Home Environment

केले के छिलके और पत्ते से कप-प्लेट बनाकर यह युवा प्लास्टिक का विकल्प दे रहा है, इसके इस्तेमाल से प्लास्टिक से छुटकारा मिलेगा

प्लास्टिक से बढ़ते प्रदूषण भारत ही नही बल्कि पूरे विश्व के लिए एक संकट का विषय बन गया है।प्लास्टिक के ज्यादा प्रयोग से पर्यावरण और मानव जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है, जिसके कारण हम कई प्रकार की बीमारियों से ग्रसित हो रहे हों। पहले गांवो में लोग खाने के लिए प्लास्टिक के प्लेट के जगह केले के पत्ते का उपयोग किया करते थे तो शहर के लोग ऐसे लोगों के लिए देहाती- गंवार जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते थे। धीरे-धीरे गाँव में रहने वाले लोग भी अपने रहन- सहन तथा खान-पान का प्राकृतिक अलगाव करके शहरीकरण कर लिए। अब आज अनियमित दिनचर्या तथा खान-पान में बदलाव के कारण जब सेहत खराब हो रहा है तो लोग फिर से प्राकृतिक उत्पाद के तरफ झुकाव कर रहे हैं। आज हम बात करेंगे, 20 वर्षीय टेनिथ आदित्य (Tenith Aditya) की। जिन्होंने “केले के पत्ते की तकनीक” का अविष्कार किया हैं और पर्यावरण प्रेमी के रूप उभर कर सामने आए है।

कौन है, टेनिथ आदित्य

20 वर्षीय टेनिथ आदित्य (Tenith Aditya) , तमिलनाडु (Tamilnadu) के विरुधुनगर जिले के सुदूर गांव के रहने वाले है। इन्होंने इतने कम उम्र में “केले के पत्ते की तकनीक” का अविष्कार कर आज हम सबके लिए सबक तथा एक मिशाल कायम किया है।

Tenith aditya making items with banana leaf

कैसे किया अविष्कार

एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में, टेनिथ आदित्य ने बताया कि, “जब मैं 10 साल का था तब मेरे गांव में केले की बहुत उपज हुआ करती थी। मेरे गांव में उस समय ज्यादातर किसान गरीब थे। वो अपनी आय बढ़ाने के लिए बहुत मेहनत करते थे। उस समय मैं अक्सर किसानों को देखता था कि वो केले के पत्ते का बड़ा हिस्सा फेंक देते थे और केवल उपयोगी अंश को उपयोग करते थे। तब मुझे महसूस हुआ कि जो केला का बेकार हिस्सा फेका जा रहा है उसका भी सदुपयोग करके व्यवसायिक उपयोग में लाया जा सकता है और उससे किसानों को आय में वृद्धि भी हो सकती है। उसी समय से मैं इस अविष्कार में जुट गया। जब मेरे गांव के मेरे उम्र के बच्चे बुनियादी गणित तथा विज्ञान सीख रहे थे तब मैं तकनीक के आविष्कार में जुटा रहा। मैं स्कूल के बाद विभिन्न प्रकार का तरीकों का प्रयोग करता था, जिससे केले के पत्तो को मूल्यवान बनाया जा सकें। बहुत जल्द मुझे समझ मे आ गया कि केले के पत्ते का उपयोग केवल किसानों का आय बढ़ाने में ही नही बल्कि इसका उपयोग” एकल उपयोग प्लास्टिक” तथा “परिणामी अपशिष्ट संकट” जैसी दो पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने में भी किया जा सकता है।”

यह भी पढ़ें :- 25 वर्षीय साक्षी ने प्लास्टिक बॉटल्स और कोकोनट शेल से घर मे बनाया मिनी जंगल,अनेकों प्रकार के पशु पक्षियों को आशियाना मिला

