धरती पर भगवान भी निवास करते हैं, ऐसा बड़े-बुजुर्ग, गुरुजनों…को कहते हुए हम सब सुने हैं। यह सच भी है। भगवान सिर्फ़ वो नहीं होते जिन्हें हम पत्थरों में ढूंढते हैं। जो जरूरतमंदों की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं, वे भी किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। एक ऐसी ही फरिश्ता का स्वरूप हैं सिंधुताई जो हजारों अनाथों की मां बन चुकी हैं।
अनाथ शब्द हम सब सुने ही हैं। इस शब्द में कितना दर्द छुपा होता है इसे एक अनाथ बच्चा ही समझ सकता है। जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता, जिसको अपने गुजारे के लिए दूसरों के आगे हाथ फैलाना पड़ता है, जिसका कोई घर नहीं होता, जिसके नसीब में मां का लाड़ और पिता का प्यार नहीं होता…। ऐसे ही बच्चों की मां है सिंधुताई सपकाल (Sindhutai sakpal), जिनका जीवन अनाथों की ज़िन्दगी संवारने के लिए समर्पित है।
![](https://thelogically.in/wp-content/uploads/2020/10/WhatsApp-Image-2020-10-10-at-7.13.45-PM-1.jpeg)
सिंधुताई का प्रारंभिक जीवन
सिंधुताई (Sindhutai) का जन्म 14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र (Maharashtra) के वर्धा जिले के पिंपरी गांव में एक अत्यंत गरीब परिवार में हुआ था। उस घर में बेटी का जन्म किसी अभिशाप से कम नहीं था। लड़की होने के कारण सिंधु भी अनचाही औलाद थी जिसके कारण उनका नाम “चिंदी” रखा गया, जिसका मतलब होता है ‘एक फटे हुए कपड़े का टुकड़ा’। एक दलित परिवार में जन्म लेने के कारण चिंदी को भी भैंस चराने जाना पड़ता था, इस काम से जो समय निकलता था उसमें वह स्कूल जाती थी। चिंदी के मन में पढ़ने की लालसा थी उनके पिता की मर्जी होते हुए भी मां ने पढ़ने नहीं दिया। जैसे-तैसे चिंदी चौथी पास की।
बाल्यावस्था में हीं हो गई शादी
मात्र 10 साल के उम्र में ही चिंदी का विवाह एक 30 साल के लड़के श्रीहरी सपकाल से हुई। जिस उम्र में बच्चे माता-पिता के लाड़-प्यार में पलते-बढ़ते हैं उस उम्र में चिंदी 3 बेटों की मां बन गई। चिंदी का भी जीवन गांव के आम औरतों की तरह ही व्यतीत हो रहा था लेकिन उनमें लोगों से बात करने का तरीक़ा, हौसला और जुनून कुछ अलग हीं था।
पति ने कर दिया त्याग
एक समय वह अपने गांव के ताकतवर व्यक्ति से शिकायत की, जो मान्य भी हुआ। एक औरत से जलील होना उस व्यक्ति के लिए बहुत बड़ा अपमान था, जिसका वह चिंदी से बदला लेना चाहता था। चिंदी उस समय 9 महीने की गर्भवती थी, उनपर गांव के साहूकार ने झूठा इल्जाम लगाया कि उनके पेट में पलने वाला बच्चा उनके पति का नहीं बल्कि उस साहूकार का है। इस झूठे बुनियाद पर उनके पति श्रीहरि ने उन्हें बदचलन करार कर, बहुत पिटाई करने के बाद बेहोशी की हालत में घर से बाहर गौशाले में छोड़ दिया। जब चिंदी को अगले दिन होश आया तब वह एक बेटी को जन्म दे चुकी थी, कोई मदद करने वाला नहीं था।
यह भी पढ़े :- खुद अनपढ़ होने के बाद भी 20 हज़ार आदिवासी बच्चों को पढाया, मिल चुका है पद्मश्री: तुलसी मुंडा
चिंदी से सिंधुताई बनने का सफ़र
चिंदी अपनी बच्ची को लेकर अपनी मां के पास गई लेकिन उनकी विधवा मां ने समाज के डर से उन्हें अस्वीकार किया। उसके बाद चिंदी आत्महत्या करने जा रही थी रास्ते में उन्हें एक भिखारी मरने की हालत में सड़क पर पड़ा मिला जिसे चिंदी ने पानी पिलाया और उसे थोड़ा होश आया। आगे चिंदी का मन बदल गया और वह सोची यह नया जीवन उन्हें किसी की मदद करने से ही मिला है जिसका वह ख़ुद गला घोंटने वाली थी। फिर चिंदी एक बस में चढ़ने गई लेकिन उनके पास टिकट नहीं था जिससे बस कंडक्टर ने उन्हें बैठाने से मना कर दिया। कहते हैं जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है वहां चिंदी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। थोड़े ही आगे बढ़ने पर बस के उपर बिजली गिर गई। चिंदी को एक नया जीवन मिला था जिसके अंदर चिंदी होने का अस्तित्व भी नहीं रहा वह चिंदी से सिंधु बन गई। सिंधु ने किताब में सिंधु नदी के बारे में पढ़ा था वह नदी जो लोगों के लिए शीतलता प्रदान करती है। सिंधु का भी यही मकसद बन गया।
