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1 मई को क्यूं मनाया जाता है मजदूर दिवस, कब हुई इसकी शुरुआत, पढ़िए पूरी कहानी

एक मई यानी मजदूर दिवस. मजदूरों का यह दिन किसी भी देश, राज्य और उद्योग को अपनी भूमिका बताने वाला होता है। श्रमिकों और मजदूरों की मेहनत से हीं हर संस्था की नींव मजबूत होती है। किसी भी उद्योग की सफलता में सरकार, मालिक और इंजीनियर जैसे हीं मजदूर भी अहम किरदार निभाते हैं।

काम के आठ घंटे, मनोरंजन के आठ घंटे और आराम के आठ घंटे

विश्व पटल पर मज़दूर दिवस मनाने की शुरुआत 1886 में की गई थी। उस वक्त अमेरिका की मजदूर यूनियन ने काम का समय 10-15 घंटे से घटाकर 8 घंटा करने के लिए विरोध कर रहे थे। 1 मई 1886 को अमेरिका में शुरू हुए इस आंदोलन में 11 हजार फैक्ट्रियों के लगभग 3 लाख 80 हजार मजदूर शामिल थे। विशेष रूप से इस आंदोलन में काम के लिए आठ घंटे, मनोरंजन के लिए आठ घंटे और आराम के लिए आठ घंटे की बात पर जोर दिया गया था।

 Labour Day

भारत में चेन्नई से हुई शुरुआत

भारत में पहली बार मजदूर दिवस 1 मई 1923 को चेन्नई में मनाया गया था। इसकी शुरुआत हिंदूस्तान लेबर किसान पार्टी और मज़दूर किसान पार्टी के नेता कामरेड सिंगरावेलू चेट्यार ने की थी। वर्तमान समय में भारत समेत चीन, क्यूबा जैसे 80 देशों में 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसलिए यह दिन अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस (International Workers’ Day) के तौर पर प्रामाणित हो चुका है।

प्रवासी मजदूर

आज पूरा विश्व कोरोना’वायरस की चपेट में है। यूं तो इस महामारी ने आर्थिक रूप से समाज के हर वर्ग को परेशान किया है लेकिन मजदूरों की जिंदगी पर इसने अमिट छाप छोड़ी है। इस वजह से मजदूरों की रोजी रोटी पर बन आई है। पिछले साल प्रवासी मजदूरों का दुःख तस्वीर के माध्यम से हम सब ने देखा और महसूस किया है।

अदम गोंडवी की यह लाइन, “वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है, उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है” मजदूरों का दर्द बयां करती है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी मजदूरों की महत्ता बताते हुए कहा था, “किसी भी देश की तरक्की उस देश के मजदूरों और किसानों पर निर्भर करती है।” एक मई समाज में मजदूरों के इसी अहम हिस्सेदारी को याद दिलाने का दिन है।

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