Wednesday, December 13, 2023

उत्तरप्रदेश का यह किसान कर रहा बहुफसली खेती, आज कर रहे हैं अच्छी कमाई, मिल चुका है पद्मश्री

किसान खेती के जरिए अपनी एक अलग पहचान बना लेते हैं। उन्हीं में से एक किसान हैं सेठपाल सिंह (Sethpal Singh), जिनकी खेत किसी प्रयोगशाला से कम नहीं मानी जाती। वह अपने 15 हेक्टेयर खेत में धान, गेहूं, गन्ना जैसी फसलों के अलावा लौकी, मिर्च, गोभी, मिर्च जैसी सब्जियों की भी खेती करते हैं। इसके अलावा वह अपने खेत में सिंघाड़े की भी खेती करते हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर किसान गन्ने की खेती ही करते हैं, लेकिन सहारनपुर जिले के नंदीफिरोजपुर गाँव के रहने वाले 55 वर्षीय किसान सेठपाल सिंह हमेशा से कुछ नया करते हैं इसलिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना गया है। – Sethpal Singh is earning well through sugarcane, water chestnut, vegetable cultivation and fish farming.

सेठपाल ने खेती करने का किया फैसला

हमारे अनुसार पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करने वाला इंसान अच्छा होता है, लेकिन भारत के कुछ प्रतिभाशाली किसान ने इस बात को गलत साबित कर दिया है। साल 1987 में कृषि में स्नातक की पढ़ाई के बाद सेठपाल नौकरी ना कर खेती करने का फैसला किया। शुरूआती दिनों के बारे में सेठपाल सिंह बताते हैं कि पहले हम भी दूसरे किसानों की तरह सिर्फ गन्ना, गेहूं और धान जैसी फसलों की खेती ही करते थे, लेकिन इसमें ज्यादातर नुकसान ही होता था।

हर दिन होती है कमाई

नुकसान से बचने के लिए सेठपाल कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क किए। वहां वैज्ञानिकों से हमें कृषि विविधीकरण के बारे में बताया, जिससे किसान हर दिन कमाई कर सकता है। उसके बाद सेठपाल गन्ने, सब्जियों, मशरूम, की खेती के साथ ही सिंघाड़ा भी उगाना शुरू कर दिए। इसके अलावा वह मछली पालन, पशुपालन का भी काम करते हैं। सेठपाल सीजन के हिसाब से सब्जियों की खेती करते हैं, गर्मियों में लौकी, कद्दू, करेला और सर्दियों में गोभी, मिर्च, मूली जैसी कई फसलों की खेती करते हैं।

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नर्सरी में सब्जियों को तैयार कर खेत में लगाते हैं

सेठपाल बताते हैं कि हम पहले पॉलीबैग में सब्जियों की नर्सरी तैयार करते हैं, उसके बाद उसे खेत में लगाते हैं। इस दौरान उनकी कोशिश यह रहती है कि एक फसल का सीजन खत्म हो तब तक दूसरी फसल तैयार कर लें। सेठपाल बताते हैं कि शुरूआती दिनों में लोग मेरा मजाक उड़ाया करते थे। दरअसल गन्ने की एक साल की फसल होती है और वह मिल में जाती है, लेकिन तब पेमेंट नहीं मिल पाता। ऐसे में इतने खर्च होते हैं, जिसे पूरा कर पाना मुश्किल हो जाता है। सेठपाल ना केवल तालाब बल्कि सिंघाड़े की खेती भी करते हैं।

सहारनपुर के किसानों को देख आया आईडिया

शुरूआती दिनों के बारे में बताते हुए सेठपाल कहते हैं कि एक बार हम सहारनपुर के पास के एक गाँव से गुजर रहे थे, वहां पर किसान तालाब से सिंघाड़े की बेल निकाल रहे थे। हम लोग वहां रुके और जानकारी लिए। उसके बाद कृषि विज्ञान केंद्र गए और डॉक्टर साहब से इस विषय पर जानकारी लिए।उन्होंने कहा कि आप भी इसकी खेती कर सकते हैं तब साल 1997 में वह पूरी तरह से समतल खेत में सिंघाड़े की खेती शुरू किए। आपको बता दें कि इसका लेवल और दूसरे खेत का लेवल एक ही है। केवल इस खेत के मेड़ को थोड़ा ऊंचा कर देते हैं। – Sethpal Singh is earning well through sugarcane, water chestnut, vegetable cultivation and fish farming

