66 वर्ष कि आयु मे 5 लाख से भी अधिक पौधा लगाने वाले कल्याण सिंह रावत को “मैती आंदोलन” के प्रनेता के आधार पर उत्तराखंड में हर कोई जानता है । इनको किसी भी परिचय की आवश्यकता नहीं है। “मैती आंदोलन” की मशाल हमारे देश के लगभग 7000 से अधिक गाँव और 18 राज्यों को प्रकाशित कर रही है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा इन्हे 26 जनवरी 2020 को पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया है, नितिन गडकरी ने विश्व पार्यवरण संरक्षण दिवस पर इन्हे सम्मानित किया है। इन्हें बेस्ट इकोलॉजिस्ट सहित बहुत सारे पुरस्कार मिले हैं। इनकी तारीफ कनाडा के भूतपूर्व विदेश मंत्री फ्लोरा डोनाल्ड ने भी किया है। “मैती आंदोलन” की शुरुआत यूएस, नेपाल, यूके कनाडा और इंडोनेशिया मे भी हुई है जिसे हिमाचल प्रदेश ने भी अपनाया है।
मैती आंदोलन की शुरुआत पौधों के साथ भावनात्मक संबंध के कारण हुआ
कल्याण सिंह रावत का जन्म 15 अक्टूबर 1953 को उत्तराखंड के चमेली जिले में हुआ। इन्होंने आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई अपने गांव से ही संपन्न किया , फिर आगे की पढ़ाई 1970 में गोपेश्वर डिग्री कॉलेज से बायोलॉजी से एमएससी किया, साथ ही बीएड की डिग्री भी हासिल की।
मैती आंदोलन की शुरूआत
कल्याण सिंह रावत के पिता बकौल सिंह रावत और उनके दादाजी वन विभाग में थे जिसके कारण उनका बचपन जंगलों में पेड़ पौधों के साथ गुजरा, वह जब पढ़ाई के लिए गोपेश्वर गये, वहाँ जंगलों की सुरक्षा के लिए चिपको आंदोलन हो रहा था वो उसमे जुड़ गये। हिमालय पर भ्रमण करते समय उन्होंने देखा कि वन विभाग के कर्मचारी एक ही स्थान पर 5-6 पौधे लगाते थे, जिसके कारण पौधों की बढ़ोतरी नहीं होती और पौधें सूख जाते थे। पौधों को लगाने के बाद उनकी कोई देखभाल नहीं हो रही थी , उन्होंने सोचा कि अगर इंसान का पौधों से भावनात्मक सबन्ध बन जाये तो पौधों की देखभाल खुद करके पौधों की रक्षा की जा सकती है, इसके कारण उन्होंने “मैती आंदोलन” की शुरुआत की।
विवाहित जोड़े लगाते हैं पौधे जिससे बधु एक बंधन में बंध जाती है
पौधों के देखभाल के लिए जो लगाव पैदा हुआ था वह मैत शब्द से था। मैत एक लोक शब्द है, इस शब्द का अर्थ है मायका, इससे बना मैती – जिसका अर्थ है मायके वाले। मैती आंदोलन के तहत शादी मे मंत्र उच्चारण के समय वर और वधू के हांथों एक पौधा लगवाया जाता है। वधू जो पौधा लगाती है उसे अपना मैती, मतलब अपने परिवार का सदस्य मानती है। इस पौधे की देखभाल का जिम्मा वधु अपने परिवार के सदस्य को देती है, जो इस पौधों की देखभाल करते है। पहाड़ों पर शादी के दौरान मैती पौधा शादी का एक हिस्सा बन चुका है।
यह भी पढ़े :-
पौधों के बारे में इतनी जानकारी है कि , लोग इन्हें पर्यावरण का एन्सिक्लोपीडिया कहते हैं
महिलाओं के सहयोग के बिना पृथ्वी को हरा – भरा बनाना असंभव था
कल्याण सिंह रावत की सहायता यहाँ की नारी शक्ति ने भी की, पहाड़ी क्षेत्र में लकड़ी घास और पानी ढूंढने के लिए वहाँ की महिलाओं को काफी दूर जाना पड़ता है। महिलाएं इस आंदोलन की आधार इसलिए बनी,क्योंकि वह जानती थी कि किस मौसम में कौन सा पौधा लगेगा तो उस पौधे की उपज होगी, किस मौसम मे बारिस होगी जिससे पौधे सुखें नहीं। पौधे लगाने के बाद महिलाएं उनका देखभाल और संरक्षण भी करती थीं
हिमालय की संपत्ति – मोहन वन, सौर्य वन और मैती वन है
मैती आंदोलन में पौधे लगाने वाली महिलाओं ने सरहद पर शहीद हुए वीरों की याद में अधिक संख्या में पौधे लगाए और उनका संरक्षण किया उन्होंने पौधे लगाकर वहाँ की पृथ्वी को हरा भरा कर दिया जिसे शौर्य वन के नाम से जाना जाता है। “बी मोहन नेगी” गढ़वाल के चित्रकार का जब निधन हुआ तब मैती ने उन्हें श्रद्धांजली दी और एक स्मृति वन तैयार कर दी जिसे मोहन वन कहा गया।
इस आंदोलन के तहत ग्राम गंगा अभीयान चलाया जाता है। गाँव से बाहर जो प्रवासी रहते हैं वो प्रतिदिन गाँव के नाम पे एक रुपये जमा करते हैं। ग्राम गंगा समिति ये राशि इकठ्ठा कर मैती इको कल्ब को देती है जहाँ बच्चे पौधों को लगाते हैं और देखभाल करते हैं। Logically कल्याण सिंह रावत के वन संरक्षण और धरती को हरा भरा बनाने की कोशिश को नमन करता है।