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मेनस्ट्रीम मीडिया ने ठुकराया तो किसानों ने खुद का निकाल लिया अख़बार, इस जंग में जानिए उन्होंने और क्या क्या किया

दिल्ली में कड़ाके की ठंड का अनुमान हम सभी को है। आने वाले कुछ दिनों में तापमान और भी घटने के कयास लगाए जा रहे हैं। ऐसे में सिंधु बर्डर (Singhu Border) पर चल रहा किसान आंदोलन (Farmers Protest) दूसरे महीने में प्रवेश कर चुका है। हालांकि 36 दिन के आंदोलन और 7 दौर की बातचीत के बाद 2 मुद्दों पर सरकार और किसानों में रजामंदी हुई है लेकिन 4 जनवरी को फिर बातचीत होनी है। फिलहाल आगे क्या तर्क वितर्क होता है यह देखना बाकी है लेकिन महीने से चल रहे इस विरोध में किसानों का ढांढस बनाए रखने के पीछे किसका हाथ है ये जान लीजिए।

trolley times

किसान आशियाने में तब्दील हुआ सिंधु बॉर्डर

सिंधु बॉर्डर पर आलम ये है कि खाने – पहनने से लेकर मनोरंजन तक का इंतजाम है,मानो किसान गुट ने यहां आशियाना बसा लिया है। मात्र कुछ ही हफ्तों में यहां कई स्टाल और दुकानें भी खुल गई। जूते चपल्लों से लेकर सड़क किनारे सैलून की भी सुविधा है।ओपन जिम, लाइब्रेरी और कम्युनिटी सेंटर देखने को मिलेंगे। जैकेट स्वेटर की फेरी लगाने वाले यहां दिन भर घूमते हैं। यहां आपको किसानों के सैलाब के साथ उनके गाँवों से लाए गए कुछ वॉटर टैंक दिखेंगे। बॉर्डर पर एक स्टेज भी बना हुआ है।

किसान Vs जवान, सरकार का रफ एंड टफ रवैया

बैरिकेड्स से घिरी ज़मीन एक तरह का बफ़र ज़ोन बन गई है। कँटीले तार बिछाए गए है ताकि कोई भी प्रदर्शनकारी आगे न बढ़ पाए। बालू से भरे ट्रक और हाथों में बंदूक़ उठाए, वर्दी पहने सैनिक गश्त लगा रहे हैं। उनके हाथ में आँसू गैस के गोले हैं। लेकिन, टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर दूसरी ओर किसान भी डटे हैं झंडा लहराते हुए। उनकी आंखो में बस अपनी मांगो को पूरा होते हुए देखने की ललक है।

आंदोलन की धार बन गया किसानों का ‘ट्रॉली टाइम’ अख़बार

इसमें दो राय नहीं कि किसान मीडिया के एक गुट से नाराज़ चल रहे हैं। शुरुआती दौर में इनकी एकतरफा कवरेज के कारण किसानों ने मेनस्ट्रीम मीडिया के खिलाफ भी बिगुल फूंक दिया था। इसलिए अब यहां
‘ट्रॉली टाइम’ (Trolley Times) नाम का अख़बार भी निकल रहा है। यह किसानों का ख़ुद का शुरू किया गया अख़बार है और कुछ लोगों का तो कहना है कि यह देश का सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला अख़बार है।

किसान आंदोलन से जुड़ी खबरें, किसानों के संघर्ष के बारे में यहां आपको जानकारी मिलेगी। यहां हर उस शख्स को जगह मिलेगी जो किसानों के हित में अपना मत रखना चाहते हैं। अख़बार के मास्टहेड (मुख्य हेडिंग) के नीचे भगत सिंह का एक कोट लिखा है, “इंक़लाब की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है।” जिसे इतिहास अपने पन्नों में समेटकर रखेगा।

यहां किसानों का चलता है दोहरा कानून

इसके अलावा किसानों ने यहां अपनी धारा 288 लगा रखी है। यह धारा 144 की दोगुनी संख्या है। जिसका मतलब है विरोध स्थल पर किसानों के अलावा किसी दूसरे का प्रवेश प्रतिबंधित है।

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महिलाओं का योगदान भी अहम, ऐसे कर रहीं सेवा

महिलाएँ इस आंदोलन का अहम हिस्सा बन रही हैं। गाँवों में राशन इकट्ठा करने से लेकर दिल्ली बॉर्डर पर जमे किसानों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उन पर है। गाँवों में गुरुद्वारे खाने-पीने और दूसरी चीज़ें जमा करने के केंद्र बन चुके हैं। राशन की मात्रा में भी कमी नहीं है। वे गाँवों में अपनी ज़मीन और परिवार की देखरेख में लगी हैं। कुछ ऐसी भी हैं जो प्रदर्शन स्थल पर दिन रात सेवा कर रही हैं।

ये जोश इतनी जल्दी ठंडा नहीं पड़ने वाला

वॉलिंटियर्स आसपास बसी झुग्गियों के बच्चों को पढ़ा रहे हैं। सभी जगहों पर एंबुलेंस की सुविधा है। सिंघु और टिकरी बॉर्डर पूरी तरह प्रतिरोध के सौंदर्य से पटा हुआ है। विज़ुअल मैटेरियल से लेकर टेक्स्ट और परफ़ॉर्मिंग आर्ट का मेला लगा है। छवियाँ, प्रतीकों, ग्रैफ़िटी और कपड़े हर जगह कला बिखरी हुई है। तरह-तरह के नारों, बोलचाल के शब्दों, व्यंग्य और तमाम तरह के कला प्रदर्शनों के ज़रिए विरोध ज़ाहिर किया जा रहा है। बढ़ती ठंड और तमाम दूसरी चीज़ों के बावजूद उनका इरादा ठंडा नहीं पड़ने वाला है।

सरकार और अन्नदाताओं के बीच इस मुद्दे को लेकर चल रही बहस के निष्कर्ष का इंतजार हम सब को है। इस पर अपने सुझाव कॉमेंट बॉक्स में हमसे जरूर साझा करें।

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