Wednesday, December 13, 2023

नागालैंड के एक सरकारी स्कूल में छात्र मिड-डे-मील के लिए स्कूल में ही आर्गेनिक सब्जी उंगाते हैं, यह एक शानदार पहल है

छात्रों का समुह चाहे तो मिलकर किसी भी नामुमकिन काम को मुमकिन कर सकते हैं। पढ़ाई के साथ-साथ छात्र हर काम का अनुभव रखना पसंद करते है। ये हर काम को करने और सीखने के लिए तत्पर रहते हैं। छात्र संघ ने जैविक खेती कर, गांव में शौचालय का निर्माण कर लोगों को खुले में शौच से मुक्त कर बहुत से ऐसे कार्य किये हैं जिससे यह सबके लिए प्रेरणास्रोत बन चुके हैं। आज की यह कहानी भी ऐसे ही स्कूल और छात्रों की है जो अपने पाठ्यक्रम में जैविक खेती को शामिल कर यहां स्कूलों में दाल, सब्जी, फल, फूल उगा रहे हैं।

शहरी जीवन के शोर-गुल से दूर, Viswema का अनोखा गांव नागालैंड (Nagaland) जो पूर्वांचल हिमालय में स्थित है। यह गांव लगभग 7,500 लोगों का है। यहां घर कम है, लेकिन यह गांव अपने मिट्टी के बर्तनों पर शिल्प और मनोरम सुंदरता के लिए में North East में प्रसिद्ध है।

GMS की जैविक खेती

अधिकांश किसान पारंपरिक तरीकों का उपयोग कर खेती कर रहे हैं। पहले लोग केमिकल युक्त फसलों का उत्पादन करते थे लेकिन अब जैविक कृषि के माध्यम से खेती हो रही है। पहाड़ी ढलानों पर खेती करना मुश्किल है लेकिन यह भी किसानों और छात्रों ने आसान कर दिया है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में Viswema में K Khel गवर्नमेंट मिडिल स्कूल (GMS) खेती का एक ट्रेंडसेटर बना है। स्कूल के सभी छात्र “जैविक खेती” (Organic farming) को अपने पाठ्यक्रम का एक अभिन्न अंग मान कर यह इसमें लगे हुयें हैं।

Photo source-ThebetterIndia

शिक्षक देते हैं जानकरी

हेड-टीचर Keneisenu Vitsu के द्वारा इन विद्यार्थियों को इस खेती की सभी जानकारी दी जाती है। कक्षा 1-8 के छात्र स्कूल परिसर में फल, सब्जियां और जड़ी-बूटियां उगाते हैं। इनमें सेम, गोभी, कद्दू, स्क्वैश, अनार और नींबू शामिल हैं। मक्का और नागा दाल ये मुख्य अनाज है। जबकि सरसों एकमात्र मसाला है, जिसे एक छोटे पैच में उगाया जाता है। अपनी मेहनत से उगायें हुए फसलों का उपभोग छात्रों द्वारा उनके मध्यान्ह भोजन (Lunch) में किया जाता है। जो सब्जियां बच जाती है उन सब्जियों को बेच दिया जाता हैं और इससे हुए मुनाफे का उपयोग छात्रों के लिए स्नैक्स (Snacks) खरीदने के लिए किया जाता है।

यह सब नौ साल पहले शुरू हुआ था

केनेसेनू वित्सु, जो स्कूल के शिक्षक हैं उन्होंने जैविक खेती की शुरुआत के बारे में बताया। Vitsu ने साझा किया कि कैसे छात्र कक्षाओं में भाग लेकर अपने मेहनत से फ़सलों को उगाने के दौरान उनका देखभाल करते हैं। जो छात्र इससे परिचित हैं वह अन्य छात्रों को बारीकी से यह सब सिखाते हैं। यह सब कार्य 2011 में शुरू हुआ था। Vitsu ने कृषि के कौशल और ज्ञान के लिए बच्चों को जैविक खेती सिखाने का फैसला किया। जैविक खेती के माध्यम से, छात्रों को खुशी की भावना मिलती है और श्रमिकों के महत्व को समझ उनकी सराहना करते हैं।

बंजर भूमि को बनाया हरा-भरा

अपने शिक्षकों की मदद और सलाह से छात्रों ने पहले बंजर भूमि के एक भूखंड का चयन किया। उसे अपनी मेहनत से साफ कर उस भूखंड को अथवा भूमि को समतल किया। उन्होंने अपने घरों से जैविक कचरे के साथ हरी खाद बनाई और उस उर्वरक का उपयोग अपने खेतों में किया। मवेशियों को दूर रखने के लिए बांस की बाड़ लगाई गई ताकि कोई भी पशु इन्हें आपना चारा ना बना लें। छात्रों ने मस्ती और हंसी के बीच स्थानीय जैविक बीज लगाए और उनकी देखभाल सिंचाई कर उन फसलों को उगाया।

