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मात्र 25 रुपये के मजदूरी से तय किये IAS बनने तक का सफर: फर्श से अर्श तक

कई बार ऐसा होता है कि मनुष्य अपनी गरीबी और असफलताओं का रोना रोते हैं लेकिन यदि हौसला बुलंद हो और इरादा मजबूत हो तो लक्ष्य को हासिल करने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती है क्योंकि जब मनुष्य कुछ पाने के लिए दिल से कोशिश करता है तो उसे वह प्राप्त करने से कोई भी बाधा नहीं रोक सकती है। अगर अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना लिया जाए तो कामायबी के शिखर तक पहुंचने के लिए बड़ा-से-बड़ा पत्थर भी राह में रुकावट पैदा नहीं कर सकता है।

आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने कभी भी अपनी गरीबी का बहाना नहीं बनाया। उसने अपनी गरीबी और अभावों से हार न मानकर उसका बहुत से बहादुरी से सामना किया। उसने दिहाड़ी मजदूरी करने के साथ हीं पढ़ाई जारी रखा और आखिरकार सफलता को अपने कदमों में झुका दिया। दिहाड़ी मजदूर से एक IAS बनकर वैसे लोगो के लिए मिसाल पेश किया जो अपनी गरीबी का रोना रोते हैं।

विनोद कुमार सुमन (Vinod Kumar Suman) का जन्म उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के भदोही के पास जखाऊं गांव में एक बेहद गरीब परिवार मे हुआ। परिवार में आमदनी का एक मात्रा स्त्रोत खेती था परंतु भूमि भी अधिक नहीं थी। उनके पूरे परिवार को 2 वक्त का भोजन मिल सके इसके लिए विनोद के पिता खेती के साथ-साथ कालीन बुनने का कार्य भी करते थे। विनोद की प्रारंभिक शिक्षा गांव से ही हुई। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद विनोद अपने पिता के साथ खेती कार्य में हाथ बंटाते थे। विनोद बताते हैं कि वह अपने पांच भाई और दो बहनों में सबसे बड़े थे। बड़े होने के नाते उनका फर्ज बनता था कि वह अपने पिता के कार्य में हाथ बंटाएं लेकिन विनोद अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ना चाहते थे। जैसे-जैसे करके उन्होंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी किया लेकिन उसके आगे की पढ़ाई के लिए आर्थिक समस्याएं खड़ी हो गई।

विनोद ने अपने बल पर अपने सपनों को पूरा करने के जुनून में माता-पिता को छोड़कर शहर की ओर रुख किए। उनके पास शरीर के कपड़ो के अलावा और कुछ भी नहीं था। उन्होंने इतनी दूर निकलने का मन बना लिया जहां उन्हें कोई पहचानता न हो। विनोद ने श्रीनगर गढ़वाल (Shrinagar Garhwal) जाने का फैसला किया। वहां पहुँचते-पहुँचते उनके पास कुछ भी शेष नहीं बचा। उसके बाद वह एक मंदिर गए और वहां एक पुजारी से शरण मांगी। उसके अगले हीं दिन वह काम की खोज में निकल गए। आपको बता दें कि उस समय श्रीनगर में सुलभ शौचालय का निर्माण कार्य चल रहा था। ठेकेदार से याचना करने के बाद विनोद वहां मजदूरी करने लगे।

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कुछ माह ऐसे हीं गुजरने के बाद उन्होंने आगे की पढाई करने के लिए वहां के एक युनिवर्सिटी में दाखिला लेने का फैसला किया। उन्होंने श्रीनगर गढ़वाल यूनिवर्सिटी (Srinagar Garhwal University) में BA पहले वर्ष में नामांकन ले लिया। उन्होंने गणित, इतिहास और सांख्यिकी विषय का चयन किया। विनोद गणित में होशियार थे। इसलिए उन्होंने रात में ट्यूशन पढ़ाने का फैसला किया। विनोद दिन भर मजदूरी करते और रात को ट्यूशन पढ़ाते थे। उसके बाद धीरे-धीरे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा उसके बाद वह घर पर पैसे भेजने भी आरंभ किए। विनोद ने वर्ष 1992 में बीए प्रथम श्रेणी से उतीर्ण किया। उसके बाद उन्होंने अपने पिता के सुझाव से इलाहाबाद जाने का निर्णय लिया। वहां उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (AU) से प्राचीन इतिहास विषय से MA की डिग्री ली।

उसके बाद उन्होंने वर्ष 1995 में लोक प्रशासन में डिप्लोमा किया तथा प्रशासनिक सेवा के परीक्षा की तैयारी में जुट गए। उसी बीच उन्हें महालेखाकर ऑफिस में लेखाकार की नौकरी लग गई। लेखाकर में नौकरी लगने के बाद भी उन्होंने तैयारी जारी रखी। वर्ष 1997 में विनोद का चयन PCS मे हुआ। उसके बाद विनोद ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

सभी महत्वपूर्ण पद पर सेवा देने के बाद वर्ष 2008 मे उन्हें IAS कैडर मिला। विनोद देहरादून में SDM, सिटी मजिस्ट्रेट के अलावा कई जिलों में एडीएम गन्ना आयुक्त, निदेशक समाज कल्याण, सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। विनोद पिछ्ले एक वर्षों से अलमोड़ा के जिलाधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। विनोद कुमार सुमन का मानना है कि यदि निश्चय दृढ हो तो कोई भी चुनौती मनुष्य को अपने लक्ष्य से हिला नहीं सकता है।

The Logically विनोद कुमार सुमन के संघर्ष और मेहनत को हृदय से नमन करता है।

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