Wednesday, December 13, 2023

पहले घूम-घूमकर कोयला बेचती थीं, आज ऑडी मर्सिडीज जैसी अनेकों गाड़ियों की मालकिन हैं: सबिताबेन कोयलेवाली

अक्सर हम लोगों ने देखा है कि, बहुत सारे पूंजीपति लोग तथा बहुत बड़े बड़े बिजनेसमैन का अगर अतीत देखा जाए तो वह बहुत गरीबी से ही उठकर अपने सफलता के ऊँचाई के तरफ जाते हैं। जब भी हम किसी कि सफलता की बात सुनते हैं तो ऐसा लगता है कि केवल भाग्य से ही सफलता नहीं मिलती बल्कि उसके लिए कर्म भी करना पड़ता है। आज हम बात करेंगे, एक गुजरात के औधोगिक नगरी की रहने वाली सविताबेन देवजीभाई परमार (Savitaben Devajibhai Parmar) की, जो कि एक दलित महिला है। वे काफी गरीब परिवार से आती थी। उन्होंनें परिवार के जीविका के लिए कारखानों से कोयला चुन कर बेचा करती थी, उसके बाद कुछ पैसा होने पर उन्होंने कोयले का दूकान भी खोला और आज वे अपने संघर्ष के बदौलत करोड़ों की मालिकन हैं। आईये जानते है सविताबेन के संघर्ष की कहानी-

कोयला बेचने से की कारोबार की शुरुआत

सविताबेन (Savitaben) ने शुरू के समय में नौकरी के लिए बहुत संघर्ष की लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली। नौकरी नहीं मिलने के पीछे का कारण यह था कि सविताबेन को पढ़ना-लिखना बिलकुल नहीं आता था। सविताबेन भी हिम्मत हारने वाली औरत नहीं थीं। उन्होंने तब खुद का कोई काम शुरू करने का सोचा। उनके माता-पिता कोयला बेचने का व्यापार किया करते थे, जिसे देखते हुए सविताबेन ने भी कोयला बेचने का काम शुरू करने का निश्चय ले लिया। पहले सोचा कि माता-पिता के साथ रहकर काम करें, लेकिन उनकी मां ने यह कहकर मना कर दिया कि, इससे उनकी छोटी बहनों के रिश्ते आने में समस्या हो सकती है।

Sabitaben koylewali koyle wali

फैक्ट्रियों का जला कोयला बिन ठेले पर बेचने लगीं

माता-पिता के साथ कोयला बेचने से मना होने के बाद सविताबेन के पास एक ही रास्ता था। खुद कोयला खरीदकर बाजार में बेचें। लेकिन गरीबी के कारण उनके पास कोयले खरीदने के पैसे भी नहीं थे। फिर उन्होंने पैसे जुटाने के लिए पहले कोयला फैक्ट्रियों में से जला हुआ कोयला बिनना शुरू किया। अहमदाबाद में कई कपड़ा मीले थीं, जिनमें से अधजला कोयला निकलता था। यह कोयला वे बाजार में बेच देते थे। सविताबेन ने इन्हीं मीलों से कोयला खरीदकर बेचना शुरू कर दिया। उन दिनों घरों में भी कोयले पर ही खाना पकता था, इसीलिए सविताबेन को ग्राहक ढूंढने में अधिक परेशानी नहीं हुई। वे पहले अहमदाबाद की गलियों में ठेले पर कोयला लादकर बेचने लगीं, फिर धीरे-धीरे बड़े बाजारों में। दिन में कोयला बेचने के बाद वे शाम को अपने परिवार के साथ चरखा चलाकर सूत का काम करती थीं। इस सूत के बदले उन्हें थोड़े पैसे और थोड़ा राशन मिल जाता था, जिससे उनके परिवार का कुछ हद तक काम चल जाता था।

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कुछ पैसे इकट्ठे करके कोयले की दुकान खोली