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छात्र हुए सफल

छात्रों के उत्साह को बढ़ाने के लिए खेती की गतिविधि को तीन समूहों के बीच एक प्रतियोगिता में बदल दिया गया। जिन्हें एक ही भूखंड के तीन खंड सौंपे गए थे। प्रतियोगिता को जीतने के लिए हर दिन छात्रों ने अपने पौधों का ध्यान रखना था। अपनी नियमित कक्षाओं के बाद बच्चे अपने बगीचों की ओर प्रस्थान करते और अपने पौधों का निरीक्षण कर पौधों में पानी डालना, उनका निरीक्षण करना, उर्वरक डालना सभी बातों का ध्यान रखते। उनके श्रम का फल जल्द ही दिखाई देने लगा। छात्रों ने अपने-अपने पौधों को बड़े ही ख़ुशी से सबको दिखाया। उन्हें इस सफलता पर खुशी हुई कि उनके लगाए पौधों में फल आ गये हैं।

पर्यावरण संरक्षण का भी रखते हैं ध्यान

जैविक खेती इन छात्रों के स्कूल के “इको क्लब” (Eco Club) का एक अभिन्न हिस्सा बना हुआ है। बच्चों को सिर्फ खेती ही नहीं करना बल्कि हमारे पर्यावरण के संरक्षण के महत्व को भी समझते हुए उनका ध्यान भी रखते हैं। ट्रॉवेल फव्वारे और पानी के डिब्बे के साथ सैकड़ों छात्र अक्सर स्कूल के पास खेत की खुदाई और मौसम के अनुसार बीज को लगाते है। ये छात्र मिट्टी के पोषण संतुलन को बनाए रखने के लिए मल्टी-क्रॉपिंग का प्रयोग करते हैं जो मिट्टी के प्रतिधारण क्षमता और उत्पादकता को भी बढ़ाता है। इनकी मेनहत से कुल मिलाकर सब्जियों, दालों और अनाजों का औसत वार्षिक उत्पादन 300 किलोग्राम से अधिक होता है। Vitsu Sir ने इसकी जानकारी सबके साथ एक श्रेणी बनाकर शेयर की। वास्तव में, पिछले वर्ष उत्पादन 372 किलोग्राम था।

अपने मध्याह्न भोजन के दौरान, छात्र स्कूल के रसोइए द्वारा तैयार की गई ताजा सब्जियों का सेवन करते हैं जो स्वस्थ के लिए लाभदायक है। मक्का को ज्यादातर उबाल कर कम-से-कम मसालों के साथ परोसा जाता है। कद्दू और स्क्वैश जैसी सब्जियां जो कि अधिक मात्रा में उगाई जाती हैं, छात्रों के लिए दोपहर के खाने के बाद बाजार में बेची जाती हैं।

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अन्य स्कूल और स्थानीय गांवों के लोग भी हुए प्रेरित

इस पहल को माता-पिता और अभिभावकों का पूरा समर्थन मिला। इन्होंने इन बच्चों से प्रेरणा लेकर जल्द ही अपने घरों में किचन गार्डन में सब्जियों को उगाना शुरू कर दिया। साथ ही कुछ पड़ोसी स्कूलों ने अपने स्कूल परिसरों में इसकी शुरुआत की। GMS स्कूल की ऐसी जैविक खेती को शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा सराहना और प्रोत्साहन भी मिला है।

जीएमएस छात्रों के माता-पिता भी घर पर कर रहें है यह खेती

इनके माता-पिता भी अपने बच्चों के पढ़ाई के साथ इस अनोखे पहल से बहुत खुश हैं। इन्होंने स्कूल के बगीचे में खेती के बारे में जानकारी इकट्ठा कर अब घर पर अपना किचन गार्डन का निर्माण कर सब्जी उगा रहें हैं।

सड़को की कर रहे हैं सफ़ाई

जैविक खेती के अलावा, K Khel GMS के छात्र अपशिष्ट प्रबंधन जैसे अन्य पर्यावरणीय पहलों में भी हिस्सा लेते हैं। गांव के सड़क किनारे बांस के कचरे के डिब्बे स्थापित करके और निवासियों से उनका उचित उपयोग करने का आग्रह करते हैं। हाल ही में, छात्रों द्वारा स्कूल परिसर के सौंदर्यीकरण के लिए एक वृक्षारोपण अभियान भी चलाया गया है।

भारत भर के कई स्कूल अब अपनी पाठ्येतर गतिविधियों के एक भाग के रूप में जैविक खेती की शुरुआत कर रहे हैं, जबकि K Khel GMS स्कूल 9 वर्षों से इसका अभ्यास कर रहा है, जो इन जैविक विधि से खेती करने के लिए गांव के अन्य स्कूलों और घरों के लिए एक उदाहरण बने हैं।

K Khel GMS के छात्र और शिक्षकों ने जो कार्य किया है सराहनीय है। The Logically इन्हें सलाम करता है।