आजकल किसान पारम्परिक खेती के अलावा ऐसे फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं, जिनसे अधिक आमदनी हो सके। इसके अलावा किसान अब खेती में नये-नये तरह के प्रयोग भी कर रहे हैं। ऐसे में औषधीय पौधें किसानों के लिए आमदनी का एक अच्छा जरिया बन गया है। औषधीय पौधें ब्राह्मी की खेती (Cultivation of Brahmi) से किसान लागत से तीन गुना अधिक कमाई कर रहे हैं।
औषधीय पौधें ब्राह्मी की पहचान
आपको बता दें कि ब्राह्मी का वनस्पति नाम बाकोपा मोंनिएरी है। यह पौधा जमीन के अंदर फैलकर बड़ा होता है। इस औषधीय पौधें के तने मुलायम और फुल सफेद होते हैं। ब्राह्मी के कुछ अन्य प्रजातियों के नीले और गुलाबी रंग के फूल होते हैं। इस पौधे का स्वाद फीका और तासीर शीतल होती है। इसकी खेती नम स्थानों पर होती है।
ब्राह्मी का प्रयोग
इसकी पत्तियां कब्ज दूर करने में मददगार होती है तथा इसके रस से गठिया का सफल इलाज होता है। ब्राह्मी में रक्तशुद्धि के गुण मौजूद होते हैं। यह दिमाग को तेज करता है तथा याददाश्त को बढ़ाने में सहायक होता है। ब्राह्मी से बने दवाइयों का इस्तेमाल कैंसर, दमा एनीमिया किडनी और मिर्गी जैसे बीमारियों में किया जाता है। ब्राह्मी पौधे का प्रयोग सांप के काटने पर भी किया जाता है।(Cultivation of Brahmi)
यह भी पढ़ें :- इंजीनीयरिंग और MBA करने के बाद कर रहे हैं एलोवेरा की खेती, कमाई है करोडों में: पूरा तरीका पढ़ें
भारत के अलावा अन्य देशों में भी होती है इसकी खेती
आपको बता दें कि आयुर्वेद में ब्राह्मणी का पौधा बहुत ही गुणकारी माना जाता है। इसकी जड़े कांटों से फैलती है और यह 2-3 फीट बड़ा होता है। ब्राह्मी औषधीय पौधे की खेती भारत के अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और अफ्रीका के देशों में भी की जाती है। जानकारी के लिए बता दें कि इसकी खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु में बहुत ही सरलता से की जा सकती है। इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान अच्छा माना जाता है।(Cultivation of Brahmi)
ब्राह्मी की खेती के लिए आवश्यक बातें
ब्राह्मणी के पौधे (Cultivation Of Brahmi) नाहर तालाब नदी आदि के किनारे जंगली रूप में उग आते हैं। इसकी खेती में अधिक मुनाफा होने की वजह से ज्यादातर किसान इसकी खेती कर रहे हैं। दलदलयुक्त मिट्टी इसकी खेती के लिए बेहतर माना जाता है, तथा मिट्टी का pH मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए। इसके अलावा इसकी खेती के लिए मिट्टी का भुरभुरा और समतल होना जरुरी है।
यह भी पढ़ें :- अपनी नौकरी छोड़कर गुजरात का यह युवा कर रहा है हल्दी की खेती, सलाना आय 1 करोड़ से भी अधिक है
रोपाई का तरीका
इसके लिए खेत तैयार करने के समय खेतों की अच्छी तरह से जुताई करके छोड़ दिया जाता है। उसके कुछ दिन बाद सही मात्रा में जैविक खाद डालकर मिला दिया जाता है। पौधें की रोपाई के अनुसार खेत में मेढ और क्यारियां बनाई जाती हैं। ब्राह्मी के बीजों को इन क्यारीयों में बोया जाता है। पौधे बन जाने के बाद इसकी कटिंग को पोट्रे में लगाकर पौधे बनाए जाते हैं। उसके बाद इन्हें खेतों में लगाया जाता है। इस पौधे की रोपाई मेढ़ पर आधा फीट की दूरी पर की जाती है। बता दें कि प्रत्येक मेढ़ के बीच 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए। पौधें की रोपाई के लिए वर्षा ऋतु का मौसम बेहतर माना जाता है।
अच्छी पैदावार के लिए निराई बेहद आवश्यक
इसकी फसल की निराई समय पर न होने की वजह से पौधें की बढ़त पर प्रभाव पड़ता है। ब्राह्मी के खेत (Cultivation Of Brahmi) की निराई लगभग दो बार होती है। फसल लगाने के 15 दिन बाद का समय पहली निराई करने के लिए उपर्युक्त होता है। दूसरी बार निराई करने का सही समय दो माह बाद का होता है।(Cultivation of Brahmi)
3-4 बार होती है इसके पौधें की कटाई
इसके पौधे की कटाई पौधे लगाने के 4 माह बाद की जाती है। ब्राह्मी के पौधें की कटाई, तने के 4-5 सेन्टीमीटर ऊपर से काटा जाता है, और बाकी के हिस्सों को दोबारा पनपने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसकी कटाई के बाद इसे छाया में सुखाया जाता है। सुखाने के बाद किसान इसे बाजार में बेच सकते हैं। प्रति हेक्टेयर 25 से 30 क्विंटल ब्राह्मी की सुखी पत्तियां प्राप्त की जा सकती है। इसकी फसल की कटाई 3-4 बार की जा सकती है। (Cultivation Of Brahmi)