18 साल की उम्र में की अपने स्टार्टअप की शुरुआत

18 साल की उम्र में ही टेनिथ आदित्य ने एक स्टार्टअप “टेनिथ इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड” की शुरूआत किया और उसके सीईओ बन गए। उनके इस स्टार्टअप में केले के पत्ते से प्लेट, कप आदि जैसी चींजे बनाई जाती है। टेनिथ आदित्य का कहना है कि, लोग प्लास्टिक से बने प्लेट, स्ट्रॉ, कप और पॉलिथीन का उपयोग करने के आदि होते जा रहे है। इन चीजों का उपयोग आप एक बार करते है और कचरो का पहाड़ बना देते है। इसलिए मैने ऐसा तकनीक बनाया, जो बिना किसी केमिकल के प्रयोग किये केले के पत्तो को तीन साल से अधिक समय तक सुरक्षित रखती है तथा इसके स्थायित्व को भी बढ़ाता है। जो पत्तियां संरक्षित होती है वो अत्यधिक तापमान का विरोध कर सकती हैं तथा वो अधिक वजन धारण कर सकती हैं मूल पत्तियों की तुलना में। प्लास्टिक से बने प्लेटों और कपों को बनाने की लागत की तुलना में केले के पत्ते से बना प्लेट और कप की निर्माण लागत बहुत कम है तथा इसके उपयोग के बाद हम मवेशियों को चारे के रूप में डाल सकते है या फिर खाद रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

“बनाना लीफ टेक्नोलॉजी’ के लिए मिली कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार

टेनिथ आदित्य का कहना है कि, “इस तकनीक (बनाना लीफ टेक्नोलॉजी) के लिए मुझे दो राष्ट्रीय पुरस्कार तथा सात से अधिक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले है। इन पुरस्कारों में प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय हरित प्रौद्योगिकी पुरस्कार और भविष्य के लिए प्रौद्योगिकी पुरस्कार भी शामिल हैं। ये सब पुरस्कार मुझे इस तकनीक के किफायती, नवोन्मेषी और पर्यावरणीय प्रभाव के कारण मिली हैं।”

केले के पत्ते की तकनीक कैसे करती है काम?

जब एक न्यूज चैनल ने टेनिथ से यह पूछा कि यह तकनीक कैसे काम करती है, इसपे टेनिथ ने बताया कि, “बनाना लीफ टेक्नोलॉजी” एक सेलुलर इको-फ्रेंडली तकनीक है। यह प्राकृतिक संरक्षण तथा हमारे उपयोग के लिए भी बहुत अच्छा है। उन्होंने आगे कहा कि, इस तकनीक में जीवित जीवों में कोशिकाओं को इस तरह से बंद कर दिया जाता है कि उनका चयापचय रुक जाता है और इससे जीव की उम्र बढ़ना बंद हो जाती है। चयापचय में जीवन को बनाए रखने के लिए कोशिकाओं की गतिविधियाँ शामिल हैं जैसे श्वसन, गति, विकास आदि। ये संसाधित पत्ते 100 प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल, स्वस्थ, मानव-अनुकूल, पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल हैं और डिस्पोजेबल के लिए एक व्यवहार्य प्रतिस्थापन हैं। उन्होंने समझाया कि आम तौर पर, पत्तियां और जैव सामग्री कुछ दिनों के भीतर खराब हो जाती है जिसके बाद यह बेहद शुष्क हो जाती है और आसानी से टुकड़ों में कुचल दी जा सकती है। यह प्लास्टिक और कागज के लिए एक खराब विकल्प छोड़ देता है।

बनाना लीफ टेक्नोलॉजी का उद्देश्य

बनाना लीफ टेक्नोलॉजी का उद्देश्य यह है कि, पत्तियों के भौतिक गुणों को बढ़ाकर उन्हें लंबे समय तक संरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से किसी भी समान का उपयोग करना है। टेनिथ का कहना है कि, “सबसे ज्यादा शोध मैने पत्तियों के जीवनकाल को बढ़ाने के लिए किया ताकि हम किसानों को पौधे के इस हिस्से का उपयोग करने का एक तरीका दे सकें। एक बार जब मैंने इस पर शोध करना शुरू किया, तो कुछ परीक्षणों और त्रुटियों के बाद, मैं एक ऐसी तकनीक के साथ आया, जिससे मैं छुट्टी के जीवनकाल का विस्तार करने में सक्षम था और इसके अलावा, मैं कुछ हद तक छुट्टी के गुणों को बढ़ाने में भी सक्षम था। केले के पत्ते की तकनीक पत्ती को एक ऐसी सामग्री में स्थानांतरित करने में सक्षम है जो प्लास्टिक और कागज की जगह ले सकती है।” उन्होंने आगे कहा कि, यह तकनीक ऐसी सामग्री बनाती है जिसका उपयोग किसी भी अनुप्रयोग के लिए उपयुक्त उत्पाद बनाने के लिए किया जा सकता है जैसे आइसक्रीम कोन, लिफाफा, गिफ्ट रैप, प्लेट, चम्मच, कप आदि। यह 100 प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल और सिंगल-यूज प्लास्टिक के लिए कम लागत वाला विकल्प है।

