Wednesday, December 13, 2023

9वीं के बाद छोड़ दिये पढाई, अपनी अनोखी पद्धति से एक एकड़ में 1000 क्विन्टल गन्ना उगाकर लाखों कमा रहे हैं

हमारे देश की लगभग 70% जनसंख्या गांवों में निवास करती है और उनका पेशा कृषि है। सभी लोगों के लिये भोजन उप्लब्ध हो इसके लिये किसान दिन-रात मेहनत करतें हैं। लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें उचित मूल्य नहीं मिलता है। उन्हें कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कभी फसल अच्छी होती हैं तो कभी कड़ी मेहनत के बाद भी बहुत कम उपज होती है। ऐसे में फसलों के अच्छे उत्पादन न होने के कारण कई किसान आत्महत्या कर लेते हैं। कुछ किसान उत्पादन और आमदनी को बढ़ाने के लिये अपने ही स्तर पर भिन्न-भिन्न प्रयोग कर खेती को बेहतर बना रहें हैं और इसके साथ ही अन्य किसानों को भी सहायता पहुंचा रहें हैं।

आज आपको ऐसे ही 9वीं पास किसान के बारें में बताने जा रहे हैं। इन्होंने अपने अनुभव और प्रयोग से पारम्परिक खेती में बदलाव लाकर केवल 1 एकड़ में 1 हजार गन्ने की खेती कर सालाना 1 करोड़ की कमाई की है। और दूसरों के लिये मिसाल भी पेश कर रहें हैं।

Suresh Kabade

आइये जानते हैं इस 9वीं पास किसान के बारें में

सुरेश कबाडे मुंबई से 400 Km दूर सांगली जिले के तहसील बालवा मे कारंदवाडी के निवासी हैं। इन्होंने 19 फीट लंबे गन्ने का उत्पादन कर सभी को अचंभित कर दिया है। सुरेश कबाडे के पास यह पद्धति सीखने के लिये कई राज्यों के किसान संपर्क कर रहें हैं। जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, गुजरात तथा मध्यप्रदेश। सुरेश कबाडे द्वारा उपजाए जाने वाले गन्ने अन्य किसानों के गन्ने से लम्बाई बहुत अधिक लंबे होते हैं। लगभग 19 फीट और वजन 4 किलो होता है। सुरेश कबाडे की इस तकनीक का इस्तेमाल पाकिस्तान के भी कई किसानों द्वारा किया जाता है।

सुरेश कबाडे ने बताया, “यह पेड़ी का गन्ना था, इसकी लम्बाई 19 फीट थी तथा उसमें 47 कांडी(आंखे) थी। उनके दूसरे खेत मे भी ऐसे ही गन्ने होते हैं। बीज को वे स्वयं ही तैयार करते हैं। ज्यादातर किसान 3 से 4 फीट पर गन्ना की बुआई करते हैं। लेकिन सुरेश कबाडे 5 से 6 फीट की दूरी तथा आंख की दूरी 2 से ढाई फीट रखते हैं। इसके अलावा वे गन्ने के बीच कुदाली से जुताई कर जमीन में खाद डालते हैं। उनके खेत में 1 हज़ार क्विंटल प्रति एकड़ का पैदावार होता है।”

सुरेश कबाडे लगभग 30 एकड़ में आधुनिक तरीके से गन्ने की खेती करतें हैं। यह इसलिए खास है क्योंकि उत्तरप्रदेश में बेहतर उत्पादन करने वाला किसान सिर्फ 500 क्विंटल प्रति एकड़ की उत्पादन कर पाता है, जबकि औसत उत्पादन 400 क्विंटल ही है। दूसरे क्षेत्र के किसान सुरेश के खेत का गन्ना बीज के लिये लेकर जाते हैं। सुरेश कोशिश करतें हैं कि गन्ना मील में ना जाकर बीज में अधिक जाये। इससे मुनाफा भी अधिक होता है। बीज के लिये गन्ने की कटाई जुन-जुलाई में होने की वजह से पेड़ी गन्ने का भी औसत अड़साली गन्ने का आता है। इस वर्ष सुरेश के पेड़ी गन्ने का औसत एक एकड़ में 120 टन मिला। गन्ने की लम्बाई 20 फीट तथा वजन 4 किलो हुआ।

