हमारे देश भारत में कई युगों से लोगों में भेदभाव होते हुए देखा गया है। चाहे वो जातिभेद हो, धर्मभेद हो, लिंगभेद हो या फिर रंगभेद हो। अगर रंगभेद की बात करे तो हम जानते हैं कि रंगभेद की यह नीति मानव संसाधनों को नुकसान पहुँचाकर एक समाज के रूप में हमें कमजोर करती है।
इसी काले-गोरे के भेद के वजह से एक तरफ लोग गोरे बनने के लिए कई तरह के क्रीम का उपयोग करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ भारत में ही रहने वाली एक जनजाति है जहां गोरा बच्चा पैदा होने पर भयानक सजा दी जाती है।
तो आइए जानते हैं इस जनजाति से जुड़ी कुछ जानकारियां कि आखिर क्यों इस जनजाति के सदस्यों द्वारा काला बच्चा पैदा करना बेहद जरूरी होता है।
ऐसे तो दुनिया में कई जनजातियां हैं, जिनका रहन-सहन का तरीका हमलोग से बहुत हीं अलग है। ऐसे हीं भारतीय महासागर के टापू पर एक जनजाति निवास करती है, जिसे जारवा जनजाति के नाम से जाना जाता है और इनका तौर तरीका लोगों को एक बार सोचने मजबूर कर देता है।
जी हां, अंडमान एवं निकोबार आइलैंड पर रहने वाले जारवा जनजाति का आज भी अपने रहन-सहन और पुराने तौर तरीके के वजह से लोगों के लिए एक सवाल बने हुए हैं।
एक रिपोर्ट्स अनुसार ये जनजाति पिछले 55 हजार सालों से इसी आइलैंड पर रह रही है और अब तक की सबसे प्राचीन जनजाति मानी जाती है। अफ्रीका महाद्वीप का नेटिव कहलाने वाली ये जनजाति लंबे समय से भारतीय महासागर के टापू पर रह रही है।
विलुप्त हो रही यह जनजाति
रिपोर्ट्स के माने तो यह जनजाति हजारों साल पुरानी है और आज के समय में यह अब विलुप्त हो रही है। आज के समय में इस जनजाति में मात्र 380 लोग ही बचे हैं। ये लोग अपना पेट जानवरों का शिकार करके भरते हैं। ये लोग धनुष बाण से मछली और केंकड़े मारने से लेकर झुंड में सूअर का शिकार करके अपना पालन पोषण करते हैं।
सुंदर तथा गोरे बच्चे पैदा करने पर दी जाती है मौत की सजा
इस जनजाति की बहुत सारी ऐसी बातें है जो सुनने में कुछ अजीब तथा भयावह लगती है। दरअसल, इस जनजाति में किसी सुन्दर बच्चे या फिर गोरे बच्चे को पैदा होने पर मौत की सजा दी जाती है। जी हां, जारवा जनजाति में सबसे ज्यादा रंगभेद देखने को मिलती है। इनके यहां जब बच्चा पैदा होता है तो सबसे पहले उसके रंग पर हीं ध्यान दिया जाता है।
बता दें कि, पैदा होने वाला बच्चा गोरा या सुन्दर होता है तो उसे जीने नहीं दिया जाता है। यानी उसे मौत की सजा दी जाती है।
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काले रंग को माना अपना पहचान
अंडमान एवं निकोबार आइलैंड पर रहने वाले जारवा जनजाति का मानना है कि काला रंग हीं उनकी पहचान है और गोरा बच्चा किसी अन्य जनजाति या समुदाय की निशानी है और यही कारण कि ये लोग गोरे बच्चे को पैदा होते ही मार देते हैं।
पैदा होने वाले बच्चे को काबिले की सारी महिलाएं दूध पिलाकर महिलाएं देती हैं एकता का परिचय
जारवा जनजाति में बहुत सारी अलग-अलग परपराएं देखने को मिलती है। जिसमे से एक परंपरा यह भी देखने को मिलती है कि यहां पैदा होने वाले काले बच्चे को कबीले की सारी महिलाएं अपना दूध पिलाते हुए एकता का परिचय देती हैं।
काला बच्चा पैदा करने के लिए गर्भवती महिलाएं को पिलाई जाती है जानवरों का खून
एक तरह गोरे बनने के लिए दुनिया के सभी लोग तरह तरह के क्रीम का उपयोग करते हैं तो वहीं दूसरी ओर जारवा जनजाति काला में बच्चा पैदा करने के लिए गर्भवती महिलाओं को जानवर का खून पिलाया जाता है।
दरअसल, इस जनजाति का मानना है कि गर्भवती महिलाओं कोजनवारों का खून पिलाने से बच्चे का रंग काला होगा। इस जनजाति में अगर गोरा बच्चा पैदा होता है तो उसका पिता ही उसे मार डालता है।
इस जनजाति से मिलने के लिए सख्त है मनाही
इस जनजाति से कोई भी टूरिस्ट्स नहीं मिल सकता है क्योंकि उनसे मिलने पर सख्त मनाही है। इसके अलावें इसके साथ या इनकी कोई भी इनकी तस्वीरें नहीं ले सकता और न ही इनकी तस्वीरों या वीडियो को ऑनलाइन पोस्ट कर सकते हैं क्यूंकि यह गैरकानूनी है।