![](https://thelogically.in/wp-content/uploads/2020/10/WhatsApp-Image-2020-10-10-at-7.13.44-PM-1.jpeg)
भीख मांगते हुए बच्चों को अपनाया
सिंधु अपना और अपनी बेटी का पेट पालने के लिए ट्रेन में गाना गाकर भीख मांगने लगी। उसी दौरान उन्होंने स्टेशन पर कई बेसहारे बच्चों को भीख मांगते हुए देखा और वह उनकी भी मां बन गई, भीख मांग कर हीं उन बच्चों का भी पेट भरने लगी। आगे वह और भी बच्चों को अपनाने लगी। एक समय उन्हें लगा कि वह अपनी बेटी और अन्य बच्चों में भेद भाव न करने लगे जिसके लिए वह अपनी बेटी ममता को गणपति के संस्थापक जगडूशेठ हलवाई को दे दी। ममता भी समझदार हो गई थी और उसने अपनी मां का हर निर्णय में साथ दिया।सिंधु ताई ने बहुत समय तक शमशान में अपनी ज़िंदगी व्यतीत की, वहां पड़े कपड़े पहन कर गुजारा की फिर भी उन्होंने बच्चों का पालन-पोषण जारी रखा।
धीरे-धीरे आदिवासियों से उनकी पहचान बढ़ती गई। सिंधु उनके हक के लिए भी आवाज़ उठाई और लड़ाइयां लड़ने लगी, साथ ही सिंधु भी उनके साथ रहने लगी। एक समय वह इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक पहुंच गई। धीरे-धीरे लोग सिंधु को माई के नाम जानने लगे और उनकी मदद भी करने लगे। सिंधुताई गाना गाने के साथ भाषण भी देने लगी और लोकप्रिय बनने लगी। सिंधुताई को 2009 में भाषण देने के लिए अमेरिका जाने का भी मौका मिला।
बेसहारे बच्चों का पालन-पोषण हीं मकसद
अपने पति से इस तरह से प्रताड़ित होने के बावजूद भी सिंधुताई अपने नाम के साथ पति का उपनाम जोड़े रखा। 80 वर्ष की उम्र में उनके पति उनके साथ रहने का अनुरोध करने लगे तो उन्हें सिंधुताई ने अपने बच्चे के रूप में स्वीकार, उनसे कहा “अब मुझमें सिर्फ एक मां बसती है पत्नी नहीं“। आज सिंधुताई 2000 हजार से भी ज्यादा बच्चों की मां बन चुकी हैं जिनमें कई वकील, डॉक्टर, इंजीनियर और साथ हीं समाजसेवक भी हैं।
सिंधुताई की बेटी ममता भी एक बेटी की मां बन चुकी है और वह भी अपनी मां के पदचिन्हों पर चलती है। वह भी “ममता बाल सदन” नाम का एक आश्रम चलाती है।
कई कार्यों के माध्यम से कर रही हैं समाज उत्थान
सिंधुताई का मानना है कि जिस गौशाला में ममता का जन्म हुआ वहां गायों ने ही उनकी रक्षा की है इसलिए वह नवरगांव हेटी, वर्धा में “गोपिका गाय रक्षण केंद्र” की भी शुरुआत की है। जिसमें वर्तमान में 175 गायें रहती है। हडपसर, पुणे में “सन्मति बाल निकेतन” नाम का एक संस्था चलता है। वहां 35 बच्चें है, उनकी देख भाल सिंधुताई के ही 20 बच्चों द्वारा किया जाता है। साथ ही चित्रकला में लड़कियों के लिए सिंधुताई ने “सावित्रीबाई फुले मुलींचे वस्तिगृह” और वर्धा में अपने पिता के नाम पर ही “अभिमान बाल भवन” भी बनवाया है।
![](https://thelogically.in/wp-content/uploads/2020/10/WhatsApp-Image-2020-10-10-at-7.13.44-PM.jpeg)
मिले अनेकों सम्मान
सिंधुताई 750 से भी ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित हुई हैं। इनके जीवन से प्रभावित होकर निर्देशक-अनंत महादेव 2010 में सिंधुताई के जीवन पर आधारित एक माराठी फिल्म बनाई जिसका नाम है “मी सिंधुताई सपकाल“। इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार सम्मान भी मिल चुका है साथ ही इसे 54 वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया है। इतना ही नहीं सिंधुताई के जीवन पर आधारित मां “वनवासी” किताब भी है और एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म “अनाथानंची यशोदा” भी है।
जिसका कोई नहीं होता उसे सहारा ईश्वर किसी न किसी रूप में जरूर देते है। सिंधुताई भी इस धरती पर ईश्वर का ही स्वरूप हैं। The Logically सिंधुताई सपकाल (Sindhutai sakpal) के इच्छाशक्ति और अदाम्य साहस को शत-शत नमन करता है और अपने पाठकों से उनके पदचिन्हों को अपनाने की अपील करता है।
![](https://thelogically.in/wp-content/uploads/2020/10/WhatsApp-Image-2020-09-04-at-9.22.01-PM-1.jpeg)