भाग्यशाली हैं वह बच्चें जिनके पिता उनकी हर मुश्किल में उनका साथ देते हैं। हर कदम पर उनके साथ रहते हैं। पिता…जो बचपन में उंगली पकड़कर बच्चों को चलना सिखाता है। आगे कहीं भी ज़रूरत पड़े तो अपने कंधों पर बैठा कर अपने लड़के को घुमाते है। एक पिता का होना जिंदगी में बहुत मायने रखता है। वहीं कुछ लोग मुश्किलों से हार मान जाते हैं तो कुछ मुश्किलों का सामना कर सबके लिए एक मिसाल कायम करते हैं। दूसरे लोगों के लिए प्रेरणा बनते हैं। आज की हमारी यह कहानी एक “ऐसे पिता की है” जो मजदूरी करते हैं और वह चाहते हैं कि जिन मुश्किलों का सामना वह कर रहे हैं, उसका सामना उनका बेटा न करें और पढ़ लिख कर एक बड़ा आदमी बने। आइए जानते हैं एक पिता के मुश्किलों के बारे में….
मध्यप्रदेश में एक अभियान के तहत 10वीं और 12वीं क्लास की परीक्षा में असफल हुए विद्यार्थियों को ख़ुद को साबित करने के लिए एक मौका दिया जा रहा है ताकि वे परीक्षा में उत्तीर्ण होकर आगे की पढ़ाई जारी रख सके। इस अभियान के तहत एक मजदूर पिता ने अपने बेटे को 105 किलोमीटर दूर का सफर साइकल चलाकर तय किये हैं। इस मजदूर पिता की चाहत है कि उनका बेटा उनके जैसे मजदूरी ना करें और ऑफिसर बने। जिस दिन उनके बेटे की गणित की परीक्षा थी उस दिन उन्होंने साइकिल से अपने बच्चे को उस परीक्षा केंद्र पर पहुंचाया।
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शोभाराम जो मनावर जिले के निवासी हैं उनका बेटा आशीष दसवीं की तीन विषयों में असफल रहा है। मध्य प्रदेश एक अधिनियम के तहत असफल हुए बच्चों की परीक्षा ले रहा है। आशीष भी तीन विषयों में असफल हुआ है इसलिए उसे भी अपनी काबिलियत दिखाने का दूसरा मौका मिला है। आशीष को गणित, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान की विषयों की परीक्षा देनी है। परीक्षा केंद्र स्कूल घर से 105 किलोमीटर दूर है और इस कोरोना संक्रमण के कारण हर जगह वाहन बंद है। इस वजह से शोभाराम को सोमवार की रात से साइकिल चलाकर अपने बेटे को उस परीक्षा केंद्र तक पहुंचाना पड़ा है। यह परीक्षा केंद्र धार में है। इस इलाके में संसाधनों की कमी होने के कारण किसी के रुकने की की व्यवस्था नहीं है। जिस कारण इनके पिता को खाने की सारी व्यवस्थाएं अपने साथ ले जानी पड़ी है। सोमवार रात 12:00 बजे से निकले पिता और पुत्र सुबह 4:00 बजे मांडू जा पहुंचे। मंगलवार को गणित का परीक्षा हुआ। अगले दिन सामाजिक विज्ञान और फिर उसके अगले दिन विज्ञान की परीक्षा होगी।
शोभाराम का मानना है कि मैं तो मजदूरी करता हूं लेकिन अपने बेटे के हर सपने को पूरा करूंगा और उसे अफसर बनाऊंगा। उससे यह मजदूरी करने वाला दिन नहीं देखने दूंगा जितना मुमकिन प्रयास होगा, मैं वह काम करूंगा जिससे मेरा बेटा एक सफल व्यक्ति बने। आशीष भी पढ़ने में तेज़ है लेकिन इस कोरोना वायरस के कारण स्कूल बंद है, इस कारण आशीष को शिक्षा से वंचित होना पड़ रहा है।
दसवीं की परीक्षा जब मेरे बेटे ने दिया था, उस समय मैं उसे ट्यूशन नहीं करा सका क्योंकि उस समय मेरे गांव में शिक्षक नहीं थे जिस कारण मेरे बेटा पढ़ा नहीं और वह असफल हो गया। अब एक मौका मिला है कि मेरा बेटा अपनी काबिलियत दिखा सके तो मैं हर मुमकिन प्रयास कर रहा हूं ताकि वह परीक्षा में उत्तीर्ण हो। धार मेरे घर से 105 किलोमीटर दूर है जिस कारण बेटे ने सोचा कि मैं परीक्षा नहीं दूंगा। लेकिन मैंने उसे हार नहीं मानने दिया और अपने बेटे का मनोबल बढ़ाते हुए कहा कि बेटा मैं हर कदम पर तेरे साथ हूं और फिर निकल चला उन मुश्किल राहों पर जिन राहों से मेरे बेटे को सफलता हासिल होगी। मैं उम्मीद करता हूं कि मेरा बेटा इस बार ज़रूर सफल होगा।
शोभाराम घर से परीक्षा केंद्र के लिए निकलने के दौरान बेटा और पिता ने रास्ते में विश्राम के लिए थोड़ा समय रुके। लेकिन डर था कि कहीं ज़्यादा देर ना हो जाए। इसीलिए वह जल्दी-जल्दी निकल पड़े। सुबह के 4:00 बजे थे कि वह मांडू पहुंच गए और एक परीक्षा के 15 मिनट पहले वह परीक्षा स्थल धार पहुंचे गयें। जब आशीष परीक्षा हॉल में प्रवेश किया तब उनके पिता की सारी थकावट दूर हुई और उन्होंने चैन की सांस लेकर विश्राम किया।
The Logically एक पिता के लगन को सलाम करता है और आशीष के परीक्षा में सफल होने के लिए कामना करता है।