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देखिए एक अनोखा फार्म जिसमें Fish और Poultry Farming दोनों होती है, एक-दूसरे से दोनों फार्म चलते हैं

वर्तमान समय में लोग शहरों की भाग-दौड़ भरी जिंदगी को छोड़ गांव की तरफ रुख कर रहें हैं ताकि शांतिपूर्ण जीवन गुजार सकें। ऐसे में जीवनयापन के लिए लोग गांवो में मत्स्यपालन, खेती, मुर्गीपालन तथा मवेशीपालन को अपने आय का स्त्रोत बना रहे हैं। आज के हमारे इस लेख में आप एक ऐसे शख्स से रू-ब-रू होंगे जिन्होंने शहरों की चकाचौंध से निकलकर गांव आकर इंट्रीग्रेटेड फार्मिंग प्रारम्भ की, जहां वह मत्स्यपालन का कार्य प्रारंभ किया और धीरे-धीरे मुर्गीपालन के तरफ भी रुख मोड़ा।

उनके मुर्गी फार्म (Poultry farming) में कड़कनाथ मुर्गी, देशी मुर्गी आरआरएफ नामक नस्ल की मुर्गियां हैं, साथ ही वह चूजों के लिए हैचरी तैयार किए हैं। वह अपने मुर्गियों तथा मछलियों के दाने के लिए आटा चक्की भी चलाते हैं जिससे उनको दाना खरीदने के लिए कहीं और नहीं जाना पड़ता। आज अपने इन कार्यों से वह गांव में ही लाखों रुपए कमा रहे हैं और दूसरों के लिए मिसाल पेश कर रहे हैं। आईए जानते हैं उस शख्स तथा उनके इंट्रीग्रेटेड फार्मिंग के विषय में विस्तार से….

वह शख्स हैं संजीव सिंह (Sanjeev Singh) जो बुलंदशहर (Bulandshahr) के गांव स्मैला से ताल्लुक रखते हैं। देशी मुर्गीपालन तथा मत्स्यपालन (Fish Farming) करने से पूर्व वह दिल्ली में रहते थे और यहां उनकी गैस की एजेंसी है जिसमें वह कार्य किया करते थे। जब लॉकडाउन लगा तब काम बंद हो गया और वह अपनी मां के पास घर लौट आए क्योंकि उनकी मां यहां गांव में अकेली रहती थीं। उनकी बाकी फैमिली दिल्ली ही रहती है। जब वह यहां आए तब वह अकेले बैठे-बैठे बोर हो जाते थे तब उन्होंने मन बनाया की वह कोई ऐसा कार्य करें जिससे वक्त भी कट जाए और पैसा भी मिल जाए।

शुरू किया मत्स्यपालन और मुर्गीपालन

उन्होंने यूट्यूब पर विडियोज देखे और मन बनाया कि छोटा सा मत्स्यपालन ही कर लूं। इसके बाद उन्होंने तलाब बनाए और इसके बगल में ही मुर्गीपालन की भी व्यवस्था कर ली। शुरुआती दौर में उन्होंने 60 हजार मछली का जीरा लाया और तालाब में डाल दिया जिससे उनकी अच्छी आमदनी हुई। लेकिन ज्यादा मछली के कारण मछलियों का ग्रोथ सही तरह से नहीं हुआ। आगे सीख लेते हुए उन्होंने दूसरी बार 50 हजार जीरा हीं डाला। उनके तलाब में रेहु, कतला, फंगास तथा सिलवरग्रास मिक्स प्रजाति की मछलियां हैं। वह ये कार्य लगभग 9 माह से कर रहे हैं और लाभ कमा रहे हैं।

Sanjeev singh integrated poultry farm and fish farming in bulandshahar
संजीव सिंह का फार्म

