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शहर की चकाचौंध से मन भरा तो जा बसी पहाड़ों पर, वहां कैफे चलाने के साथ दे चुकी हैं 50 लोगों को रोजगार

Nitya Budhraja leaves urban life and runs a Cottage and cafe in uttarakhand

शहर की चकाचौंध से दूर पहाड़ों पर प्रकृति के साथ रहना हर किसी को पसंद होता है लेकिन रोजाना की भागम-भाग जिंदगी से किसी को फुर्सत कहां कि वे ऐसा कर सके। प्रकृति के साथ सुकून के कुछ पल व्यतीत करने के लिए वे कुछ दिनों की छुट्टी लेकर घूमने के लिए चले जाते हैं। लेकिन वापस लौटने के बाद फिर वहीं रोजमर्रा की जिंदगी शुरु हो जाती है।

जहां अधिकांश लोग पहाड़ों पर हमेशा के लिए बसने की ख्वाईश रखने के बावजूद भी उसे पूरा नहीं कर पाते हैं। वहीं दिल्ली की एक रहनेवाली एक लड़की ने अपने इस सपने को वास्तविकता में बदल दिया है। जी हां, दिल्ली के एक इवेंट कम्पनी में काम करनेवाली नित्या बुधराजा (Nitya Budhraja) अब उत्तराखंड (Uttarakhand) के पहाड़ों पर जा बसी हैं और प्रकृति के साथ जीवन व्यतीत कर रही हैं। इसी कड़ी में चलिए जानते हैं उनके बारें में विस्तार से-

पर्यावरण के लिए छोड़ा इवेंट कम्प्नी की नौकरी

दरअसल, नित्या एक इवेंट कम्पनी में नौकरी करती थीं जहां 4 घन्टे के इवेंट खत्म होने के बाद काफी ज्यादा कूड़ा इकट्ठा हो जाता था, जो न तो गल सकता था और न ही उसे दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता था। ऐसे में इससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता है, जो समस्त पृथ्वी के लिए नुकासानदायक है। इसी सोच के साथ नित्या ने इवेंट कम्पनी की नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया।

इवेंट कम्पनी की नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने एक स्टार्टअप कम्पनी में नौकरी ज्वाइन की, जहां लोगों को हिमायल की ट्रेकिंग के लिए लेकर जाया जाता था। लेकिन आर्थिक दिक्कतों की वजह से यह कम्पनी भी शीघ्र ही ठप पड़ गईं। हालांकि, हिमालयी ट्रेकिंग के दौरान ही उन्हें कुदरत की खुबसूरती देख पहाड़ों से काफी लगाव हो गया था। एक नौकरी छूटने के बाद उन्हें तुरंत ही उत्तराखंड के लिति में एक और नौकरी मिल गई जहां वे सीजनल प्रॉपटी की देख-रेख करती थी।

लिति क्षेत्र में अनेकों समस्याएँ थीं जैसे पानी की गंभीर समस्या के साथ ही बिजली और टेलीफोन कनेक्शन भी नहीं था। यहां तक कि वहां की सड़के भी बदहाल स्थिति में थी। लेकिन 6 महीने काम करने के दौरान नित्या को यह जगह भा गईं। उसके बाद उन्होंने कसार देवी में नन्दा देवी हैंडलूम में को-ओपरेटिव का काम किया। वहां पर पहले से ही 200 ग्रामिण महिलाएं भी काम करती थीं।

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जिंदगी में आया एक नया मोड़

कहते हैं समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है, नित्या की जिंदगी ने भी अचानक करवट बदली। अचानक उनके पिता का देहांत हो गया जिसके बाद उन्हें अपनी नौकरी छोड़कर उत्तराखंड में स्थित एक छोटे-से कस्बे सात ताल आना पड़ा। पिता के जाने के बाद वे अपनी मां के साथ सात ताल (Sattal) में ही रहने लगीं। अब उनके समस्या यह थी कि जीवनयापन कैसे होगा। ऐसे में उन्हें अपने पिता द्वारा बनाए गए कॉटेज की याद आई। वहां बिजली और पानी की दिक्कत थी ऐसे में उनके पिता ने बिजली के लिए सोलर पैनल और पानी के लिए रेन हार्वेस्टिंग की व्यवस्था की थी।

सात ताल (Sattal) के जिस क्षेत्र में कॉटेज थे वहां मौजूद देवदार के पेड़ जमीन का सारा पानी सोख लेते हैं जिससे पानी की समस्या बनी रहती है। इस समस्या का हल निकालने के लिए नित्या और उनकी मां ने देवदार के जगह 7 हजार बलूत के पेड़ लगाएं जो पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। इस काम में उन्हें 3 वर्ष का समय लगा।

पिता की याद में रखा कॉटेज का नाम

नित्या के जीवन में टर्निंग प्वाइंट उस समय आया, जब उनके कुछ दोस्त भीमताल की सैर करने के लिए आए थे और उन्हें ठहरने के लिए जगह चाहिए थीं। उस दौरान नित्या ने उन्हें रुकने के लिए अपना कॉटेज (Cottage) दे दिया। उसी समय से शुरु हुआ उनके कॉटेज का सिलसिला। इस तरह नित्या ने कॉटेज जे साथ-साथ कैफे चलाना भी शुरु किया। चूंकि, कॉटेज से उनके पिता की यादें जुड़ी थी इसलिए उन्होंने उसे “नवीन्स ग्लेन” (Naveens Glen) और कैफे का नाम मां के नाम पर “बाब्स कैफे” रखा।

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50 लोगों को दे चुकी हैं रोजगार

वर्तमान में उनके कॉटेज में जरुरी चीजें भी उगाई जाती हैं जैसे सलाद पत्ता, लहसुन, हरा मटर आदि। कॉटेज में उगाई जाने वाली अधिकांश चीजों का प्रयोग उनके कैफे में बनने वाले व्यंजनों में किया जाता है। वहीं कॉटेज की देखभाल भी जरुरी है जिसके लिए उन्होंने लगभग 50 ग्रामीणों को रोजगार देकर आत्मनिर्भर बनाया है। इसके अलावा नित्या (Nitya Budhraja) और उनके परिवार ने सात ताल के इस कस्बे में स्थित एक सरकारी स्कूल की देखरेख करने की जिम्मेदारी भी अपने सिर लिया है।

परिवार के साथ मिलकर चलाती हैं कॉटेज

कॉटेज के जरिए लोगों को रोजगार से जोड़ने के साथ ही उन्होंने पर्यावरण की दृष्टि से 7 हजार पेड़ भी लगाया है। इसके अलावा वे चाहती हैं कि देवदार के पेड़ों से गिरने वाले सुइयों से भी वहां के लोगों को आमदनी का जरिया मिले ताकि वे भी अच्छे से अपना जीवनयापन कर सके। वर्तमान में इस कॉटेज को नित्या, उनकी मां और भाई मिलकर संभालते हैं।

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