अक्सर हम लोगों के वेशभूषा और उसके हुलिये से उसके काम को पहचान लेते हैं। उदाहरण के लिये हॉस्पिटल में डॉक्टर या नर्स के पहनावे से हम उन्हें पहचान लेते हैं। रास्ते पर भिखारी के कपड़े से आंक लेते है कि वह भिखारी ही है परंतु यह आवश्यक नहीं कि जो भीख मांगता है, वह बचपन से ही भीख मांगता होगा। भीख कोई किसी मजबूरी से ही मांगता है।
हाल ही में एक खबर सुनने मे आई थी जो 10 नवंबर यानि मतगणना के रात की है। चुनाव की सुरक्षा व्यवस्था में तैनात रात को लगभग 1:30 बजे DSP रत्नेश सिंह तोमर (DSP Ratnesh Singh Tomar) और विजय सिंह भदौरिया (DSP Vijay Singh Bhadoria) ने देखा कि सड़क किनारे एक भिखारी ठंड से ठिठुरते हुए कचरे में भोजन ढूंढ रहा था। उस भिखारी को एक ऑफिसर ने अपने जुते और एक ने अपनी जैकेट उतार कर दे दी। उसके बाद जब दोनों DSP जाने लगे तो उस भिखारी ने उन्हें उनके नाम से पुकारा। नाम सुनकर दोनों अधिकारी हैरान हो गये, जब पीछे पलटकर गौर से देखा तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। वह भिखारी इन दोनों DSP के बैच का सब इंस्पेक्टर था और उसका नाम मनीष मिश्रा है। वह सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा (Manish Mishra) 10 वर्षों से सडकों पर दर-बदर लावारिस की तरह ठोकरे खा रहा था।

मनीष की ऐसी स्थिति के बारे में जानकारी मिलने के बाद उनके कई बैचमेट उनका इलाज करवाने के लिये अपना हाथ आगे बढ़ाए हैं। मनीष के बारे में जब पता चला, उसी दिन डीएसपी रत्नेश और डीएसपी विजय ने उन्हें समाज सेवी संस्था में भिजवा दिया था। इन दोनों अधिकारियों ने मनीष से बहुत देर तक अपने पुराने दिनों की बातें की। उसके बाद जब वे अपने साथ ले जाने की हठ किये तो मनीष उनके साथ जाने के लिये राजी नहीं हुयें। उसके बाद उन्हें समाज सेवी संस्था भेजवा दिया गया जहां उनकी अच्छी चिकिस्ता चल रही है। वहां मनीष की देखभाल के साथ-साथ उनका इलाज भी हो रहा है। ट्विटर पर भी कई ऑफिसर मनीष की सहायता करने के लिये आगे आ रहे है। DSP रत्नेश सिंह तोमर और विजय सिंह के कार्यों की काफी प्रशंसा भी हो रही है।
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मनीष के परिवार का परिचय।
बतौर DSP मनीष के भाई थानेदार है। उनके पिता और चाचा दोनों SSP के पद से रिटायर्ड है। उनकी एक बहन भी किसी दूतावास में अच्छे पद पर है। मनीष का उनकी पत्नी से तलाक हो गया है। वह भी न्यायिक विभाग में कार्यरत है। वर्तमान में मनीष के दोनों DSP दोस्त ने उनका इलाज फिर से आरंभ करा दिया है।
ग्वालियर के झांसी रोड क्षेत्र में मनीष वर्षों से सड़कों पर लावारिस की तरह भटक रहे थे। वह वर्ष 1999 पुलिस बैच के अचूक निशानेबाज थानेदार थे। मनीष दोनों अधिकारियों के साथ वर्ष 1999 में पुलिस सब-इंस्पेक्टर में भर्ती हुये थे।
The Logically रत्नेश सिंह तोमर और विजय सिंह भदौरिया के इस कदम की बेहद सराहना करता है।
