Home Farming

एलोवेरा विलेज: इस गांव के हर घर मे होती है एलोवेरा की खेती, गांव की सभी महिलाएं हैं आत्मनिर्भर

क्या आप जानते हैं कि आपके घर की छत की शोभा बढ़ा रहा द्यृतकुमारी यानि एलोवेरा का पौधा (Aloevera Plant) औषधीय गुणों से भरपूर है? क्या आप ये जानते हैं कि इसके पत्तों में बसा जेल(Aloevera gel) न केवल आपकी त्वचा में निखार लाता है बल्कि बहुत सी बिमारियों का इलाज भी करता है? इतना ही नही वर्तमान में किसानों द्वारा की जा रही एलोवेरा की खेती उन्हे एक बेहतरीन आर्थिक मुनाफा भी दे रही है?

द्यृतकुमारी के इन्ही लाभों को देखते हुए झारखंड की राजधानी रांची के देवरी गांव में अत्यधिक मात्रा में एलोवेरा की खेती शुरु कर दी गई है। जो न केवल क्षेत्रीय निवासियों को अच्छा खासा मुनाफा दे रही है बल्कि यहां कि महिलाओं को आर्थिक तौर पर स्वावलंबी भी बना रही है। यहां खेती में एलोवेरा की बढती व्यापकता को देखकर वर्तमान में इस गांव को ‘एलोवेरा विलेज’ का नाम दिया गया है।

Aloevera farming

‘एलोवेरा विलेज’ के नाम से जाना जाता है अब देवरी गांव

रांची के नगरी प्रखंड स्थित देवरी गांव (Devari Village in Ranchi) में वर्तमान में हर आंगन, खेत व छत पर एलोवेरा की बुआई हो रही है। जिसके कारण आज लोग इस गांव को ‘एलोवेरा विलेज’ (Aloe Vera Village) के नाम से जानने लगे हैं, जो बेशक ही यहां के लोगों को गौरवान्वित करता है।

देवरी गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है एलोवेरा की खेती

देवरी गांव में बढ़ रही द्यृतकुमारी की खेती यहां कि महिलाओं के लिए आर्थिक स्वावलंबन का कारण बन रही है। गांव की महिला मुखिया व कृषक मंजू कच्छप के मुताबिक- “हमनें एलोवेरा के गुणों व इसकी बढ़ती मांग को देखकर इसकी खेती करनी शुरु की, अब ये न केवल हम महिलाओं को आर्थिक तौर पर मजबूत कर रही है बल्कि आत्मनिर्भर भी बना रही है, पूरे राज्य में एलोवेरा ने हमारे गांव का मान बढ़ाया है, हम पूरी मेहनत से राष्ट्रीय स्तर पर अपने गांव का नाम रोशन करेंगे”

यह भी पढें :- जमीन की कमी के कारण इस जगह होती है दीवारों पर खेती, वर्टिकल फार्मिंग के बारे में जानिए सबकुछ

झारखंड सरकार गांव वालों को एलोवेरा जेल बनाने की मशीन देगी

एलोवेरा की खूबियों को समझते हुए लोगों के बीच बढ रही इसकी मांग के अनुरुप आपूर्ति करने के लिए जल्द ही झारखंड सरकार देवरी गांव निवासियों को एलोवेरा जेल निकालने की मशीन देने वाली है। जिसके लिए गांववासी उत्पादक समूह बनाने की कार्ययोजना तैयार कर रहे हैं।

35 रुपये किलो के हिसाब से बेचे जा रहे एलोवेरा लीफ्स्

वर्तमान में एलोवेरा विलेज में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से उगाये जा रहे एलोवेरा की मांग पूरे राज्य में है। महिलाएं 35 रुपये किलो के हिसाब से एलोवेरा प्लांट के पत्ते बेच रही हैं। क्योंकि मांग बेहद ज़्यादा है लेकिन उसके मुताबिक आपूर्ति नही, इसलिए गांव के खेतीहर परिवार भी एलोवेरा की खेती में शामिल होने लगे हैं।

एलोवेरा की खेती में किसी प्रकार के निवेश की आवश्यकता भी नही होती

देवरी गांव की महिलाओं का कहना है कि – “एलोवेरा की खेती में पौध रोपण के वक्त किसी प्रकार का खर्चा करने की ज़रुरत भी नही पड़ती, एक पौधे से दूसरा पौधा तैयार हो जाता है, यानि किसी तरह का कोई निवेश नही करना पड़ता, इसके लिए हमें बाज़ार भी आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इन्ही पौधों से कई अन्य खेतों में भी रोपण का काम हुआ है, जिसका अच्छा परिणाम जल्द मिलने की संभावना है, एक अच्छी बात यह भी है कि एलोवेरा की खेती में अधिक सिंचाई की ज़रुरत भी नही होती। भविष्य में भी यदि राज्य सरकार पूर्ण सहयोग देती है तो हम बड़े पैमाने पर एलोवेरा की खेती करेंगे”

गांववासियों की आय में हुई है वृद्धि

देवरी गांव वालों की माने तों पहले एलोवेरा की खेती शुरु करने में बेहद डर लगता था, लेकिन काफी हिम्मत जुटा इसकी खेती आरंभ की गई, जिसका परिणाम यह हुआ कि गांववालों को कम मेहनत में ज़्यादा आय हुई। एलोवेरा का पौधा तैयार होने में 18 महीने का समय लगता है, एक-एक पत्ते का वज़न तकरीबन आधा किलो होता है। सर्वप्रथम बिरसा विश्वविद्यालय ने ही ग्रामीणों के इस उत्पाद को खरीद कर दुमका जिले के विभिन्न गांवों में वितरित किया था। केवल 4 से 5 महीनों के भीतर ही गांव वालों ने करीब 2 हज़ार एलोवेरा पौधों की बिक्री करके अतिरिक्त आय प्राप्त की थी।

एलोवेरा, द्यृतकुमारी या ग्वारपाठा के नाम से प्रसिद्ध यह पौधा, औषधीय पौधे के रुप में विश्व विख्यात है। भारतीय आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में भी एलोवेरा के विभिन्न प्रयोगों जैसे सुंदरता को बढ़ाने, मधुमेह के इलाज, रक्त शुद्धि, रक्तचाप को कम करने में इस पौधे का अपना विशेष स्थान है।

अर्चना झा दिल्ली की रहने वाली हैं, पत्रकारिता में रुचि होने के कारण अर्चना जामिया यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और अब पत्रकारिता में अपनी हुनर आज़मा रही हैं। पत्रकारिता के अलावा अर्चना को ब्लॉगिंग और डॉक्यूमेंट्री में भी खास रुचि है, जिसके लिए वह अलग अलग प्रोजेक्ट पर काम करती रहती हैं।

Exit mobile version