रंजीत सिंह दिसाले (Ranjit singh Disale)एक अनोखे शिक्षक हैं,जिन्होंने आदिवासी इलाके में ज्ञान की गंगा को बहाया।इस दौरान आने वाली चुनौतियों को ही चुनौती दे डाला।आज कहानी उसी जुझारू शख्स की।
हाल ही में, वर्की फाउंडेशन द्वारा 32 वर्ष के दिसाले को प्रतिष्ठित ग्लोबल टीचर पुरस्कार(Global teacher award) से सम्मानित किया गया। उन्हें यह पुरस्कार शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियों को बढ़ावा देने और उन्हें तकनीक से जोड़ने की कोशिशों के लिए दिया गया है। इसके तहत, उन्हें 10 लाख डॉलर यानी लगभग 7.38 करोड़ रुपए मिले। इस पुरस्कार के लिए 12000 शिक्षकों ने अपने नामांकन दर्ज कराए, जिनमें से सिर्फ 10 लोगों को चुना गया।
पुरस्कार की राशि को अपने मित्रों के साथ शेयर किया
ऐसा कम ही सुनने को मिलता है कि कोई अपनी पुरस्कार को किसी और के साथ शेयर कर रहा हो। लेकिन दिसाले ने यह कर दिखाया है।वो अब इस राशि का आधा हिस्सा अपने साथियों को देने का एलान कर चुके हैं। जबकि, शेष राशि में से 30% हिस्सा भारत के टीचर इनोवेशन फंड के लिए समर्पित होगी। दिसाले द्वारा महाराष्ट्र टाइम्स को दिए एक बयान के अनुसार, “इनाम का 20 फीसदी हिस्सा, युद्ध क्षेत्रों में पीस आर्मी के गठन के लिए खर्च होगा, जिसके तहत करीब 5 हजार छात्रों को एकजुट किया जाएगा।”
उन्होंने एक कार्यक्रम के लाइव टेलीकास्ट के लिए दिए गए एक इंटरव्यू में होस्ट को बताया कि मैं इस राशि का आधा हिस्सा, इस प्रतियोगिता के नौ अन्य प्रतिभागियों के साथ बाँटने की घोषणा करता हूँ। हम शिक्षक हमेशा देने और बाँटने में यकीन करते हैं।
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दिसाले की सफर की शुरुआत
आज से एक दशक पहले, जब दिसाले ने इस सफर की शुरूआत की थी तो उन्होंने ये सोचा भी नही होगा कि वो यहां तक पहुंचेंगे।साल 2009 में रंजीत सिंह दिसाले का महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पारितेवादी गाँव स्थित प्राथमिक विद्यालय से नाता जुड़ा।उस वक्त उस स्कूल की हालत काफी बदहाल थी। स्कूल की हालत ऐसी थी कि जैसे कोई जानवरों के रहने की जगह हो।या किसी स्टोर रूम की तरह इस्तेमाल होता हो। और तो और सबसे बड़ी चुनती तो ये थी कि यहाँ के अधिकांश छात्र आदिवासी समुदाय के थे और यहाँ लोगों को अपने बच्चों, खासकर लड़कियों को पढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी।वो लोग सोचते थे कि इससे कुछ बदलने वाला नहीं है।
चुनौती को मंजूर किया
लेकिन जुझारू प्रवृति के दिसाले(Ranjit Singh Disale) ने परिस्थितियों को बदलने का जिम्मा अपने कंधों पर उठाया और टेक्नोलॉजी की मदद से पूरी शिक्षा व्यवस्था को ही बदल कर रख दिया।उन्हीं के प्रयासों का नतीजा यह है कि आज यह स्कूल पूरी दुनिया में अपना नाम कमा रहा है। द टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, दिसाले ने लड़कियों और उनके माता-पिता को शिक्षा के महत्व को समझाने पर जोर दिया। उन्होंने लोगों को इस बात को समझाने के लिए बहुत मेहनत किया कि शिक्षा लोगो का जीवन बदल सकता है। उनके इन्हीं प्रयासों की बदौलत, आज गाँव में किशोरावस्था में कोई विवाह नहीं होते हैं और स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति दर 100 फीसदी है।
जीते अन्य पुरस्कार
आपकी जानकारी के लिए यह बात दें कि उनके इस स्कूल को महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा सर्वश्रेष्ठ विद्यालय का पुरस्कार भी मिल चुका है।और इसके अलावा आपको ये जानकर भी हैरानी होगी कि ग्लोबल टीचर अवॉर्ड दिसाले के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार नहीं है। इससे पहले उन्हें माइक्रोसॉफ्ट द्वारा ‘इनोवेटिव एजुकेटर एक्सपर्ट’ का पुरस्कार भी दिया जा चुका है। इसके अलावा, उन्होंने भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान-2018 के सर्वश्रेष्ठ इनोवेटर का पुरस्कार भी जीता।
QR Code प्रणाली को शुरू किया
दिसाले वर्ष 2016 में उस वक्त भी सुर्खियों में थे, जब उन्होंने स्कूल की पाठ्यपुस्तकों को लेकर, एक क्यूआर कोड प्रणाली की शुरुआत की थी, जिसे कई राज्यों द्वारा अपनाया भी गया था।यह बात उस वक्त की है, जब दिसाले ने क्यूआर कोड स्कैन कर रहे एक शख्स को देखा और उन्हें विचार आया कि इसी तकनीक का इस्तेमाल कर, क्यों न पाठ्यपुस्तकों को डिजीटल फार्मेट में बदला जाए और छात्रों के अध्ययन के विकल्पों के विस्तार किया जाए। क्यूआर कोड प्रणाली के मार्ग में चुनौती लेकिन इस युक्ति के साथ एक समस्या यह थी कि अधिकांश किताबें अंग्रेजी में थी, लेकिन दिसाले ने पूरे धैर्य के साथ एक-एक करके किताबों का मातृभाषा में अनुवाद किया और उसमें क्यूआर कोड जोड़ दिया, ताकि छात्र वीडियो लेक्चर अटेंड कर सकें और अपनी ही भाषा में कविताएँ और कहानियाँ सुन सकें। दिसाले इतने पर ही नहीं रुकते बल्कि इसके बाद,साल 2017 में महाराष्ट्र सरकार को इस तकनीक को पाठ्यक्रम से जोड़ने का प्रस्ताव रखते हैं। इसके बाद, राज्य सरकार ने प्रायोगिक स्तर पर इस पर अमल करने के बाद घोषणा की कि वह इसे सभी श्रेणियों के लिए लागू करेगी। वहीं, एनसीईआरटी ने भी इस तकनीक अपनाने की घोषणा कर दी।
संदेश
अपनी इस उपलब्धि पर दिसाले कहते हैं कि उन्होंने भले ही यह पुरस्कार जीता हो, लेकिन वह अकेले इस दुनियो को नहीं बदल सकते हैं। इसलिए सभी प्रतिभागियों को अपना असाधारण काम जारी रखने के लिए समान अवसर मिलना चाहिए।
The Logically, रंजीत सिंह दिसाले की इस शानदार सफलता पर उनका कोटि-कोटि अभिनंदन करता है।हम यह कामना करते हैं कि वो इसी तरह सफलता के पथ पर अग्रसर हों और लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने।उनके आने वाले भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं।