हमारे देश में महिलाओं को अगर कोई जिम्मेदारी सौंपी जाए, तो वह उन्हें अच्छी तरह निभाती हैं। महिलाएं खेती के द्वारा पहचान बनाते हुए आमदनी के क्षेत्र में भी सफलता हासिल कर रही हैं। झारखंड में अधिकतर किसानों के पास छोटे-छोटे ज़मीन के टुकड़े हैं। वह उसमें खेती तो करते हैं, लेकिन इससे लाभ कमाना थोड़ा कठिन है। यहां की महिला किसानों ने सामूहिक खेती के द्वारा असंभव कार्य को संभव किया है। उन्होंने अपने छोटे ज़मीन के भाग में ही ऐसी फसलों को लगा रखा है, जिससे लाभ मिल सके।
28 वर्षीय तीरथी देवी ने यह बताया कि हमें पहले बहुत दिक्कत हुआ करती थी लेकिन अब हम सब एक जुट होकर खेतों से सब्जियों को तोड़कर मार्केट में ले जाते हैं। कुछ ही समय में यह सारी सब्जियां बिक जाती हैं। थोक विक्रेता के तौर पर हमारे सब्जियों से हमें अधिक मात्रा में लाभ भी मिल रहा है। सामूहिक खेती का यह दृश्य झारखंड ही नहीं बल्कि इसके आसपास के 17 जिलों में देखने को मिल जाएगा।
जोहार परियोजना द्वारा इस सखी मंडली में जितने भी महिलाएं जुड़ी है, उन सबको प्रशिक्षण दी जाती है कि उन्हें किस तरह सामूहिक खेती करनी है बल्कि उन्हें किस तरह उत्पादों को एक साथ बाजारों में ले जाकर बेचना भी है। बात अगर समूहों की हो, तो लगभग 17 ज़िलों में 21 सौ से भी अधिक उत्पादन के कम्युनिटी बन चुके हैं। यह महिलाएं सामूहिक खेती कर लाभ भी कमा रही हैं।
32 वर्षीय गीता देवी टोनागातू गांव से सम्बन्ध रखती हैं। उन्होंने बताया कि हमें सामूहिक खेती से बहुत लाभ है। जब हम पहले खेती किया करते थे, तो इसके लिए हमें बीज और समय दोनों पर अधिक मात्रा में लागत लगती थी लेकिन अब हमें इस समूह में खेती से बहुत ही लाभ है। हमें जिस चीज की जरूरत है, वह हम समूह में बता देते हैं और हमें वहां से हर चीज मिल जाती है।
60 वर्षीय वनदेवी बताती हैं कि पहले उन्हें इन सबकी दिक्कत होती थी कि किस मौसम में किस फसल का उत्पादन करें, लेकिन इस सामूहिक खेती से जुड़ कर उन्हें यह सारी जानकारी मिल जाती है कि किस मौसम में फसल को लगाने से अधिक मात्रा में लाभ मिलेगा। बहुत कम समय में हमारी खेती से बहुत लाभ मिल रहा है। इससे हम बहुत लाभ कमा रहे हैं।