सिंघाड़े की रोपाई का सही समय

जून के दूसरे सप्ताह में सिंघाड़े की रोपाई करना सबसे बेहतर समय हैं। सितम्बर के आखिरी सप्ताह तक फल आने लगते हैं। सेठपाल बताते हैं कि जून से दिसम्बर तक यह फसल चलती है, दिसम्बर में जैसे-जैसे पाला बढ़ता है यह फसल खत्म हो जाती है। सिंघाड़े की खेती में कीटनाशकों का प्रयोग न के बराबर होता है, केवल मिट्टी की जरूरत के अनुसार इसमे कीटनाशकों का प्रयोग होता हैं। जांच के बाद जिसकी कमी होती है, उसी के हिसाब से डालते हैं। सेठपाल खेत में ट्यूबवेल का पानी भर कर सिंघाड़े उगाते है, जिससे ज्यादा अच्छा सिंघाड़ा उगता है और यह अधिक कीमत पर बिकता भी हैं।

सिंघाड़े की फसल में मिली कामयाबी

सिंघाड़े की फसल मिलने के बाद दिसम्बर में इससे पानी निकाल देते हैं, लेकिन फसल अवशेष रहने देते हैं, जो बढ़िया जैविक खाद बन जाती है। उसके बाद सेठपाल सब्जी की खेती शुरू करते हैं। सिंघाड़े के साथ ही अब वह कमल की खेती भी शुरू कर चुके हैं, जिसका कमल नाल यानी कमल ककड़ी बिकती है और साथ ही इसका फूल भी बिक जाते हैं। सेठपाल अपने खेत के पास ही तालाब में मछली पालन भी करते हैं। वह बताते हैं कि हम विविधकरण खेती करते हैं, जिससे मछली उत्पादन भी शुरू किया है। साढ़े चार फीट पानी में तीन प्रजतियों की मछली यानी रोहू, कतला और नैन का पालन करते हैं।

सेठपाल के तालाब से जलस्तर बना रहता है

सेठपाल के अनुसार उनके तालाब से भूजल की समस्या नहीं रहती क्योंकि हमारे ट्यूबवेल में बारह महीने तक पानी आता रहता है। अब सेठपाल सिंह अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। वह अपने 15 हेक्टेयर की भूमि में पांच हेक्टेयर भूमि में गन्ने की बुवाई करते हैं और बाकी बचे 10 हेक्टेयर में वह बागवानी, सब्जी और सिंघाड़ा जैसी फसलों की खेती कर अच्छा मुनाफा कर रहे हैं। सेठपाल को कृषि विज्ञान केंद्र से बहुत मदद मिली।

कृषि वैज्ञानिक की मदद से सेठपाल बने सफल कृषक

कृषि विज्ञान केंद्र, सहारनपुर के प्रभारी व प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आईके कुशवाहा किसानों के खेतों में जाकर उन्हें नई जानकारी देते हैं। उनकी मदद से ही सेठपाल आज एक सफल कृषक बन पाए हैं। कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ. आईके कुशवाहा बताते हैं कि सेठपाल सिंह हमारे जिले के ऐसे किसानों में से एक हैं, जिन्हें जितना हम बताते हैं उससे ज्यादा उनसे सीखने को मिलता है। अन्य किसान जब गन्ने के भुगतान के लिए परेशान रहते हैं, सेठपाल अपने उसी खेत से अच्छा मुनाफा कमाते हैं। – Sethpal Singh is earning well through sugarcane, water chestnut, vegetable cultivation and fish farming.