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बिहार का यह किसान सरकारी नौकरी छोड़कर कर रहे हैं खेती, संतरे की फसल से 50 हज़ार तक महीने में कमाते हैं

जुनून और कुछ करने का हौसला हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। इस बात को हमारे देश के किसान हमेशा सत्य सिद्ध कर के दिखाते हैं। हमारे देश के किसान में ऐसी योग्यता है जिससे वे बंजर भूमि को भी उपजाऊ बना सकते हैं तथा मिट्टी को भी फसल के अनुकूल या फसल को मिट्टी के अनुकूल तैयार कर सकते हैं।

आज की कहानी भी ऐसे ही एक किसान की है जिसने उपर्युक्त बातों को एक बार फिर से सही साबित कर के दिखाया है। इन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर अपने गांव की मिट्टी से प्रेम की भावना को कृषि के रूप में व्यक्त करने की कोशिश की है। इन्होंने संतरे की खेती कर के खेती की परिभाषा को परिवर्तित कर दिया है।

इस किसान का नाम है सत्येंद्र पांडेय (Satyendra Pandey)। सत्येन्द्र वैशाली (Vaishali) के हाजीपुर सदर प्रखंड के भटन्डी गांव के किसान है। इन्होंने स्नातक और बी फार्मा की उपाधि हासिल की है। जैसा की हम सभी जानते है वैशाली की भूमि आम और केले की खेती के लिये प्रसिद्ध है। लेकिन सत्येंद्र पांडेय वैशाली के जमीन पर बड़े स्तर पर नागपुरी संतरे की खेती भी कर रहें है। इन्होने अपने जमीन में 50 संतरे के पौधे लगाये हुए हैं। उसमें से 20 से 22 पेड़ो से काफी मात्रा में संतरे का उत्पादन हो रहा है।

Satyendra pandey orange farming

सत्येंद्र पांडेय ने अपनी जमीन में तरह-तरह के पौधे लगाकर चारो तरफ हरियाली कर दिया है। आपको बात दें कि मिशन भारती ने सत्येंद्र पांडेय को वैशाली विभूति सम्मान से सम्मानित भी किया है। खेती के साथ पांडेय अपनी पुस्तैनी जमीन पर अपना एक स्कूल भी चलाते हैं। उनके विद्यालय में छात्रों को पेड़-पौधे के प्रति प्रेम भाव को भी सिखाया जाता है। सत्येंद्र बताते है कि पेड़-पौधे के प्रति उनका प्रेम उनके साथ ही जायेगा।

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वह बताते है कि 7 साल पहले इन्होंने नागपुर से संतरे का एक पौधा लाया था तथा ग्राफ्टिंग कर यहां के मिट्टी के अनुरूप पौधे तैयार किये है और कर रहें है। संतरे का एक वर्ष में सौ किलों से भी अधिक के फल का उत्पादन होता है। इन्हें मार्केटिंग की भी कोई विशेष चिंता नहीं रहती है। पास के ही सराय बाजार में आसनी से 50 से 60 रुपये किलो संतरे की बिक्री होती है। प्रति कट्ठा 50 हजार रुपये की आमदनी किया जा सकता है।

सत्येंद्र पांडेय की भूमि पर संतरा उत्पादन को काफी तारिफ भी मील रही है। कृषि अनुसंधान केंद्र पटना के निदेशक डॉ. अरविंद कुमार और कृषि विज्ञान केन्द्र हरिहरपर, हाजीपुर के पुर्व समन्वयक डॉ देवेंद्र भी देखकर सराहना कर चुके हैं। संतरे के साथ-साथ हल्दी और ओल की खेती भी किया जा सकता है। संतरे की खेती को नीलगाय और अन्य पशु-पक्षियों से किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता है।

The Logically सत्येंद्र पांडेय को संतरे की खेती करने के लिये खुब प्रशंसा करता है।

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