Home Uncategorized

मिलिए लद्दाख के Stanzin से जिन्होंने कई सैनिकों की जान बचाई, सेना की तरफ से इन्हें अवार्ड भी मिल चुका है

जाड़े के मौसम में हम सभी ठंड से सिकुरने लगते है। हम सभी अपने-अपने घरों में बहुत ही आराम से रजाई ओढे रहते हैं। आग से हाथ सेकते हैं। लेकिन क्या कभी किसी ने ये सोचा है कि हमारे देश के कई नौजवान सरहद पर कड़ाके की ठंड में कैसे रहते होंगे। खासकर यदि बात हो सियाचिन की तो देश के सैनिकों के बारे में सोंच कर दिल दहल जाता है।

आपकों बता दे कि सियाचिन ग्लेशियर (Siachen Glacier) धरातल से 22 हजार फीट ऊंचाई पर स्थित है। वहां माइनस डिग्री तापमान होता है। सियाचिन ग्लेशियर का तापमान -40 डिग्री तक गिर जाता है। ऐसे में वहां हमारे देश पर मर मिटने वाले जवान हर दिन जमा देने वाली ठंड का सामना करते हैं और उस ठंड में अपनी जान भी गवा देते है। ऐसी सहनशीलता सिर्फ हमारे देश के जवानो में हीं हो सकती है। सेना की बहादुरी सुनकर बेहद गर्व महसूस होता है।

Stanzin padma saves army lives

सियाचिन ग्लेशियर (Siachen Glacier) में सेना का समान उठाने के लिए कुछ स्थानीय लोगों को रखा जाता है। भारतीय सेना ने इसका नाम पोर्टर रखा है। पोर्टर सियाचिन में अपने जीवन का परवाह किए बिना सेना के लिए अपनी पीठ पर समान लादकर उन्हें उनके पोस्ट तक पहुंचाने का कार्य करते हैं।

आज हम आपको ऐसे हीं एक पोर्टर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने अपनी जान को दावं पर लगाकर सियाचिन में सेना के जवानों के प्राणों की रक्षा किया। उस पोर्टर को सम्मानित भी किया जा चुका है। आइये जानते है उस बहादुर पोर्टर के बारे में।

यह भी पढ़ें :- घायल होने के बाद भी सेना के डिप्टी कमांडर ने दो आतंकियों को ढ़ेर कर अपने जवान को सुरक्षित निकाला

स्टैनजिन पद्म (Stanzin Padma) बीते 8 वर्षों से सेना में पोर्टर का कार्य कर रहे हैं। उनकी उम्र 31 वर्ष है। वह सियाचिन ग्लेशियर पर सेना की चौकियों पर 20 किलों तक भार का समान उठाने के लिए पोर्टर्स के रूप में कार्यरत हैं। स्टैनजिन पद्म एक ऐसे पोर्टर हैं जिसने 2 जवानों की जान की रक्षा किया। इसके साथ हीं उन्होंने अपने 8 वर्षों के कार्यकाल में शहीद हुए सैनिकों और साथ पोर्टरों के शवों को भी गहरी जमी बर्फ से ढूंढ निकाला है। स्टैनजिन पद्म को उनके द्वारा किए गए इस सराहनीय कार्यों के लिये केंद्रीय गृह मंत्री ने वर्ष 2014 में “जीवन रक्षक पदक” से सम्मानित किया है। Stanzin Padma को यह अवार्ड बचाव दल को गंभीर चोट की परिस्थितयों में जीवन की सुरक्षा करने के लिए हिम्मत और तत्परता के लिए दिया गया था।

Stanzin Padma ने बताया कि वह पांच सदस्यीय टीम का हिस्सा थे। टाइगर एलपी (जो कि समुद्र तल से 21,500 फीट ऊपर है) नामक एक पोस्ट पर हिमस्खलन में सेना के 2 सैनिक फंस गए थे तब पद्म ने उन सैनिकों की जान बचाई थी। पद्म ने बताया कि वर्ष 2013 में एक बार रात में पांच सैनिक हिमस्खलन में दब गए थे। उन्होंने बताया कि बचाव दल के हिस्से के रूप में भारतीय सेना के एक अधिकारी सहित वे 5 लोग थे।

वह बताते हैं कि वह रेस्क्यू क्रू टीम में थे। उन्होंने स्कूटर लिया लेकिन मौसम खराब होने की वजह से वे उसे अच्छी तरह से नहीं चला सकते थे। ठीक से नहीं चलाने की वजह से स्कूटर को आधे रास्ते में छोड़ दिया और वहां से आगे बढ़े। पद्म बताते हैं कि ऊपर चढ़ते हुए एक बार सब हिम्संखल की चपेट में आ जाने की वजह से दब गए थे। हिमस्खलन कम हो जाने के बाद Stanzin को महसूस हुआ कि उनका पूरा शरीर बर्फ के अंदर दब गया था और वे एक इंच भी आगे नहीं बढ पा रहे थे। किस्मत से Stanzin के एक साथी केवल कमर से नीचे तक ही बर्फ में दबा हुआ था। वह साथ स्वयं को बर्फ से बाहर निकालने में सफल रहा और उसके बाद अपने सभी साथी को भी बाहर निकाला।

Stanzin Padma आगे बताते है “हमारी पोस्ट पर लौटने के लिए तथा सुबह मौसम खराब होने के कारण बचाव मिशन को फिर से आरंभ किया गया और जीवित बचे लोगों को सेना के हॉस्पीटल में भेज दिया गया।

पोर्टर को कितना मिलता है तन्ख्वाह।

सियाचिन (Siachen Glacier) मे स्थानिय लोगों को पोर्टर के रूप में कार्य पर रखा जाता है। पोर्टरों को पद की ग्रेड के अनुसार दैनिक तन्ख्वाह दिया जाता है। उन्हें 857 रुपये रोज मिलता है। सियाचिन ग्लेशियर पर 100 पद हैं जिन्हें उसकी उंचाई तथा वहां सेवा करने में शामिल जोखिमों के आधार पर 5 वर्गों में बांटा गया है। वैसे पोर्टर जो बेस कैम्प में तैनात रहते है उन्हें प्रतिदिन 694 रुपये दिया जाता है। वर्ष 2017 से इतना रुपया ही दैनिक वेतन में दिया जाता है। इसके अलावा पोर्टर्स को उच्च पदों पर रोज 857 रुपये की राशि दिया जाता है। इन आँकड़ों को वर्ष 2017 में परिवर्तित कर दिया गया।

पोर्टर लगातार 90 (3 महीने) दिनो तक कार्य करते हैं। सियाचिन में माइनस डिग्री तापमान में पोर्टर हिमस्खलन, बर्फवारी, बर्फ का खिसकना, तूफान, खराब मौसम आदि जैसी कठिन समस्याओं से जूझते हुए पोर्टर्स सेना के लिए कार्य करते हैं। 90 दिनों के बाद उन्हें नीचे भेज दिया जाता है। उसके बाद मेडिकल चेकअप के अनुसार वे स्वस्थ्य रहते हैं तो उन्हें सेवा के लिए वापस भेज दिया जाता है। स्टैनजिन ने करीब 1 दशक तक सियाचिन में पोर्टर का कार्य किया उसके बाद उन्होंने एक ट्रैकिंग एजेंसी के साथ भी कार्य किया। स्टैनजीन ने नुब्रा स्थित होटल के प्रबंधक के रूप में भी कार्य किया है।

The Logically स्टैनजिन पद्म को उनके बहादुरी और सेना की सुरक्षा करने के लिए उन्हें नमन करता है।

Exit mobile version