Wednesday, December 13, 2023

पारम्परिक खेती छोड़ शुरु किया शरीफा की खेती, 10 हजार लागत खर्च करके 10 लाख कमा रहे हैं

एक समय था जब लोग खेती को घाटे का सौदा समझते थे लेकीन मौजूदा दौर में अनेकों लोग अच्छी-खासी नौकरी छोड़ कर खेती-बाड़ी की तरफ रुख कर रहे हैं और मुनाफा भी कमा रहे हैं। हालांकि, भारत के किसानों में जागरुकता बढ़ने के कारण अब वे पारम्परिक खेती में बदलाव करके ऐसे फलों की खेती कर रहे हैं जिससे बेहतर कमाई हो सके।

गुजरात के इस किसान ने भी खेती की पारम्परिक तौर-तरीकों में परिवर्तन शरीफा की खेती (Custard Apple Farming) से आज लाखों रुपये महिना कमा रहा है। इसी कड़ी में आइए जानते हैं इस सफल किसान के बारें में-

कौन है वह किसान?

किसान मनसुख दुधात्रा (Mansukh Dudhatra) गुजरात (Gujarat) के वीरपुर इलाके के रहनेवाले हैं, जो बीते पांच वर्षों से शरिफा की खेती करके सफल किसान बने हैं। गुजरात में प्याज, मूँगफली, टमाटर और खजूर आदि का बड़े पैमाने पर उप्तादन होता है। ऐसे में मनसुख ने भी शरीफा की खेती करने से पूर्व टमाटर, मूँगफली आदि पारम्परिक खेती करते थे।

लेकिन जब उन्होंने देखा कि अधिक मेहनत और लागत के बावजूद भी अच्छा मुनाफा नहीं हो रहा है तो उन्होंने फसल में बदलाव करने का सोचा। काफी सोच-विचार करने के बाद उन्होंने शरीफा की खेती करने का फैसला किया। शरीफा एक शरद ऋतु का फल है जिसे सीताफल, कस्टर्ड एप्पल या शुगर एप्पल के नाम से भी जाना जाता है।

10 हजार से शुरु किया था शरीफा की खेती

खेती में बदलाव करने के लिए पैसों की जरुरत होती है। ऐसे में मनसुख जी ने शरीफा की खेती के लिए 10 हजार रुपये खर्च किए। इसकी खेती के लिए उन्होंने अच्छी तरह से नई तकनीक को समझकर कड़ी मेहनत की और परिणामस्वरूप 3-4 वर्षों में फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई। इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा। अब उनके खेतों में 1-1 किलों के एक शरीफे का उत्पादन हो रहा है।

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बाजार में है विदेशी शरीफा की अधिक मांग

शरीफा के कई किस्म होते हैं लेकिन जानकारी नहीं होने के कारण मनसुख दुधात्रा (Mansukh Dudhatra) शुरुआती दौर में सिर्फ देशी शरीफा की ही खेती करते थे। उसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे इसकी खेती के बारें में अधिक जानना शुरु किया तो उन्हें इस फसल के अन्य किस्मों के बारें में पता चला। दरअसल, उन्होंने देखा कि मार्केट में देशी की जगह विदेशी शरिफा की मांग काफी अधिक है।

हालांकि, वे इसका कारण भी बखुबी जानते थे कि जहां देशी में बीजों की संख्या 30-40 होती है वहीं विदेशी में इसकी संख्या घटकर 15-20 हो जाती है। ऐसे में किसी को भी विदेशी अधिक पसंद आना लाजमी है। उसके बाद उनहोंने भी हाइब्रिड शरीफा की खेती करने लगे।

Gujarat Farmer Mansukh Dudhatra Earns 10 lakh yearly from custard apple farming

सालाना 10 लाख रुपये की हो रही है कमाई

मनसुख जी के दो बेटे हैं जिनमें से एक बेटे का नाम केतन दिधात्रा है। एक इंटरव्यू के दौरान केतन ने हाइब्रिड शरीफा की काफी तारिफ की। उन्होंने कहा कि, इस्का सवाद काफी बेहतर होता है साथ ही इसका उत्पादन भी अधिक होता है। वह आगे कहते हैं कि, अब उन्हें इसकी खेती से सालाना 10 लाख रुपये की आमदनी हो रही है। खासकर जब से उन्होंने इस फल की मार्केटिंग करनी शुरु की है उन्हें अधिक मुनाफा हो रहा है।

पिता के साथ मिलकर बेटे भी कर रहें हैं खेती

जैसा कि आप जानते हैं आजकल के युवाओं की सोच काफी अलग है। कुछ युवा अच्छी पढ़ाई-लिखाई करके अच्छे जगह सेटल होना चाहते हैं तो वहीं किछ युवा जमी-जमाई नौकरी छोड़कर भी खेती करना चाहते हैं। मनसुख दुधात्रा के बेटों की सोच भी ऐसी ही थी। उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी न करके पिता के साथ खेती में हाथ बंटाने का फैसला किया। अब वे दोनों इसकी मार्केटिंग के काम की देखरेख करते हैं।

वर्तमान में मनसुख और उनके बेटे एक साथ मिलकर तकरीबन 10 बीघा जमीन पर बागवानी कर रहे हैं, जिसमें देशी और हाइब्रिड दोनों किस्म के शरीफा के पौधें लगाएं हैं। उसमें से लगभग हाइब्रिड के 900 पौधें हैं और बाकी देशी पौधें हैं। वैसे तो इसकी खेती लगभग सभी तरह की मिट्टी पर की जा सकती है। लेकिन इसके लिए दोमट मिट्टी बेहतर होती है, क्योंकि इससे जल निकासी बेहतर होता है। वहीं इसकी खेती काली चिकनी मिट्टी में नहीं की जा सकती है।

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120 रुपये प्रति किलो भाव से होती है बिक्री

मनसुख के खेत से प्रतिदिन लगभग 40 किलो तक शरिफे का उत्पादन होता है, जिसकी बिक्री बाजार में 40 रुपये से लेकर 120 रुपये प्रति किलो के भाव से होती है। हाइब्रिड शरीफा के बारें में वह बताते हैं कि, देशी शरीफा जल्द ही खराब होने लगता है लेकीन हाइब्रिड में ऐसी कोई बात नहीं है। यह लगभग 10-15 दिनों तक रह सकता है। जल्द खराब नहीं होने के कारण यह ग्राहकों के साथ-साथ किसान के लिए भी लाभदायक होता है।

शरीफा के फायदें (Benefits of Custard Apple)-

शरीफा में कैल्शियम और फाइबर्स जैसे कई न्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं, जो कब्ज और अर्थराइटिस जैसी समस्याओं से बचाता है। इसके अलावा इसके पेड़ की छाल में पाया जानेवाला टैनिन का इस्तेमाल दवाओं को बनाने में किया जाता है। इसके रसों का इस्तेमाल करके मिठाई, आइसक्रीम आदि तैयार की जाती है। साथ जी इसके बीजों को पीसकर निकाले गए तेलों से पेंट और साबुन का निर्माण किया जाता है। इसके अलावा इसके सूखे कच्चे फल, बीज और पत्तियों के पाउडर का इस्तेमाल कीटनाशक के तौर पर भी किया जाता है। बता दें कि, डायबिटीज के पेशेंट को इस फल का सेवन नहीं करना चाहिए।