दाने के लिए खोला आटा चक्की

वही उनके मुर्गी फार्म में आपको कड़कनाथ, देशी तथा आरआईआर और डबल एफेफगी किस्म की मछलियां मिलेंगी। वह बताते हैं कि जब मुर्गीपालन शुरू किया तो दाना की लागत अधिक होती थी इसलिए उन्होंने आटा चक्की खोला ताकि दाना ना खरीदना पड़े। इन सारे कामों के बाद उनके पास खाली वक्त रह गया तब उनके एक भाई ने उन्हें सजेशन दिया कि वह अपने चक्की में गांव के लिए आटा पिसना प्रारम्भ किया जिससे उनका वक्त भी निकल जाएगा और कुछ लाभ भी हो जाएगा। आज उनके चक्की में 8 गांवों के लोग गेंहू पिसाने के लिए आते हैं जिससे वह दाने को लेकर टेंशन फ्री रहते हैं।

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बनाई है हैचरी भी

संजीव सिंह (Sanjeev Singh) ने लगभग 1 बीघा जमीन में मत्स्यपालन (Fish Farming) किया है और इससे लाभ अर्जित कर रहे हैं। उन्होंने मुर्गीपालन 5 महीने पूर्व किया था और 270 रुपए की मुर्गी लाकर इसकी शुरुआत की थी। आज वह इस मुर्गीपालन से अंडे भी बेचते हैं जिसकी कीमत 15-20 रुपए होती है। इन्हीं अंडों से उन्होंने हैचरी भी लगाई है जिससे उन्हें अतिरिक्त मुनाफा होता है। अभी उनके हैचरी की कैपेसिटी 700 अंडे की है जब सफलता मिलेगी तो वह इसे अवश्य बढ़ाएंगे। उन्होंने हैचरी में 700 अंडे लगाए थे जिसमें से लगभग 620 अंडों में से स्वस्थ बच्चे निकले थे।

संजीव सिंह के फार्म का यह वीडियो देखें

उन्होंने बताया कि मुर्गियों के रहने के लिए शेड बनाने में लगभग 2.50 लाख रुपए खर्च हुए थे जिसका साइज 36 बाई 70 है। उनके पास 10 बीघा जमीन फार्म के बाहर भी है जिसमें वह फार्म का दायरा बढ़ाने वाले हैं। शुरुआत में उन्होंने 500 मुर्गियों को लाया था जिससे उन्होंने अंडे प्राप्त किए और आगे उन्हें 500 रुपए में बेच दिया। आज उनके पास मुर्गी तथा मुर्गों की संख्या कम है। उन्हें अपने उत्पादों की बिक्री के लिए बाजारों के चक्कर नहीं काटने पड़ते क्योंकि हर चीज फार्म से ही बिक जाता है।

आगे का उद्देश्य

वह बताते हैं बाकी खाली जमीनों में मेरा बकरीपालन करने का उद्देश्य है, या फिर मैं अन्य छोटे-छोटे फार्म खोलूंगा। उन्होंने शुरूआती दौर में जब मछलियों को 100 रुपए प्रति किलोग्राम बेचा तब उनका अनुभव नया था। आज उनकी मछलियां अधिक मूल्य पर बिकती हैं और किसी भी बिचौलिए या मार्केट जाने की जरुरत नहीं पड़ती।

अन्य लोगों के सुझाव

वह बताते हैं कि जब मैं दिल्ली में रहता था तो इतना सुकून नहीं था जितना यहां है। मैं अपनी मां की सेवा भी कर लेता हूं साथ ही अपने आय का स्रोत भी अच्छा-खासा बना लिया हूं। मैंने एक गाय भी रखी है जिससे हमें खाने-पीने के लिए दही-दूध भी नहीं खरीदना पड़ता। वह हमारे देश किसान या अन्य लोगों को ये सजेशन देते हैं कि अगर आप कोई प्राइवेट जॉब कर रहे हैं तो उससे बेहतर ये है कि आप अपने गांव में रहकर स्वयं का व्यापार प्रारम्भ करें जिससे लाभ भी होगा और आप अपने परिवार के साथ रह भी सकते हैं। हलांकि आप शुरुआत दौर में छोटी शुरूआत करें ताकि सफलता मिलें क्योंकि दिक्कतें शुरुआत में ही आती हैं। जब आप सफल हो जाएं तो अपने कार्य के दायरे को आगे बढ़ा लें।

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