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कोरोना काल में नौकरी जाने के बाद राजमा चावल ने बदल दी जिंदगी, लॉकडाउन में बदली अपनी जिंदगी

कोरोना Covid-19 से लगे लॉकडाउन में बहुत से लोग प्रभावित हुए हालत इतनी खराब थे कि लोगों को दो वक़्त का खाना भी नहीं मिल पाता था। इस दौरान लाखों लोगों की नौकरी चली गई। ऐसे मुश्किल हालत में एक दंपती ने अपने आपको केवल राजमा और चावल के दम पर खड़ा रखा।

आज हम जिस दंपती की बात कर रहे हैं वह दिल्ली (Delhi) के रहने वाले करन कुमार (Karan Kumar) और अमृता (Amrita) हैं। उन्होंने ऐसे मुश्किल हालत में हार नहीं माना बल्कि उसका डटकर का सामना किया।

लॉकडाउन के दौरान चली गई नौकरी

रिपोर्ट के मुताबिक करन कुमार (Karan Kumar) बताते हैं कि पहले वह एक सांसद के लिए ड्राइवर की नौकरी करते थे, परंतु कोरोना महामारी में लगे लॉकडाउन के एक महीने बाद ही नौकरी से उन्हें यह तर्क देकर निकाल दिया गया कि सांसद अब उनका खर्च वहन नहीं कर सकते हैं।

सिर्फ़ इतना ही नहीं करन जिस क्वार्टर में रहते थे, वह भी सांसद के दबाव में आकर उन्हें छोड़नी पड़ी। उन्होंने अपने संबंधियों से भी इस संबंध में मदद मांगने की कोशिश की परंतु किसी ने मदद नहीं की।

Job lost in lockdown but rajma chawal changes life

आर्थिक स्थिति पूरी तरह बिगड़ चुकी थी

करन ने दूसरी नौकरी ढूंढने की पूरी कोशिश की, परंतु लॉकडाउन के दौरान नौकरी मिलना नामुमकिन था। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ चुकी थी कि उन्हें खाना खाने के लिए गुरुद्वारे जाना पड़ता था। घर न होने के वजह से वह रात में अपने कार में सोते थे। जब धीरे-धीरे लॉकडाउन खतम होने लगा, तो करन ने अपने एक दोस्त से कुछ रुपये उधर लिए। फरीदाबाद इलाके में एक कमरा किराए पर खरीद लिया।

पूरे विश्वास से की एक नई शुरूआत

इस दौरान अमृता ने करन को खाने का कुछ समान बनाने और लोगों के बीच उसे बेचने का सुझाव दिया। शुरूआत में करन कुमार (Karan Kumar) ने घर का कुछ सामान बेचकर किराने का सामान जुटाया और नई शुरुआत की। पूरे विश्वास के साथ उन्होंने मध्य दिल्ली की तालकटोरा लेन के पास राजमा-चावल के साथ ही कढ़ी-चावल और छोले-चावल बेंचने शुरू कर दिया। पहला दिन उन्हें कुछ खास मुनाफा नहीं हो पाया। पूरे दिन में उन्हें केवल 320 रुपये की ही आमदनी हुई, जो उनकी लागत से बहुत कम थी।

रोज़ाना कर रहे हैं 2200- 2400 की कमाई

पहले दिन के हुए हानि से अमृता और करन का हौसला कम नहीं हुआ। दूसरे दिन वह फिर उसी उमीद से स्टॉल लगाए इस बार लोगों की संख्या बढ़नी शुरू हो गई। अब करन और अमृता अपने इसी स्टॉल के जरिये एक दिन में 22 सौ से 24 सौ रुपये कमा रहे हैं। करन कहते हैं कि वह अब नौकरी की तलाश नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपना पूरा समय स्टॉल को दे रहे हैं। अमृता और करन दोनों ही इस बिजनेस को आगे लेकर जाना चाहते हैं और वह इसे बहुत खुश भी हैं।

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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