COVID-19 ने लगभग पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया है ऐसे में कोरोना महामारी से निपटने के लिए पूरी दुनिया वैक्सीन बनाने में जुटी हुई है। इस दौरान कुछ वैक्सीन तैयार भी हो गई है और कुछ वैक्सीन ट्रायल फेज में है। ऐसे में उम्मीद है कि इस वर्ष 2021 में सभी आम नागरिकों तक कोरोना की वैक्सीन पहुंच जाएगी।
हम सभी वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं लेकिन क्या कभी सोचा है कि यह कैसे बनती है, वैक्सीन होता क्या है, इसे कैसे स्टोर किया जाता है इसी तरह कई सारे सवाल हैं जिसके बारे में हम नहीं जानते हैं।
ऐसे में हम वैक्सीन के बारे में जुड़ी सभी तमाम जानकारी लेकर आए हैं जिसके माध्यम से आप सभी को इसके बारे में जानने का अवसर प्राप्त होगा। आईए जानते है…
वैक्सीन (Vaccine) कैसे बनती है
WHO (World Health Organization) के अनुसार, वैक्सीन में रोग को उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं के छोटे-छोटे टुकड़े डाले जाते हैं। इसके साथ हीं इसमें अन्य कई दूसरी सामग्री भी होती है जो टीके को प्रभावी और सुरक्षित बनाने के लिए डाली जाती है। उदाहरण के लिए Antigen, Stabilisers, Preservatives, Surfactants, Residuals, Diluent तथा Adjuvants आदि। यह सभी वर्षों से बनाई जा रही है और इसका प्रयोग दूसरे वैक्सीन में भी किया जा रहा है।
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टीका का विकास कैसे होता है
यदि पहले की प्रक्रिया ठीक रहती है तो इसे कई व्यापक और कठिन परीक्षण स्क्रीनिंग और मूल्यांकन से गुजरना पड़ता है। यदि टीके का एंटी जैन शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) को सक्रिय कर देता है तो उसके बाद हीं इसका ट्रायल शुरु किया जाता है। वैसे तो इसका ट्रायल मनुष्यों पर करने से पहले जानवरों पर किया जाता है। यदि जानवरों पर यह प्रभावजनक होता है और टीके का कोई साईड इफेक्ट नहीं होता है तो उसके बाद इसे मनुष्यों पर परिक्षण करने के लिए भेजा जाता है।
टीके के टेस्टिंग के तीन चरण होते हैं
पहला चरण (First Stage)
इसकी टेस्टिंग तीन चरणों में होती है। पहले चरण में टीके को चुने हुए कुछ वेंटीलेटर्स को वैक्सीन लगाई जाती है। इस तरह से यह जानकारी हासिल करने की कोशिश की जाती है कि मानव शरीर पर यह सिस्टम को सक्रिय करता है अथवा नहीं। यदि सक्रिय करता है तो पीछे की साइड खुराक कितनी चाहिए इसकी भी जानकारी प्राप्त की जाती है।
दूसरा चरण (Second Stage)
टीके की टेस्टिंग के दूसरे चरण में 100 वेंटिलेटर्स को लगाया जाता है। इसके अंतर्गत यह कई भिन्न-भिन्न आयु वर्ग के लोगों को लगाया जाता है। इसके कई ट्रायल होते हैं जिसकी सहायता से यह जानकारी प्राप्त की जाती है कि उन सभी टीके का क्या प्रभाव हो रहा है। इनमें से कुछ ऐसे समूह भी होते हैं जिनको वैक्सीन नहीं दी जाती है। उनके माध्यम से यह जानने की कोशिश की जाती है कि जो बदलाव हो रहा है वह वाकई वैक्सीन से हुआ है या ऐसे ही।
तीसरा चरण (Third Stage)
यह टीके के परीक्षण का अन्तिम चरण होता है, इसमें वैक्सीन लोगों के बहुत बड़े समूह को लगाई जाती है तथा उतने हीं लोगों को वैक्सीन लगाए बिना उसका परीक्षण किया जाता है। तीसरे चरण में टीका भिन्न-भिन्न देशों के लोगों को या एक हीं देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में रहनेवाले लोगों पर लगाया जाता है।
टीके के तीनों चरण की ट्रायल पूरी करने के बाद वैज्ञानिकों को परिणाम मिलने के पश्चात् वे उसके डाटा को बारीकी से जांच-पड़ताल करते हैं। उसके बाद यह तय किया जाता है कि वैक्सीन लाभकारी है या नहीं। वैक्सीन को सभी तय मानकों पर खङा उतरना होता है। वैक्सीन बीमारी ठीक करने के साथ हीं उसका साइड इफेक्ट वाला ही नहीं होना चाहिए अर्थात वैक्सीन को पूरी तरह से सुरक्षित होना चाहिए। स्वस्थ लोगों को वैक्सीन देने के बाद भी उस टीके के असर पर नजर रखी जाती है।
वैक्सीन को पैक करने के तरीके
डब्ल्यूएचओ (WHO) के अनुसार वैक्सीन को भारी मात्रा में बनाकर कांच की शीशीओं में पैक करके कोल्डस्टोर में रख दिया जाता है। यदि वैक्सीन को दूसरी जगह भेजना होता है तो उसे सुरक्षित तरह से पैक किया जाता है। वैक्सीन (Vaccine) की पैकिंग इस तरह से की जाती है जिससे अधिक तापमान होने पर वह खराब ना हो और दूसरे देश के अन्य मौसमी कारकों पर भी खड़ी उतरे। ज्यादातर टीकों को 2-8 डिग्री सेल्सियस तापमान पर स्टोर किया जाता है, वहीं कुछ को -70 डिग्री सेल्सियस पर संचित किया जाता है।
वैक्सीन को एक जगह से दूसरी जगह भेजने के तरीके
टीके को सुरक्षित रखने के लिए खास प्रकार के उपकरण का उपयोग किया जाता है। वैक्सीन को किसी देश में पहुंचाने के बाद उसे फ्रीज लगे ट्रकों में लादकर कोल्ड स्टोर या वेयर हाउस ले जाया जाता है। उसके बाद वहां से टीका की आईसबॉक्स में रखकर स्थानीय अस्पतालों में ट्रांसपोर्ट किया जाता है।