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महाराष्ट्र में सुरेश कबाडे को गन्ने से सालाना 50 से 70 लाख की आमदनी होती है। इसके अलावा सुरेश हल्दी और केले को मिलाकर साल में 1 करोड़ से अधिक की कमाई करतें हैं। सुरेश ने वर्ष 2015 में एक एकड़ गन्ना, 2 लाख 80 हजार में बीज के लिये बिक्री की थी। इसके अलावा वर्ष 2016 और 2017 में एक एकड़ गन्ने के बीज को 3 लाख 20 हजार मे विक्रय किये हैं। कर्नाटक और मध्यप्रदेश के किसान भी गन्ने का बीज सुरेश कबाडे से खरीदते हैं।

सुरेश खेती को वैज्ञानिक तरीके से करते हैं। इन्होंने बताया कि पहले उनके खेत में भी 300 से 400 क्विंटल का उत्पादन होता था, उसके बाद जहां कमी दिखी उसे खेती की पद्धति में बदलाव लाकर पूरा किया। वे खेतों में भरपुर जैविक और हरी खाद डालते हैं तथा एजेक्टोबेक्टर और पीएसबी और पोटॉस (पूरक जीवाणु) का उपयोग करतें हैं। गन्ने को बोने से पहले वे खेत में समय और मौसम का ध्यान रख के चना बोते हैं।”

Sugercane fied

उन्होंने आगे बताया कि वे टिशू कल्चर (tissue culture) से भी गन्ने की खेती कर रहें हैं। उनके क्षेत्र में केले से टिशू बनाने वाली फर्म है। वे उनसे अपने खेत में सबसे बढ़िया एक गन्ने से टिशू बनवाते है और 3 वर्ष तक उससे फसल उगाते हैं। टिशू कल्चर अर्थात किसी एक पौधे से उत्तक अथवा कोशिकाएं प्रयोगशाला की विशेष परिस्थितयों में रखी जाती है, जिसमे स्वयं रोग रहित बढ़ने और अपने समान दूसरे पौधे पैदा करने की क्षमता होती है। सुरेश अपने खेत से 100 अच्छे गन्ने का चयन करते हैं, उनमें 10 स्थानीय लैब लेकर जाते हैं। वहां वैज्ञानिक एक गन्ना का चुनाव करता है और उससे एक वर्ष में टिशू बनाकर देता हैं। सुरेश ने बताया कि वे लैब को 8 हजार रुपये देते हैं। वो जो पौधा बनाकर देते है उसे एफ-1 कहा जाता है। एफ-1 और एफ-2 में गन्ने का आकार कम होता है जिसके वजह से उत्पादन कम होता है। इसलिए सुरेश एफ-3 होने के बाद गन्ने का बीज बनवाते हैं। जिससे उत्पादन बहुत अच्छा होता है।

उन्होंने बताया कि हमारे महाराष्ट्र के संत तुकाराम जी ने 350 वर्ष पूर्व कहा है कि, बीज अच्छा है तो उसके फल भी मीठे मिलते हैं। वो बताते है कि किसी भी फसल के लिये भूमि और बीज का अच्छा होना बेहद जरुरी है। सुरेश भी इन दोनों बातों का विशेष ध्यान रखते हैं। वे बीज खुद से तैयार करतें हैं। वे बेहतरीन तरीके से खेतों की जुताई, खाद पानी की व्यव्स्था करतें हैं। सुरेश कबाडे बीज के लिये गन्ने को 9 से 11 महीने तक फसल को खेत में ही रखते हैं तथा मील के लिये 16 महीने रखते हैं। उन्होंने कहा कि किसान को पेड़ी के गन्ने का बीज नहीं बोना चाहिए। महाराष्ट्र मे अधिक से अधिक संख्या में किसान सुरेश कबाडे की तकनीक का इस्तेमाल कर रहें हैं। सुरेश ने पिछ्ले 10 वर्षो से गन्ने की पत्ती को जलाना बंद कर दिया है। इससे उनके खेत में केंचुए की संख्या में वृद्घि हुईं है और खेत में बहुत ही सुधार हुआ है।

सुरेश कबाडे की इस प्रयोग और परिणाम को कृषि वैज्ञानिकों ने मान्यता दी है और उनके कार्य की सहाराना भी की है।

The Logically सुरेश कबाडे को गन्ने की अच्छी पैदावार के लिये बहुत बधाई देता है।