आजकल ज्यादातर किसान रसायनिक खेती छोड़कर जैविक खेती की ओर अग्रसर हो रहे है, इसका दो कारण है, भूमि का बंजर होना तथा अपनी अलग पहचान बनाना। कुछ किसान अब जागरूक हो चुके है, वो जानते है कि केमिकल उपयोग करने से फसल तो अच्छी हो जायेगी लेकिन जो भूमि प्रदूषित हो रही है इससे उन्हें केवल घाटा ही नज़र आ रही है तथा कुछ किसान रासायनिक खेती छोड़ जैविक खेती इसलिए कर रहे ताकि वो अपनी एक अलग पहचान बना सकें। आज हम एक ऐसे ही किसान की बात करेंगे, जिन्होंने जैविक खेती कर अपनी एक अलग पहचान स्थापित की है। इस किसान ने जैविक खेती कर 1.2 फ़ीट लंबी मिर्च का उत्पदान अपने खेत में किया है।
कौन है, वह किसान?
भारत के राजस्थान (Rajasthan) के रहने वाले मोती सिंह रावत (Moti Singh Rawat) नामक एक किसान ने जैविक खेती कर 1.2 फ़ीट लंबी मिर्च का उत्पदान अपने खेत में किया है, जो आजकल बहुत चर्चे में है।
भारतीय सेना में नौकरी कर चूका है यह किसान
दरअसल, मोती सिंह पहले भारतीय सेना में सैनिक रह चुके है। जब मोती सिंह सेना में नौकरी करते थे, उस दौरान वो रात को गश्ती पर निकलें थे तभी उनका पांव ग्लेशियर में फंस जाने के कारण जख्मी हो गया। जिसके बाद उनको सेना में दिव्यांक घोषित कर दिया गया।
सेना से रिटायर होने के बाद खेती करने का लिया निर्णय
सन 1995 में मोती सिंह सेना से रिटायर हो गए, जिसके बाद उन्होंने फैसला किया कि वो अब गांव में खेती करेंगे। उस समय उनके पांव भी ठीक हो गए थे। शुरुआती में उन्होंने टमाटर की खेती करने का निर्णय लिया। गांव में उस समय उनके पास 1 एकड़ की जमीन थी। उस जमीन में ही उन्होंने अपने रिटायरमेंट के पैसे में से 12 हज़ार से टमाटर की खेती की। पहले ही फसल में उन्हें 80 हज़ार का मुनाफा हुआ। इसके बाद इन्होंने कुछ जमीन लीज पर लेके और भी फसल लगाया। दूसरे किसानों के तरह इन्होंने भी हाईब्रिड खेती की लेकिन जल्द ही इनको महसूस हुआ कि फसल में केमिकल वाले उर्वरकों का उपयोग करने से मिट्टी में पानी का ठहराव ज्यादा देर नही हो पा रहा। उसके बाद इन्होंने वर्ष 2008 में जैविक खेती की शुरुआत की।
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पहली बार हुआ 80000 रूपये का फायदा
सेवानिवृत्ति के दौरान उन्हें मिलने वाले 1.20 लाख रुपये की राशि का निवेश करते हुए, पूर्व सेना के मोती सिंह ने एक एकड़ से भी कम जमीन में टमाटर उगाने का फैसला किया। इन्होंने बताया, “मैंने पहली फसल से 80,000 रुपये कमाए और अतिरिक्त भूमि पर खेती करना शुरू किया। फिर खेती के जमीन को इन्होंने लीज पर लिया। मोती सिंह ने कहा कि कई पारंपरिक किसानों की तरह, उन्होंने शुरू में कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग के साथ संकर खेती की तकनीक का उपयोग शुरू किया। अगले कुछ वर्षों में मोती ने महसूस किया कि उर्वरकों के निरंतर उपयोग के कारण मिट्टी में पानी नहीं है। प्रजनन क्षमता भी बहुत खराब हो गई थी इसलिए वे बताते हैं कि, उन्होंने अपने खेतों में इस्तेमाल करने के लिए खुद ही गोबर, गौ मूत्र तथा अन्य चीजों का इस्तेमाल करके वर्मी कम्पोस्ट बनाने का काम करते हैं। वे इसे अपने खेतों में इस्तेमाल करते हैं।
1 एकड़ में बनाया पाॅलीहाउस
वर्तमान में मोती सिंह हरी मिर्च के साथ ही साथ शिमला मिर्च, टमाटर, ककरी,गेहूं तथा मक्के के साथ सब्जीयो का भी खेती करते हैं, इसके लिए उन्होंने पाॅलीहाउस बना रखा है। मोती सिंह का कहना है कि वे एक एकड़ में शिमला मिर्च की खेती करके 30000 रूपये का महीना मुनाफा कमा लेते हैं।
पेड़ के पत्तीयो से बनाते हैं कीटनाशक
मोती सिंह का कहना है कि वे बाजार में मिल रही जहरीली कीटनाशक का उपयोग न करके, खुद से पेड़-पौधे के पत्तीयो से बनाये कीटनाशक का उपयोग अपने फसलो पर करते हैं।
सरकारी अफसर और मंत्री भी आते हैं फसलो को देखने
दरअसल मोती सिंह अपने काम को लेकर राजस्थान के साथ ही साथ पुरे देश में चर्चे में रहते हैं। उनको इस तरह की खेती के लिए कई बार पुरस्कार भी मिल चुका है। उनके इस अदभुत खेती को देखने के लिए आये दिन कोई न कोई अफसर या मंत्री आते रहते हैं।
अगला लक्ष्य
मोती सिंह कहना है कि “मैं अपने मिशन में कामयाब हो चुका हुं। उनका लक्ष्य है कि,लंबी मिर्च उगाने के लिए इनका नाम “गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड” में दर्ज हो। यह युवाओं को संदेश देना चाहते हैं कि खेती करना लाभदायक है। पॉली हाउस स्थापित कर अच्छा तरह से फसलों की देखभाल हो तो यह लाभदायक और सफल खेती का उदाहरण है। युवाओं को नई तकनीकों वाले खेती पर ध्यान देना चाहिए।”
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