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10वी पास के बाद शादी हो गई, अपने ससुराल में केंचुआ खाद बनाकर ऑर्गेनिक खेती से सफलता की मिसाल कायम की

राजस्थान के दौसा जिले की एक महिला किसान रूबी पारीक (Ruby Pareek organic farming) ने 13  साल की अथक मेहनत के बलबूते पर देश में एक सफल जैविक किसान के तौर अपनी पहचान बनाने में कामयाबी पाई है। यह जैविक पद्धति का प्रयोग कर खेती कर रहीं हैं और अब इनके लाइब्रेरी से कोई भी व्यक्ति देशी बीज खरीद सकता है। Mahila Kisan Ruby Pareek

खेती से नहीं था कोई वास्ता ससुराल में सीखा सबकुछ

2004 में रूबी की शादी दौसा जिले में खटवा गांव के रहने वाले ओम प्रकाश पारीक से हुई तब उन्हें खेती के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता था। ससुराल में जीविका का मुख्य साधन खेती था । धीरे-धीरे उन्होंने भी खेती के कार्य में हाथ बंटाना शुरू कर दिया ताकि उनके परिवार की मदद हो सके।

 organic farming by Rubi parik

ऑर्गेनिक फार्मिंग की ट्रेनिंग की शुरुआत

2008 में रुबी के गांव मे कृषि विज्ञान केन्द्र में क़ृषि वैज्ञानिक  आए  और उन्होने किसानों को जैविक खेती organic farming  करने  के लिए प्रेरित किया। कृषि विज्ञान केन्द्र की तरफ से गांव के किसान, विशेषकर महिला किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग organic farming training के लिए बुलाया गया। रूबी को भी उनके पति ओम प्रकाश ने इस ट्रेनिंग में जाने के लिए प्रेरित किया।

दसवीं पास महिला किसान ने कर दिया कमाल

तीन दिन की ट्रेनिंग में रूबी ने जैविक खेती के बारे बहुत कुछ जाना और समझा। वहां रसायनों, उर्वरको और कीटनाशकों से होने वाले दुष्प्रभाव और बीमारियों के बारे में उनकी जानकारी सबसे ज्यादा  बढ़ी। उन्होंने तय किया कि वे ना सिर्फ खुद जैविक खेती अपनाएंगी बल्कि अपने आस-पास के किसानों को भी जैविक खेती करने के लिए समझाएंगी। Knowledge of organic farming

उचित समय पर लाभ के लिए धीरज जरूरी

20 बीघा जमीन में वर्ष 2008 में जैविक खेती शुरू की। फसलों के रूप में इन्होंने बाजरा, चना मूंगफली, गेंहू, ज्वार, जौ आदि उगाए। रूबी का मानना है कि किसी भी कार्य को शुरुआती दौर में कम लाभ मिलता है। धीरे-धीरे जब उसे अच्छी तरह समझ जाते हैं तो हमें उससे लाभ मिलने लगता है। ठीक ऐसा ही हमारे साथ भी हुआ।

रूबी ने कम्पोस्ट यूनिट की नींव रखी, अन्य किसानों को लाभ

रूबी ने अपने गाँव में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए  अपने पति के साथ मिलकर 200 मीट्रिक टन की एक कम्पोस्ट यूनिट शुरू की है । यहाँ पर वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने के साथ-साथ केंचुआ-पालन का काम भी किया जाता है । रुबी के इस यूनिट की वजह से  पूरे दौसा में  जैविक खेती करने वाले किसानों को वर्मी कम्पोस्ट उपलब्ध हो जाता है। इस वर्मीकम्पोस्ट यूनिट को शुरू करने में उन्हें नाबार्ड से काफी मदद मिली।

अजोला उत्पादन भी रूबी की देखरेख में

वर्मीकम्पोस्ट यूनिट के अलावा रूबी ने अपने यहा अजोला उत्पादन इकाई की स्थापना की है। अज़ोला एक तरह की फ़र्न है और गुणवत्ता से भरपूर अजोला को पशुओं के चारे के रूप मे इस्तेमाल किया जाता है। अज़ोला उत्पादन की लागत, सामान्य हरे चारे के लिए इस्तेमाल होने वाली चारे फसलों से काफी कम है और इसके फायदे बहुत ज्यादा हैँ। इसे सूखे चारे में मिलाकर पशुओं को दिया जाता है।

रूबी को मिला भारत सरकार की ओर से सम्मान

जैविक कृषि में योगदान के लिए रूबी पारीक को भारत  सरकार  और राज्य  सरकार की तरफ से पुरस्कार और सम्मान से भी नावाजा  गया। इस तरह जैविक खेती और कारोबार दोनों में अपनी ख़ास सोच, मेहनत और लगन के कारण सफल हुईं रूबी एक स्वस्थ समाज और देश के निर्माण के लिए प्रयासरत है क्योंकि उन्होंने खेती जैसे क्षेत्र में,महिलाओं के लिए भी संभावनाओं के नए दरवाज़े खोल दिए हैं।

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