भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानत्तम सेनानियों में से एक माँ भारती के अमर सपूत चन्द्रशेखर आजाद ने अपना जीवन भारत की आजादी के लिए न्योछावर कर दिया !
बचपन से हीं उन्हें अंग्रेजों की गुलामी खटकती थी ! महज 14 वर्ष की छोटी उम्र में चन्द्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लोहा लेने की सोंची और क्रांति का रास्ता अपनाया और वे महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन से जुड़ गए !
बचपन से हीं उन्हें निशानेबाजी बेहद पसन्द थी ! वे बचपन में हीं निशानेबाजी की ट्रेनिंग लिया करते थे ! बचपन में हीं आजादी के लिए उतावला होना और भारत को आजादी दिलाना उनका मकसद बन चुका था !
14 वर्ष की उम्र में वे गिरफ्तार हो गए ! जब वे अदालत ले जाए गए और जज ने उनका नाम पूछा तो उन्होेंने कहा “आजाद” , पिता का नाम पूछने पर जोर आवाज में बोले “स्वतंत्रता” और पता पूछने पर उन्होंने कहा “जेल” ! इस अजीब उत्तर को सुनकर जज ने चन्द्रशेखर जी को 15 कोड़े की सजा सुनाई !
जब उन्हें 15 कोड़े की सजा दी जा रही थी उस वक्त वे दर्द से कराहने के बजाय “वन्दे मातरम्” का उद्घोष कर रहे थे ! इस घटना के बाद वे लोगों के द्वारा आजाद के नाम से भी पुकारे जाने लगे !
चौरा चौरी कांड के बाद गाँधी जी ने अपना आन्दोलन वापस ले लिया जिसके कारण आजाद जी का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और वे उत्तर भारतीय क्रांतिकारियों के लिए बने हिन्दुस्तानी प्रजातांत्रिक संघ में शामिल हो गए !
चन्द्रशेखर आजाद ने 1928 में लाहौर में लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज करने वाले ब्रिटिश पुलिस अफसर सॉन्डर्स को गोली मार दी और लाला लाजपत राय जी का बदला ले लिया !
इसके बाद चन्द्रशेखर जी राम प्रसाद बिस्मिल जी के सम्पर्क में आए और उनके क्रांतिकारी संगठन हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़ गए ! अब चन्द्रशेखर आजाद संगठन के क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाना शुरू किया ! उन्होंने अंग्रेजों की शासन वाली सरकारी खजाने को लूटना शुरू किया ! उनका कहना था कि जो धन मैं लूट रहा हूँ वह भारतीयों का है ! उन्होंने रामप्रसाद जी के नेतृत्व में काकोरी कांड में भी भाग लिया !
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चन्द्रशेखर जी हमेशा कहा करते थे कि “दुश्मनों की गोलियों का हम सामना करेंगे , आजाद हीं रहे हैं , आजाद हीं रहेंगे” ! उनके दिए इस नारे को युवा वर्ग बेहद पसन्द करता था ! वे जब भी मंच से इस नारे को कहते , युवा जोश से भर जाते और अपनी जान देश के लिए लुटाने को तैयार हो जाते !
एक दिन इलाहाबाद स्थित अल्फ्रेड पार्क में साथी सुखदेव के साथ आगे की कार्ययोजना बना रहे थे तभी अंग्रेजों ने उन पर हमला कर दिया ! आजाद जी ने जबाबी कारवाई में गोलियां चलाई ताकि उनका साथी सुखदेव बचकर निकल जाएँ ! अंग्रेजों के चलाए जा रहे गोलियों से चन्द्रशेखर बुरी तरह घायल हो गए !
उन्होंने पूर्व में जो कहा था कि वे आजाद हीं रहेंगे , कभी पकड़ा नहीं जाऊँगा और ना हीं अंग्रेज उन्हें फाँसी दे पाएगी ! उसी प्रण को कायम रखते हुए 20 मिनट लड़ते रहे और जब आखिरी गोली बची तो उसे खुद को मार ली और भारत का माँ का यह वीर सपूत सदा के लिए सो गया !
Logically महान स्वतंत्रता सेनानी चन्द्रशेखर आजाद जी को और उनकी वीरता को कोटि-कोटि नमन करता है !