एक पुरानी कहावत है कि जब ईश्वर हमें किसी नेक कार्य के लिए याद करता है तो हम तमाम बंधनों को तोड़ते हुए उसकी तरफ अग्रसर हो जाते हैं ।
यह कथन दिल्ली आईआईटी के एक प्रोफ़ेसर पर सटीक बैठती है जिसने प्रकृति सेवा को अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया,अपने ऐशोआराम और ज़िन्दगी की सांसारिक सुख को छोड़कर पिछले 30 वर्षों से एक आदिवासी क्षेत्र में रहकर वहां के लोगों के हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं और वृक्षारोपण का काम करते हैं।
आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर आलोक सागर का नाम उन चुनिंदा लोगों के बीच आता है जिन्होंने जिंदगी की उत्कृष्ट उपलब्धियों के बाद भी अपनी पहचान और पदवी ठुकरा दिया और प्रकृति सेवा में अपनी सम्पूर्ण ज़िन्दगी को समर्पित कर दिए ।
प्रोफेसर आलोक सागर देश के एक से एक मेधावी छात्रों को पढ़ा चुके हैं जिसमें में भारत के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का भी नाम शामिल है । Delhi IIT में अपने इंजीनियरिंग के समय रघुराम राजन Professor Alok Sagar के शिष्य रह चुके हैं।
आलोक सागर की पहले की ज़िंदगी
दिल्ली आईआईटी से इंजीनियरिंग करने के बाद आलोक सागर ने वहीं से अपना मास्टर्स किया और फिर आगे की पढ़ाई के लिए वह अमेरिका चले गए। अमेरिका के Houston University से पीएचडी करने के बाद आलोक सागर ने दिल्ली आईआईटी में पुनः आकर बतौर प्रोफेसर अपना कार्यभार संभाला और सन 1982 तक इन्होंने इंजीनियरिंग के छात्रों को पढ़ाया।
सन 1982, Professor Alok Sagar के लिए एक बेहद ही संवेदनशील साल रहा ,जब इन्होंने अपनी नौकरी को छोड़ने का निश्चय कर लिया। अपनी तमाम ऐशो आराम की ज़िंदगी को छोड़कर आलोक सागर ने मध्य प्रदेश के एक आदिवासी जगह को अपनी कर्मभूमि बना लिया और वहां वृक्षारोपण का काम शुरू कर दिए। पिछले 30 वर्षों से आलोक सागर वहां रह रहे आदिवासी लोगों को शिक्षित करने का काम करते हैं और साथ ही उन्हें पर्यावरण संबंधित शिक्षा देते हैं।
आलोक सागर एक गुमनाम जिंदगी जीते हैं
आलोक सागर पिछले 30 वर्षों से मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में एक गुमनाम जिंदगी जी कर प्रकृति संरक्षण का कार्य करते थे और आदिवासियों के उत्थान के लिए अपना संपूर्ण योगदान दे रहे थे। विगत वर्ष , बैतूल जिले में होने वाले चुनाव को लेकर इनके पहचान के प्रति अफवाह फैलने लगी तब इन्होंने पुलिस चौकी जाकर अपनी पहचान का जिक्र किया । यह सुनते ही सभी लोग हस्तप्रभ रह गए और इनके सामने नतमस्तक हुए।
अभी भी आलोक सागर एक बहुत ही साधारण जिंदगी जीते हैं और कहीं जाने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करते हैं । उनका मानना है कि आदिवासी लोग प्रकृति से सबसे अधिक जुड़े हुए होते हैं और उनकी जिंदगी समाज के भाग दौर से काफी अलग होने के साथ ही बहुत ही बेहतरीन है। आलोक सागर 50 किलोमीटर साइकिल चलाकर गांव के दूसरी तरफ जाते हैं और उन्हें पौधे लगाने के लिए बीज देते हैं , इस तरह इन्होंने केवल बैतूल जिले में 50 हज़ार से भी अधिक पौधा लगाया है । आलोक सागर एक बहुत ही प्रतिभावान व्यक्ति हैं जो भारत के 8 भाषाओं पर अपना पकड़ रखते हैं।
आलोक सागर के बारे में भले ही देश का एक बड़ा हिस्सा अनभिज्ञ हो लेकिन वह अपनी तमाम कोशिशों के साथ एक बेहतर संदेश दे रहे हैं । The logically आलोक सागर जैसे महान व्यक्तित्व को नमन करता है ।