Sunday, December 10, 2023

झारखंड की रहने वाली सरोज मांझी तसर से बुन रही हैं अपनी किस्मत

झारखंड के चाइबासा की रहने वाली सरोज के बनाए तसर प्रोडक्ट की लोगों के बीच अच्छी मांग है. सिल्क की वेरायटी तसर द्वारा सरोज साड़ी समेत महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रों की सिलाई करती हैं. सरोज बताती हैं कि उनके द्वारा बनाये गये कपड़ों में सबसे ज्यादा गम्छे और चादर की मांग रहती है क्योंकि अस्पतालों में इसकी सबसे ज्यादा मांग है. तसर से बनाये गये कपड़ों की कीमत काम के हिसाब से तय होती है क्योंकि इन पर हाथ का भी काम होता है. तसर की जड़ी वाली साड़ी की कीमत 5000 रुपयों तक होती है और छोटे गम्छों की कीमत 120 रुपय तक होती है.

Saroj Manjhi tasar product from Jharkhand

कोरोना के कारण आर्डर कम हुए


सरोज बताती हैं कि उन्होंने झारखंड में ही एक सरकार द्वारा रजिस्टर्ड संस्थान किरण स्वरोजगार समिति द्वारा साल 2009 से ट्रेनिंग लेने के बाद किरण स्वरोजगार समिति के ही युनिट किरण संस्थान में महिलाओं को ट्रेनिंग देने का काम करती हैं और यही से उन्हें आर्डर मिलते हैं, जिसमें उनके साथ 20-25 महिलाएं जुड़ी हैं. सरोज महीने में 10,000 रुपयों तक की कमाई करती हैं. हालांकि उन्होंने बताया कि कोरोना के कारण परेशानियां उठानी पड़ी क्योंकि आर्डर आने कम हो गये.

Saroj Manjhi tasar product from Jharkhand

लिया कई मेलों में भाग


सरोज बताती हैं कि उन्होंने अपनी कला को लोगों तक पहुंचाने के लिए विभिन्न-विभिन्न समय पर होने वाले आयोजनों में भाग लेती रहती हैं. उन्होंने साल 2017 दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे सरस मेला में भी भाग लिया था, जहां उन्होंने अपने बनाये कपड़ों को लोगों तक पहुंचाया था. साल 2019 में जमशेदपुर के रियल गोपाल मैदान में लगे मेले में भी सरोज ने भाग लिया था. साथ ही साल 2018 में लगे रांची के गोल्फ मैदान में भी उन्होंने भाग लिया था. इन सब जगहों पर सरोज ने अपनी कला समेत अपने साथ काम करने वाली महिलाओं को भी रोजगार के गुण सिखाये थे ताकि महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें.

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मिलता है सबका सहयोग


सरोज बताती हैं कि हालांकि उन्हें अब तक कोई अवार्ड भले ना मिल सके हो मगर लोगों से प्यार बहुत मिला है, जिसके द्वारा सामानों की खरीददारी भी हो जाती है. सरोज बताती हैं कि सरकारी सुविधाएं आने पर महिलाओं को उसमें जरुर भाग लेना चाहिए ताकि महिलाएं स्वयं के पैरों पर खड़े हो सकें. वह आगे बताती हैं कि परिवार के लोग उनका बहुत सहयोग करते हैं, जिससे उन्हें काम का प्रेशर महसूस नहीं होता. ऐसे भी काम के साथ समय बीत जाता है और ऐसे ही दिन गुजर जाते हैं.

यह लेख सौम्या ज्योत्स्ना ने लिखा है।