भारतीय समाज में लड़कियों को लेकर एक धारणा है कि बेटियां पराई होती हैं। शादी के पूर्व तक पिता के घर में वह अपना घर समझकर रहती, काम करती, सेवा करती लेकिन वही बेटियां शादी के पश्चात् अपने पिता के घर से पृथक-सी हो जाती है। उनका ससुराल हीं उनका असली घर मान लिया जाता है। ससुराल में बेटियां किस तरह से जिंदगी बिता रहीं, उसे कोई समस्या तो नहीं आदि सारी बातों से मायके के लोग दूर या कहने व सुनने भर का मतलब रखते।
ससुराल में लड़कियों के पति हीं उनका मुख्य रहनुमा होता है। यदि उनका साथ बना रहे तो लड़कियों की जिंदगी गुलजार रहती। ऐसे में अगर किन्हीं के पति का देहांत हो जाए तो वह पूरी तरह से टूट जाती हैं तथा उनका जीवन दुख भरे काँटों से भर जाता है। वह असहाय हो जाती हैं मानो जैसे उनकी जिन्दगी शून्य हो गई हो।
उपर्युक्त बातों से भिन्न कुछ ऐसी भी महिलाएं है जो अपने पति के चले जाने के बाद भी हिम्मत नहीं हारती हैं। वह अपने बच्चों की परवरिश के लिए हर चुनौती से लड़ती हैं। आज की यह कहानी भी एक ऐसी हीं महिला की है जो अपने पति को खोने के बाद भी एक किराने की दुकान से पांच बेटियों की परवरिश कर रही हैं तथा उन्हें अच्छी शिक्षा भी दे रही हैं। उस महिला की यह कहानी बेहद प्रभावी तथा प्रेरणादायक है, आईए जानते हैं उस महिला के संघर्ष भरे जीवन के बारे में…
चंद्रवती शुक्ला (Chandrawati Shukla) बिजुरी की निवासी हैं और उनकी 5 बेटियां हैं। उन्होंने बताया कि उनके पति का देहांत वर्ष 2008 में हो गया। अपने पति को हमेशा के लिए खो देने के बाद घर-परिवार तथा 5 बेटियों की सभी जिम्मेदारियां चंद्रवती शुक्ला के कंधों पर आ गई। उनके लिए यह जिम्मेदारी बहुत बड़ी चिंता का विषय बन गया जिसमें सबसे बड़ी चिंता बेटियों की शादी को लेकर था। चंद्रवती शुक्ला को यह बात अंदर-ही-अंदर खाए जा रही थी कि बेटियों की शादी कैसे होगी। परंतु इन सबके बावजूद उन्होंने हार नहीं माना और बहुत हीं साहस के साथ जीवन की लड़ाई में आगे बढ़ीं।
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चंद्रवती शुक्ला ने बताया कि उस संकट की घड़ी में एक छोटी-सी किराने की दुकान हीं उनके लिए रोजगार का जरिया था। उस किराने की दुकान से होने वाली आमदनी से उन्होंने बेटियों की अच्छी परवरिश और शिक्षा दी। उसके साथ उसी में कुछ बचत उनकी शादियों के लिए भी करती रहीं। अब वह अपनी तीन बेटियों की शादी कर चुकी हैं तथा दो बेटियां उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। मां के इस संघर्ष में उनकी सभी बेटियों ने कम उम्र से हीं प्रत्येक कार्य में हाथ बंटाकर उनके बोझ को कम करने का प्रयास किया है।
चंद्रवती शुक्ला ने अपने कार्यों से यह साबित किया है कि एक महिला कभी कमजोर नहीं होती है। यदि वह चाहे तो जीवन की सभी मुश्किलों का सामना कर सकती है तथा जीत भी सकती है। The Logically चंद्रवती शुक्ला के संघर्षों को सलाम करता है।