जब ठेले पर फैक्ट्रियों के निकले जले हुए कोयले बेचने पर कुछ कमाई की तो उसके बाद उन्होंने खुद का व्यवसाय को बढ़ाने का सोचा और एक छोटी-सी कोयले की दुकान खोल ली। दुकान खोलने के बाद कुछ ही महीनों बाद उन्हें छोटे कारखानों से ऑर्डर मिलने लगे। जिन दिनों सविताबेन कोयला बेचती थीं, उन दिनों पक्का कोयला बेचने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता था। व्यापारी यह लाइसेंस लेकर अपने सब-एजेंट्स को कोयला बेचने का काम देते थे। उन्हीं में से एक व्यापारी थे श्री जैन, जिन्हें सविताबेन काका कहती थीं। काका को रेल से आने वाला कोयला बेचना होता था। उन्होंने सविताबेन की लगन को देखकर कोयला बेचने का काम उन्हें सौंप दिया, जबकि अन्य व्यापारियों ने उन्हें दलित कहकर काम देने से मना कर दिया था। अपनी जाति के कारण हुए इस भेदभाव से सविताबेन निराश नहीं हुई। धीरे-धीरे रेलवे का अधिकतर कोयला सविताबेन कमीशन पर बेचने लगीं। सविताबेन अपने परिवार के साथ एक चाल के छोटे से कमरे में रहती थीं। जैसे जैसे समय बितते गया वैसे ही उनकी आमदनी अच्छी होती गई।

Sabitaben koylewali koyle wali

संघर्ष के बदौलत मिली सफलता

सविताबेन कोयला के लिए छोटे कारखानों में जाया करती थी। एक समय जब उन्हें सिरेमिक वालों ने एक बड़ा आर्डर दिया, उसके बाद उनको बड़े भी आर्डर मिलना शुरू हो गया। कारोबार आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने एक छोटी सी सिरेमिक के भठ्ठी का निर्माण किया। इनके सिरेमिक की गुणवत्ता अच्छी होती थी और उचित मूल्य होता इसके कारण इनकी खूब बिक्री होने लगी। इन्होंने बहुत जल्दी इस कार्य मे सफलता हासिल कर ली। वर्ष 1989 में इन्होंने प्रीमियर सिरेमिक्स को बनाना शुरू किया। आगे इन्होंने 1991 में स्टर्लिंग सिरेमिक्स की स्थापना की। इसमें इन्होंने सिरेमिक्स प्रोड्क्स को बेचना शुरू किया। इसमें उन्होंने सफलता हासिल की।

आज के समय में कई लग्जरी कार तथा बड़े बंगले की मालकिन हैं

सविताबेन इन दिनों केवल ऑफिस में बैठकर काम होते देखती हैं। आज उनकी कंपनी जॉनसन टाइल्स जैसी कंपनी को भी सिरेमिक टाइल्स बेच रही है। इसके साथ-साथ उनका अपना ब्रांड ‘स्टर्लिंग’ भी पूरे देश में मशहूर है। कारोबार अब उनके बेटे संभालते हैं। अपने बलबूते पर करोड़पति बनीं सविताबेन का यह पूरा सफर आसान नहीं था, कई मुश्किलें झेलकर और अपनी गरीबी से लड़कर, उन्होंने अपना एक विस्तृत साम्राज्य स्थापित किया। आज उन्हें गुजरात में हर व्यक्ति जानता है और वे वहां सविताबेन कोलसावाला या कोयलावाली के नाम से मशहूर हैं। सविताबेन का नाम भारत की सर्वाधिक सफल महिला उद्योगपति की सूची में दर्ज है। उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। आज सविताबेन कई लग्जरी कारें, जैसे – ऑडी, पजेरो, बीएमडब्ल्यू व मर्सीडीज इत्यादि की मालकिन हैं। अहमदाबाद शहर के पॉश एरिया में उनके 10 बेडरूम के विशाल बंगले की शान भी देखते ही बनती है। सच यहीं है कि दिन-रात एक कर के जो लोग अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए मेहनत करते हैं, उसका परिणाम अच्छा होता है और उन्हें कामयाबी हासिल होती है।