में नौकरी छोड़कर आजादी की लड़ाई में शामिल होने का फैसला किया।
कई बार हुए गिरफ्तार लेकिन समय के साथ निखारते गए
बोस आजाद हिंद फौज (Ajad Hind Fauj) के संस्थापक भी थे। वह 1923 में वे ऑल इंडिया यूथ कांग्रेस के प्रेसीडेंट भी बने। 1925 में उन्हें मांडले जेल भेज दिया, जहां से वे 1927 में वापस लौटे। एक बार फिर उन्हें सविनय अवज्ञा में गिरफ्तार कर लिया गया जब वे जेल से वापस आए, तो 1930 में उन्हें कलकत्ता का मेयर बनाया गया।
क्या वाकई गांधी और सुभाष में मतभेद था ?
बोस कांग्रेस के प्रेसीडेंट भी रह चुके हैं। गांधी के विरोध के बावजूद उन्होंने पट्टाभि सीतारमैया को प्रेसीडेंट इलेक्शन में शिकस्त दे दी थी। लेकिन जल्द ही आंतरिक विरोध के चलते उन्होंने इस्तीफा भी दे दिया।
तमाम मतभेदों के बावजूद बोस, गांधी की बेहद इज्जत करते थे। सिंगापुर से रेडियो पर उद्बोधन देते हुए गांधी को पहली बार राष्ट्रपिता सुभाष चंद्र बोस ने ही कहा था।
वेश बदलने में थे माहिर
फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन करने के बाद उनकी मास अपील के चलते अंग्रेज सरकार ने उन्हें हाउस अरेस्ट कर लिया था। लेकिन उनकी सूझबूझ और चलाकी ही सबसे बड़ी साथी बनी। नजरबंद बोस ने हाउस अरेस्ट से भाग निकलने का प्लान बनाया। अपनी दाढ़ी बढ़ाई और पठान के वेश में वे भागने में कामयाब रहे।
हिटलर ने नेताजी के सामने आने से पहले खेला था ये खेल
बोस ने रूस से मदद मांगी थी लेकिन उस समय वर्ल्ड
वार में फंसे रूस ने हाथ खड़े कर दिए थे। बाद में जर्मनी पहुंचकर उन्होंने हिटलर (Hitler) से मदद मांगी। जब वह हिटलर से मिलने गए थे तो उन्हें बंद कमरे में बैठा दिया गया था। दूसरे विश्व युद्ध के कारण सुरक्षा के मद्देनजर हिटलर ने अपने जैसे हमशक्ल लोगों को अपने साथ रखा था। नेताजी से मिलने पहले उसने उन्ही हमशक्ल लोगों को भेजा था। लेकिन शायद उसे ज्ञात नहीं था ये होशियारी वो उस व्यक्ति के सामने दिखा रहा था जिसे खुद वेशभूषा बदलने में महारत थी। इस बात से खुद हिटलर भी नेताजी का कायल ही गया।
मौत के लेकर आज भी है संदेह
18 अगस्त 1945 को टोकियो जाते वक्त ताईवान में उनका प्लेन क्रैश हो गया। कहा जाता है उनका अंतिम संस्कार जापान में कर दिया गया था। उनकी अस्थियां रोकोनजी टेंपल में रखी गईं हैं। हालांकि उनकी मौत पर लगातार सवाल उठाए जाते रहे।