प्लास्टिक के सामग्री से सस्ता है केले के पत्ते से बना सामग्री

टेनिथ के अनुसार, प्लास्टिक के जगह केले के पत्ते की तकनीक से सामग्री बनाने और वैकल्पिक उत्पाद बनाने की लागत बहुत सस्ती है। किसानों के लिए यह व्यवसाय कम लागत में ज्यादा मुनाफा होगा। उन्होंने आगे कहा कि, केले के पत्ते की तकनीक का उपयोग करके केले के पत्तों से एक पुआल के निर्माण के लिए लागत केवल 10 पैसे प्रति पुआल है जबकि प्लास्टिक के पुआल की निर्माण लागत 70 पैसे है। इसी तरह, केले के पत्ते से एक प्लेट बनाने में लगभग 1 रुपये का खर्च आएगा जबकि प्लास्टिक की प्लेट के निर्माण में लगभग 4 रुपया आएगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में और भी बड़ा अंतर है क्योंकि प्लास्टिक के स्ट्रॉ की कीमत करीब 2 डॉलर और प्लास्टिक की प्लेट की कीमत करीब 4 डॉलर है।

कई देशों में हो रही इस तकनीक का उपयोग

भारत मे बने स्टार्टउप “टेनिथ इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड” ने केले के पत्ते की तकनीक का पेटेंट कराया है, लेकिन यह केले के पत्ते से बना सामग्री का उत्पादन तथा बिक्री नही करता। टेनिथ का कहना है कि, हम टेक्नोलॉजी डिवेलपर हैं। हम केवल प्रोटोटाइप तैयार करते हैं और निर्माताओं को लाइसेंस प्रदान करते हैं। विदेशों में हमारी तीन कंपनियां हैं जो मेरे तकनीक का उपयोग कर रही हैं- एक यूएसए से, एक थाईलैंड से और एक कनाडा से। अभी हम भारत में भी कुछ कंपनियों के साथ बातचीत कर रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ भी तय नहीं हुआ है।

केले के पत्ते से बने सामग्री का करें उपयोग

टेनिथ ने बताया कि, दक्षिण भारत में केले के पत्ते को एक पारंपरिक महत्व दिया जाता है और यहां के कुछ लोग इसे शादीयों में प्लेटों के रूप में भी उपयोग करते हैं लेकिन एक बार प्रयोग में लाने के बाद इसे फेंक दिया जाता है इसलिए यहां टेनिथ की तकनीक का उपयोग केले के पत्तियों के मूल्य को बढ़ाने में कारगर होंगे। अगर हम केले के पत्ते का उपयोग लंबे समय तक और कई उद्देश्यों के लिए करें, तो यह निश्चित है कि प्लास्टिक और कागज के उपयोग बहुत कम होगा जिसके कारण हमारा पर्यावरण भी साफ-सुथड़ा होगा। टेनिथ ने स्पष्ट किया कि केले के पेड़ बड़ी मात्रा में पत्तियों का उत्पादन करते है , इसलिए इससे ज्यादा मात्रा में सामग्री बनाकर आसानी से बाजार की मांगों को पूरा किया जा सकता है और केले से बने सामग्री से प्राकृतिक जीवन को कोई हानि नही पहुंचेगी। उनका कहना है कि यदि डिस्पोजेबल के स्थान पर केले के पत्ते का उपयोग किया जाता है, तो कागज, कार्डबोर्ड और प्लास्टिक के बड़े पैमाने पर उपयोग के कारण होने वाले अरबों पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता है।

1 COMMENT

Comments are closed.

Exit mobile version